कमर वाहिद नकवी। यह नाम अब व्यक्ति विशेष के दायरे से निकल कर संस्थान का रूप ले चुका है। टेलीविजन पत्रकारिता को रूप-रंग देने में कमर वाहिद नकवी की भूमिका गौरतलब है। ‘आज तक’न्यूज चैनल को यह नाम देने से लेकर उसे पहले पायदान पर बनाए रखने मेंनऔर 20 मिनट के कैप्स्यूल प्रोग्राम से आज तक को 24-7 चैनल में बदलने तक हर पहलुओं में ‘क्यूडब्ल्यूनकवी’ की भूमिका महत्वपूर्ण रही। आगामी 31 मई को नकवी जी ‘आज तक’ से रिटायर हो रहे हैं। इस मौके पर‘आज तक’ के साथ बीते सफर औऱ आगामी योजनाओं के बारे में कमर वाहिद नकवी ने समाचार4मीडिया के असिस्टेंट एडिटर नीरज सिंह से विस्तार से बात की।
31 मई को आप आज तक से रिटायर हो रहे हैं। आजतक के साथ अपने पूरे सफर को आप आज कैसे याद करते हैं ?
19 जून 1995 को मैंने आज तक ज्वाइन किया था। यह पूरा समय इतना बेहतर और बढ़िया था जिसको शब्दों में बयान करना बड़ा ही मुश्किल है। यह पूरा दौर ही बड़ा महत्वपूर्ण रहा, लेकिन इसका स्वर्णिम काल खोजा जाए तो एस पी सिंह के साथ बिताए दो वर्ष यकीकन सबसे बेहतरीन थे।
2000 में आपने आजतक छोड़ा और 2004 में दोबारा ज्वाइन किया। इस बीच में आप उर्दू न्यूज चैनल ‘फलक’ के साथ जुड़े जो कि लॉन्च नहीं हो पाया। क्या आपको लगता है कि ‘फलक’ का न लॉन्च हो पाना आपके कैरियर के लिए अच्छा रहा?
मेरा मानना है कि जिंदगी में जो कुछ भी होता है, अच्छे के लिए होता है। आपकी बेहतरी के लिए ही होता है। मैं जहां भी रहा वहां मैने कुछ न कुछ सीखने की कोशिश की। ‘फलक’ के लिए जो काम किया उसमें भी काफी कुछ खीखा। फिर ‘आज तक’ आया औऱ सीखने का यह क्रम अभी भी जारी है।
‘आज तक’ आपने ही सुझाया। यह नाम आपके जेहन में कैसे आया?
(हंसते हुए) इसकी बड़ी लंबी कहानी है। किसी बात पर मेरे दिमाग में आया कि आज तक ऐसा नहीं हुआ। फिर मैने इसी में वाक्यों को बैठाने लगा। आज तक हमने ऐसी खबर नहीं की। आज तक ऐसा वाक्या नहीं हुआ। आज तक में सब कुछ फिट लगने लगा। जैसे खेल आज तक, मौसम आज तक। दिल्ली आज तक। इस तरह मैंने यह नाम सुझाया। लोगों को पसंद आय़ा तो इस नाम पर सहमति बन गई।
कई बार ऐसा दौर आया जब ‘आज तक’ पहले पायदान से दूसरे पायदान पर आ गया। तक क्या आपको लगा कि आपके नेतृतव की धार कमजोर हो रही है?
देखिए, मेरा हमेशा से मानना है कि नंबर महत्वपूर्ण नहीं होता है। अगर आप वर्षों से एक नंबर पर हैं और दो तीन हफ्तों के लिए कोई और चैनल पहले नंबर है, इसका मतलब यह नहीं कि धार कमजोर हो रही है। दूसरे टीवी में अच्छा कंटेंट और अच्छे नबंर दोनों अलग अगल चीजे हैं। आज तक के पास यह दोनों चीजे हैं। अच्छा कंटेंटे भी है और अच्छे नंबर भी। जैसा कि आपने कहा कि हम दो-चार हफ्तों तक नंबर दो पर रहे लेकिन लंबे समय हमें कोई पीछे नहीं रख पाया। हम फिर नंबर एक बन गए। लगातार 45-46 हफ्तों तक एक नंबर पर रहकर अगर हम दो-चार हफ्ते के लिए नंबर दो हो गए तो कोई चिंता की बात नहीं। दरअसल चैनलों के बीच में कड़ी प्रतिस्पर्धा के इस दौर में कुछ भी असामान्य नहीं है। इतने चैनल हैं तो नंबर गेम तो होगा ही। महत्वूर्ण है कि अच्छे कंटेंट के साथ अच्छे नंबर लाइए और आज तक हमेशा इस दिशा में आगे रहा।
‘आज तक’ जैसे ब्रांड को चलाने के लिए संपादकीय दृष्टिकोण से किन योग्यताओं को आप जरूरी मानते हैं?
