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सांसदों ने भी थू-थू किया पत्रकारों के शोषण और पेड न्‍यूज के कदाचार पर

नई दिल्ली। पेड न्यूज को मीडिया में फैले कदाचार की संज्ञा देते हुए संसद की एक स्थायी समिति ने कहा है कि मीडिया का एक बड़ा वर्ग इस कदाचार पर मौन है और सरकार ने समस्या से निपटने के लिए कोई प्रभावी तथा निर्णयात्मक कार्रवाई नहीं की है।
मीडिया और साथ ही सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए राव इंद्रजीत सिंह की अध्यक्षता वाली सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी स्थायी समिति ने पेड न्यूज से संबंधित मुद्दे पर आज लोकसभा में पेश अपनी 47 वीं रिपोर्ट में कहा है, यह तथ्य व्याकुल करने वाला है कि पेड न्यूज व्यक्तिगत पत्रकारों के भ्रष्टाचार तक सीमित नहीं है बल्कि यह एक से अधिक पक्षों जैसे पत्रकार, मीडिया कंपनी के प्रबंधक, मालिक, निगमों, जनसंपर्क कंपनियों, विज्ञापन एजेंसियों और राजनीति से जुड़े कुछ वर्गों की संलिप्तता से यह अति जटिल और संगठित हो गया है।

समिति ने यह भी इच्छा जाहिर की है कि मीडिया घराने के सभी कर्मचारियों को वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट के तहत कवर किया जाए और उन्हें इस अधिनियम के विभिन्न उपबंधों के तहत सुरक्षा दी जाए। समिति ने कहा है कि जिस हद तक मीडिया समझौतावादी हो गया है उससे समिति अत्यंत चिंतित है और इस समस्या से निपटने के लिए तत्काल तेजी के साथ कार्रवाई की जरूरत है।

रिपोर्ट में कहा गया है, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारतीय प्रेस परिषद, भारतीय निर्वाचन आयोग, न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन, एडिटर गिल्ड ऑफ इंडिया तथा प्रसार भारती जैसे सभी संगठनों तथा विभिन्न गणमान्य व्यक्तियों ने पेड न्यूज की समस्या को स्वीकार किया है लेकिन फिर भी यह हैरानी की बात है कि मीडिया का एक बड़ा वर्ग इस कदाचार पर पूर्णत: मौन है।

समिति ने सरकार से इस मसले पर तुरंत कार्रवाई करने और छह माह के भीतर की गई कार्रवाई से अवगत होने की इच्छा जाहिर की है। विज्ञापन और समाचार की स्पष्ट परिभाषा तय किए जाने की जरूरत पर बल देते हुए समिति ने इस तथ्य को भी रेखांकित किया है कि पेड न्यूज न केवल संपादकीय, विज्ञापन, जनसंपर्क लॉबी समूह और उद्योग के समेकन का परिणाम है बल्कि इसका कारण पत्रकारों की स्वतंत्रता में आई कमी भी है।

रिपोर्ट में कहा गया है, रोजगार की ठेका प्रणाली का चलन पत्रकारों की स्वतंत्रता के हनन का प्रमुख कारण है क्योंकि इस प्रणाली में उनकी स्थिति केवल विपणन एजेंट की रह गई है। ठेका प्रणाली के तहत पत्रकारों के शोषण के अनेक उदाहरण हैं। इतना ही नहीं विपणन विभागों और मीडिया घरानों के मालिकों के हस्तक्षेप के कारण मीडिया के संपादकों की निर्णायक भूमिका का क्षय हुआ है।

मीडियाकर्मियों की दयनीय दशा पर चिंता जाहिर करते हुए समिति इस नतीजे पर पहुंची है कि सरकार और संबंधित नियामक निकायों को पत्रकारों (मीडियाकर्मियों) की कार्यदशा में सुधार के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने चाहिए तथा यह भी सुनिश्चित किया जाए कि संपादकीय कर्मचारियों की स्वाययत्ता बरकरार रहे।

प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया के कर्मचारियों की कार्यदशा की समीक्षा करने के लिए समिति ने मीडिया आयोग का गठन किए जाने की जरूरत भी बताई है। समिति ने सिफारिश की है, मंत्रालय इन सभी कारकों पर विचार करते हुए विनियामक तंत्र बनाए और मीडियाकर्मियों के कार्य परिदृश्य : मजदूरी दशाओं की आवधिक समीक्षा के लिए उपबंध बनाए जाएं।

समिति ने इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए गंभीर खतरा बताते हुए इस मामले पर तुरंत ठोस, व्यापक और तीव्र कार्रवाई की उम्मीद करते हुए सिफारिश की है कि पेड न्यूज को रोकने के लिए आगामी आम चुनाव से पूर्व हर हाल में ठोस कदम उठाए जाएं। (भाषा)