पत्रकारिता रांड का कोठा है। यहां पर आने वाला अपने मतलब के लिए आता है। कोई पैसा देता है तो कोई उपहार लेकिन रांड के कोठे में आने वाला स्वंय को पाक साफ समझता है। पत्रकारिता को रांड का कोठा बनाया किसने उसके लिए कोई व्यक्ति विशेष नहीं बल्कि वे लोग जिम्मेदार है जो कि पैसा फेक तमाशा देख का काम करते चले आ रहे है। सुश्ील भाई गैंगवार आपका लेख पढा दुख जरूर हुआ लेकिन किसी भी व्यक्ति को किसी भी बात पर घमंड नहीं करना चाहिए। मुझे पत्रकारिता करते 28 साल हो गए। लगभग तीन दशक पूरे होने जा रहे है। देश के हर छोटे बडे अखबार से लेकर टीवी और सोशल नेटवर्कींग मीडिया से जुडा हूं। पत्रकारिता के क्षेत्र में कौन पेड पत्रकारिता नहीं करता है। यशवंत सिंह की ही बात क्यो करे....! बरखादत्त और प्रभु चावला को क्यो भूल गए। कुछ याद होगा तो आर के करंजिया का नाम और चेहरा जरूर याद कीजिए एक जमाना था पूरे देश - दुनिया में ब्लिटज् के सपंादक आर के करंजिया की तू - तू बोलती थी आज उनका नाम और मुकाम कोई नहीं छु पाया है जब वे भी मानते थे कि पत्रकारिता के क्षेत्र में उपकृत होना कोई नई बात नहीं है। हम लोगो की स्थिति तो यह है कि लिए तो बदनाम और नहीं लिए तो बदनाम ...........। हम तो मुन्नी और मुन्ना की तरह सदियो से बदनाम है। भाई साहब आप मेरे छोटे भाई हो इसलिए सलाह दे रहा हूं कि आसमान पर थूकने से अपना ही चेहरा खराब होगा। पत्रकारिता के क्षेत्र में आदमी पैसा कमाने के लिए आता है। हर कोई कमा और खा रहा है। इस क्षेत्र में यदि टाटा और बाटा जैसे पैसे वाले भी आकर यदि कहेगें कि हम राजा हरिशचन्द्र है तो लोग हसेगंे.......! राजा मत बनो प्रजा बन कर जितनी सेवा करनी है करो और नहीं कर सके तो नमस्ते करके चले जाओं। जहां तक मीडिया दलाल की बात है तो पहले शब्द की परिभाषा को समझे। मीडिया शब्द ही मंडी और बाजार से आता है जहां पर दलाल तो रहते ही है।
मेरी बातो को सोचो और विचार करो कि मैं सही हूं या आप गलत है। बरहाल आपको मां सूर्य पुत्री ताप्ती सुबद्धि दे।
मेरी अपनी भी वेब साइट है; कभी मौका मिले तो देखना।
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www.maasuryaputritapati.com
आपका अनजान
मित्र
रामकिशोर पंवार
यह लेख दलाल मीडिया डाट ब्लागस्पाट डाट.कॉम के कमेन्ट बॉक्स से साभार लेकर लिया गया है
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