केवल ‘आज तक’ ही नहीं, किसी भी ब्रॉन्ड को चलाने के लिए काम के प्रति ईमानदारी और जज्बा बेहद जरूरी होता है। ‘आज तक’ के साथ भी यही योग्यता लागू होती है
आप प्रिंट से आए थे प्रिंट के लोगों को टीवी के लिए फिट नहीं माना जाता। आपका अनुभव क्या कहता है।
टीवी जब शुरू हो रहा था, तब सभी प्रिंट के लोग टीवी में आ रहे थे। उन्होंने ही टीवी को स्थापित किया। आज भी चैनलों में शीर्ष के 90-95 प्रतिशत लोग प्रिंट के ही हैं। मुझे तो ऐसा कभी नहीं लगा कि प्रिंट के लोग टीवी के लिए फिट नहीं हैं। मैंने खुद आज तक में प्रिंट से आए काफी लोगों को आज तक में रखा।
आज तक के 10 साल पूरे होने पर कहा था कि समय के साथ लोगों की जरूरते बदलती हैं, आजतक में भी उसी जरूरतों के मद्देनजर बदलाव हुए हैं। तो क्या लोगों का खबर देखने नजरिया भी अब बदल गया है।
देखिए सभी समाजों के कुछ वैल्यू सिस्टम होते हैं औऱ वह समय के साथ बदलते रहते हैं। एक न्यूज चैनल के रूप में आपको उन बदलावों के साथ चलना होता है। एक उदाहरण दूं मैं आपको। आज से 30 40 साल पहले जो लोग बाहर खाना खाते थे तो लोग उन्हें दयनीय दृष्टि से देखते थे कि इस बेचारे को घर का खाना नसीब नहीं है। आज बाहर यानि होटलों में खाना स्टैटस सिंबल बन गया है। खबर क्या है इसका दायरा भी बड़ा हो रहा है इस लिए आपको अपने कंटेंट के दायरे को बढ़ाना होगा, जिस बदलाव की बात मैंने की थी। कंटेंट झील की तरह नहीं, नदी की तरह होना चाहिए।
आपके बारे में कहा जाता है कि आप भाषाई शुद्धता के हिमायती हैं। टीवी में भाषायी शुद्धता के साथ चलना कितना मुमकिन है?
यह लोगों में गलत धारणा है कि मैं भाषायी शुद्धता को लेकर कट्टरवादी हूं। मैं सही शब्दों के सही जगह पर प्रयोग का हिमायती हूं। वास्तव में भाषा को विस्तार तो उन्हीं लोगों से मिला है जिन्होंने भाषा को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया है। अभी कुछ दिन पहले ही किसी ने मुझसे पूछा कि कटघरा सही है कि कठघरा। मैंने कहा वास्तव में सही तो कठघरा सही है, लेकिन कटघरा शब्द का इस्तेमाल इतना ज्यादा होता है कि अब वह भी सही हो गया है। मैं इसे हटाने के पक्ष में नहीं हूं। हमारी हिंदी में तकरीबन साढ़े सात हजार शब्द तुर्की के हैं। टोपी, रुमाल सब तुर्की भाषा के हैं इन्हें निकाल दें तो हिंदी में कपड़ों की कमी पड़ जाएगी। लेकिन शब्दों का गलत अर्थों में प्रयोग न हो यह मेरी कोशिश रहती है। जैसे रिपोर्टर किसी दुर्घटना के विजुअल पर भी कहता है कि आप यह नजारा देख रहे हैं तो यहां पर नजारा का प्रयोग गलत है। सही शब्द का इस्तेमाल सही जगह हो यह जरूरी है।
आपके बारे में कहा जाता है कि आप पर्दे पर आने और कमेंट करने से बचते हैं?
मैं बैक एंड का आदमी हूं। अपना काम करता हूं। मेरी कोशिश रहती है कि सड़क पर निकलूं तो एक आम आदमी की तरह घर पहुंच जाऊं।
‘आज तक’ में आपकी सबसे बड़ी उपलब्धि क्या रही?
आज तक में सबसे बड़ी उपलब्धि रही कि मुझको ऐसी टीम मिली जिसने ‘आज तक’ को स्थापित किया।
खबरों की दुनिया के अलावा आपके शौक क्या हैं?
सब कुछ पसंद करता हूं। गीत-संगीत,सिनेमा, फूल, पौधे सब कुछ
भविष्य की योजनाएं क्या हैं?
अभी भी फिलहाल कुछ तय नहीं है।
Sabhar- samachar4media.com