हमला हेमन्त तिवारी पर हो अथवा हिसामुल सिद्दकी गुट पर, दोनों ही मामलों पर विरोध तो होना ही चाहिए। यदि रामदत्त त्रिपाठी ने हेमन्त तिवारी पर हुए हमले के लिए नेताजी, श्री मुलायम सिंह यादव से मिलकर गुहार लगाई तो कौन सा पाप कर दिया। इस समय पत्रकारिता में कुछ ऐसे लोग प्रवेश कर गये हैं जिनका पत्रकारिता से कोई लेना देना नहीं है, अपितु शुद्ध दलाली करके अधिकारियों की ट्रान्सफर/पोस्टिंग कराना, दरोगा से लेकर सीओ की मनचाही तैनाती दिलाना और खनन के ठेके-पट्टे दिलाना ही है। वे पत्रकारिता के चोले में केवल लॉयजनिंग एजेन्ट की तरह ही कार्य कर रहे हैं।
ऐसे लोगों ने दो-तीन कबीना मंत्रियों के पर्सनल स्टाफ में ऐसी जबरदस्त घुसपैंठ कर रखी है कि ये किसी भी पत्रकार को वहॉं मिलने नहीं देते हैं। इसके लिए वे मंत्री के पी0ए0 को किस हद तक ओबलाइज कर चुके हैं (जॉंच का विषय है)। ये जैसा चाहते हैं, वैसा वह पी0ए0 करता है। उस पी0ए0 की धाक इतनी है कि उसके खिलाफ मंत्री से कोई कुछ कह ही नहीं सकता है। ये गैंग इतना प्रभावशाली है कि मंत्री के विधानसभा स्थित कार्यालय में ही काजू-मेवा, नमकीन-चाय आदि खाता पीता है, और सारा पर्सनल स्टाफ उनकी जी हुजूरी में लगा रहता है। ये गैंग इन कबीना मंत्री की इमेज को पूर्व में भी बदनाम कर चुका है और वर्तमान में भी इसी दिशा में प्रयत्नशील है। यह भी सत्य है कि ऐसी कारगुजारी का उस सीधे-साधे मंत्री को पता ही नहीं है, इसी कारण यह गैंग इतना प्रभावशाली हो गया है कि बहुत से बड़े समझे जाने वाले पत्रकार इसके आगे-पीछे दुम हिलाते घूमते हैं।
नेताजी के पर्सनल स्टाफ के एक कर्मचारी पर भी इस गैंग की जबरदस्त पकड़ है। इस गैंग के एक सदस्य का रामदत्त त्रिपाठी से कहना था कि आप हेमन्त तिवारी पर हुए हमले की वारदात की बात करने नेताजी के यहॉं क्यों गये\ आपको पता नहीं नेताजी हेमन्त तिवारी से नाराज हैं! इसीलिए नेता जी ने आपको भाव नहीं दिया! और नेता जी इसीलिए आपसे भी नाराज हो गये हैं! आपके इसी व्यवहार से हम पत्रकारों में भी जबरदस्त क्षोभ है। इसी गैंग के एक अन्य सदस्य ने प्रेस परिषद के अध्यक्ष श्री काट्जू की प्रेस कान्फ्रेन्स में अनिल त्रिपाठी को हिसामुल सिद्दकी द्वारा सूचना निदेशक का एजेन्ट कहे जाने तथा आतंकवादी संगठनों की धमकी देने के कारण हिसामुल सिद्दकी की सूचना निदेशक श्री बादल चटर्जी ने पोल खोली थी तथा अनिल त्रिपाठी ने भी जबरदस्त प्रतिवाद किया था, जिसकी खाई को बढ़ाते हुए उसने इसे हिन्दु-मुसलमान का रंग देने की भरपूर कोशिश की।
इस घटना की जॉंच के लिए प्रमुख सचिव, गृह से लिखित शिकायत भी की गई थी। इस घटना को यहीं पर विराम मिल जाना चाहिए था किन्तु इसी सदस्य ने इसे हिन्दु और मुस्लिम पत्रकारों के बीच वैमनस्य का बीज बोने का काम किया। गैंग का यह सदस्य बहुत ही फितरती किस्म का शैतान है और दिनभर दलाली के फेर में ही लगा रहता है तथा अपने सम्पर्कों का बखान ऐसे करता है कि लोग उसके आगे-पीछे घूमते हैं। वह श्रीमती अनीता सिंह से भी अपने सम्पर्कों का बखान करना नहीं भूलता, बल्कि यह भी कहता है कि उसने अमुक अफसर को वहॉं का सी0डी0ओ0 बनवा दिया और अमुक सी0ओ0 को वहॉं की पोस्टिंग दिलवा दी। इसके तीनों मोबाइल नम्बरों की पिछले पांच सालों की कॉल डिटेल निकलवाकर जॉंच हो जाये तो निश्चित रूप से यह किसी खतरनाक गैंग का मेम्बर ही निकलेगा। इसकी श्रीमती अनीता सिंह से जान-पहचान है भी की नहीं अथवा उनका खौफ उत्पन्न करके यह खेल-खेल रहा है। हॉं एनेक्सी के पंचम तल पर यह किस तरह पहुंचता है यह जरूर जॉंच का विषय है। जब ऊपर का अलग से पास बनवाये बगैर कोई पंचम तल पर नहीं जा सकता तो यह किस प्रकार से ऊपर पंचम तल पर पहुंचता है। क्या यह सुरक्षा व्यवस्था में खामी को नहीं दर्शाता है!
