जज्बा
ख्वाब बुनना तो सबको आता है
अरसा लगता है सच बनाने को
मंजिलें दूर,सफ़र तवील सही
संग मुक़ाबिल नहीं गिराने को
कर दें गुलशन शब्-ए-वीरान... मगर -
हम तरसते हैं इक बहाने को
वादा करिए तो सोच लें...पूरी
जिंदगी चाहिए निभाने को
रूबरू नूरे मुजस्सिम- हो आफताब कहीं
पेश हैं हम नज़र मिलाने को
कमरे में ...
यहाँ-वहां ..
.
गर्द जमती जाती है
इस घर का ख्याल कौन रखे!
रोज़ इक चीज़ टूट जाती है
टूटे हए सपनों की किर्चन
अब तक फर्श पर बिखरी पड़ी है
बातों की लम्बी थी जो रस्सियाँ
सिकुड़कर छोटी रह गयी हैं
कमरे के सन्नाटों में सुनती हूँ
गए वक़्त के कहकहों का शोर
सम्बन्ध भी नाम-मात्र को रह गए हैं
पतझड़ में खड़े ठूंठ की तरह
सोचती हूँ हर पल-हर दिन
सोचती हूँ हर पल-हर दिन
कभी वक़्त की कोई आंधी आकर
उड़ा ले जायेगी इस गर्द को
फिर कभी ना जमने के लिए
कई अनुत्तरित सवाल...
कई अनुत्तरित सवाल...
मुद्दतों से कमरे में कैद पड़े हैं
जाने-कब आज़ाद होंगे ?
लेकिन...
अभी भी कुछ ख्वाहिशें
छुपाके रखीं हैं एक कोने में
पर फिर भी...
डरती हूँ...
क्योंकि...
इस घर में ..
रोज़ इक चीज़ टूट जाती है.
नाम- सीमा शर्मा
शिक्षा - एम्. ए. अंग्रेजी महर्षि दयानंद यूनिवेर्सिटी रोहतक
पी एच डी अंग्रेजी मानव रचना यूनिवर्सिटी फरीदाबाद
व्यवसाय - फरीदाबाद के एक सरकारी स्कूल में प्रिंसिपल के रूप में कार्यरत
निवास स्थान - फरीदाबाद हरियाणा
रुचि - हिंदी व् अंग्रेजी में कवितायें लिखना