एक ऊर्द पत्रकार एसोसियेशन का बैनर बनाकर इसी गैंग का यह खुराफाती सदस्य उसका कर्ताधर्ता हो गया और श्री आजम खॉं जी से शिकायत की कि हम मुस्लिम पत्रकारों पर कुछ हिन्दु पत्रकार प्रतिबन्धित संगठनों से सांठ-गांठ का झूठा आरोप लगा रहे हैं और उन्हें गुमराह करके सूचना निदेशक श्री बादल चटर्जी का ट्रान्सफर करा दिया। एक ईमानदार अधिकारी श्री बादल चटर्जी का ट्रान्सफर इन पत्रकारों की गैंग ने इसलिए करा दिया क्योंकि वह इनकी मठाधीशी को नियंत्रित कर रहा था और विज्ञापन के लिए पुष्टि के माध्यम से खेले जा रहे गेम की जानकारी होने के बाद बन्द कर दिया था। खैर ट्रान्सफर-पोस्टिंग सरकार का विषय है लेकिन उसके बाद जिन्हें सूचना निदेशक का चार्ज दिया गया उनके बारे में इसी गैंग ने प्रचारित किया कि वे ही श्री प्रभात मित्तल को लाये हैं और जैसा चाहेंगे वैसा करायेंगे। सही भी है दो महीने तक इन्होंने जो चाहा वही उन्होंने किया भी।
हेमन्त तिवारी पर हुए हमले की घटना की निष्पक्ष जॉंच और उसी के अनुरूप कार्रवाई भी होनी चाहिए। रामदत्त त्रिपाठी, ताहिर अब्बास, के0बक्श सिंह, अनिल त्रिपाठी, सतीश प्रधान, सुभाष कुमार, प्रमोद गोस्वामी आदि का नेताजी के यहॉं जाना और घटना का विरोध करना एवं अपराधियों को पकड़ने के लिए कार्रवाई कराने की बात कहना कोई गलत काम नहीं है। इसे आपसी वैमनस्य के कारण कतई नहीं नकारा जाना चाहिए। पत्रकार समिति की नेतागिरी करने के लिए आपस में इतना विरोध कतई उचित नहीं है, जबकि उस गैर पंजीकृत और सचिवालय एनेक्सी के पते का गलत इस्तेमाल कर रही उत्तर प्रदेश मान्यताप्राप्त संवाददाता समिति के आगे जारी रहने का कोई औचित्य ही नहीं है। यह समिति तो एक दुकान की तरह काम करती है, जो उसके पदाधिकारियों के लिए सोने का अण्डा बन जाती है। इसे तो लिक्विडेट कर दिया जाना चाहिए, लेकिन वह भी नहीं हो सकता क्योंकि यह समिति तो कहीं पंजीकृत ही नहीं है।
क्या इस समिति ने कभी श्रीधर अग्निहोत्री, योगेश श्रीवास्तव, जितेन्द्र शुक्ला, उमेश मिश्रा, प्रकाश चन्द्रा अवस्थी, रजा रिजवी, अनिल त्रिपाठी, सतीश प्रधान, सुरेन्द्र अग्निहोत्री, ताविषी श्रीवास्तव, एस0पी0सिंह, राजेश कुमार सिंह, विवेक तिवारी, मोहसिन हैदर रिजवी, विपिन कुमार चौबे, नरेश प्रधाऩ, विजय निगम, अवनीश विद्यार्थी, अजीत कुमार खरे, सुरेन्द्र सिंह, अविनाश शुक्ल, राजेन्द्र कुमार गौतम, राज कुमार सिंह, शेखर श्रीवास्तव, शशिनाथ दुबे, जितेन्द्र यादव, मुकेश यादव, सुरेश यादव, के0के0सिंह, राजकुमार, जुरैर अहमद आजमी, महेन्द्र मोहन गुप्ता आदि की सिफारिश अथवा आवास दिये जाने में कोई मदद की! क्या इस समिति ने किसी योग्य पत्रकार को मान्यता दिये जाने की सिफारिश की\ सिवाय अपनी गैंग मे सम्मलित होने वाले तथाकथित व्यक्ति के। इस समिति के बल पर मान्यता समिति में बैठना और फिर दस-दस हजार रूपये लेकर मान्यता प्रदान कराना क्या शर्म से डूबकर मर जाने के लायक भी नहीं है।
इसीकारण रामदत्त त्रिपाठी ने पत्रकारों के लिए नियमावली का एक बेहतरीन ड्राफ्ट भी तैयार किया, लेकिन वह लोगों के गले नहीं उतर रहा है, जबकि मेरी राय में वह एकदम सही है। इस नियमावली में कुछ और प्वाइंट जोड़कर इसे मान्यता दिये जाने वाले प्रचलित गर्वनमेन्ट आर्डर में जोड़ा जाना चाहिए, क्योंकि आजतक अधिनियम के अनुरूप नियमावली का प्रख्यापन तो इस प्रदेश में हुआ ही नहीं है। इसमें एक पैरा यह भी जोड़ दिया जाना चाहिए कि पत्रकारों को मान्यता दिये जाने से पूर्व उसकी सम्पत्ति के विवरण की रिर्पोट भी सक्षम प्राधिकारी से ली जायेगी। यदि उसके पास आय से अधिक सम्पत्ति है तो ना तो उसे मान्यता मिलनी चाहिए और ना ही राज्य सम्पत्ति विभाग के आवास या कोई अन्य सरकारी सहूलियत।
तथाकथित पत्रकारों के करोड़पति क्या अरबपति होने की घटनाओं ने ही चौथे खम्भे को बदनाम कर दिया है। ऐसे ही लोग, फई जैसे आई0एस0आई0 एजेन्टों के माध्यम से अरबपति तो हो ही रहे हैं, सत्यता को छिपाकर झूठी तस्वीर भी जनता के सामने पेश कर रहे हैं। इतना ही नहीं ये केन्द्र के इशारे पर क्षेत्रीय सरकारों को बदनाम करने की साजिश में भी लिप्त हैं। अब जरूरी हो गया है कि सरकार, मुख्यालय पर मान्यता पाये समस्त पत्रकारों के चाल-चलन एवं उनकी हैसियत व सम्पत्ति की गुप्तरूप से जॉंच कराये और उसके हिसाब से उन्हें मान्यता और सरकारी आवास दे। क्या आपको जानकर अचम्भा नहीं होता कि जिसके पास एक दशक पूर्व तक साइकिल भी मुहैय्या नहीं थी, जो बी0पी0एल0 परिवार से ताल्लुक रखता था उन पत्रकारों के पास फॉरच्यूनर और पजेरो जैसी मंहगी-मंहगी गाड़ियां ही नहीं हैं अपितु करोड़ों की अचल सम्पत्तियां भी उन्होंने इसी लखनऊ में खड़ी कर ली हैं।
इकबाल के लिए काम करने वाले लोग, सरकार के इकबाल को तार-तार करते हुए दर्शाते हैं कि प्रदेश में गुण्डाराज कायम है, अमुक मंत्री के कार्यक्रम में बार डांसर! (जबकि सच्चाई यह है कि वह डांसर भोजपुरी नृत्य कर रही थी) ऐसी रिर्पोंटिंग पैसा कमाने के उद्देश्य से ही की जाती है। इसलिए मेरी राय है कि अब भी सुधर जाइये और मात्र पत्रकारिता ही कीजिए, गुण्डागर्दी करते हुए दलाली नहीं। मीडिया सेन्टर सरकार का ड्राइंग रूम है, उत्तर प्रदेश मान्यताप्राप्त संवाददाता समिति को विरासत में मिली हुई सम्पत्ति नहीं! कदाचित सरकार द्वारा उपलब्ध कराया गया यह मीडिया सेन्टर ना तो मान्यता प्राप्त समिति की सम्पत्ति है और ना ही मान्यता प्राप्त पत्रकारों की, अपितु यह समस्त वास्तविक पत्रकार बन्धुओं के उपयोग के लिए ही सरकार ने उपलब्ध कराया है, इसलिए इस सुविधा से अपने को वंचित किये जाने की आधारशिला मत रखिए।
सतीश प्रधान
पत्रकार
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