आम जनता में ऐसी घटनाओं को लेकर व्याकुलता है और वह पत्थर मार – मार कर बलात्कारियों का फैसला तुरत – फुरत कर देना चाहती है ताकि उसके घर की माँ – बहन सुरक्षित रह सके. दूसरी तरफ विपक्षी दलों के लिए सत्ता पर काबिज पार्टी को घेरने का एक सुनहरा अवसर. ऐसे में समाचार चैनलों के लिए भी बड़ी गुंजाइश बनती है. जी – जिंदल के उगाही वाली संस्कृति के ज़माने में खबरों के कारोबार के बीच थोडा सरोकार दिखाने का मौका खबरिया चैनलों को भी ऐसी घटनाओं के घटित होने के बाद मिल जाता है. इसलिए आजतक से लेकर एबीपी न्यूज़ और तमाम बड़े – छोटे चैनल एक मुहिम की तरह खबर चलाते हैं.
ख़ैर चैनलों का यह गुस्सा और मुहिम काम आया. खबर के असर से मामला संसद में भी गूंजा. पीड़ित लड़की से मिलने सोनिया गांधी अस्पताल में पहुंची.. गृहमंत्री का बयान आया और 48 घंटे के अंदर बस और बस के अंदर कुकृत्य करने वाले वहशी पकड़े गए.. यह बात और है कि बलात्कार के सभी मामलों में पुलिस और प्रशासन की तरह समाचार चैनल भी इतनी चुस्ती नहीं दिखाते और न ही ऐसी व्यापक कवरेज करते हैं.
मनचले ने पूछा –चलें.
अंजना कश्यप ने कहा – कहाँ चलना है?
फिर मनचले की नज़र कैमरे पर पड़ी और कैमरा … कैमरा कहते सब वहां से चलते बने.
लेकिन तबतक सबकुछ आजतक के कैमरे में कैद हो चुका था. आजतक ने खबर की शक्ल में इसे चैनल पर बार – बार दिखाया और खुद यह स्वीकार भी किया कि यदि अंजना कश्यप के साथ कैमरा नहीं होता तो वो मनचले न जाने क्या करते? यानी यह कैमरे का खौफ था जिसने मनचलों को शैतान बनने से पहले ही भागने पर मजबूर कर दिया. लेकिन पूरी खबर देखने के बाद यही ख्याल बार – बार आया कि काश ऐसा ही कोई कैमरा उस बस में या उसके आस – पास भी होता तो एक महिला की इज्जत ऐसे तार – तार नहीं होती. लेकिन न वहां वारदात की टीम थी और न सनसनी की और न उनका किसी तरह का खौफ.
दरअसल पुलिस, प्रशासन और नेताओं की तरह रेप के खिलाफ मीडिया की मुहिम भी क्षणिक है. घटनाक्रम के बाद जैसे दूसरे विषयों पर बहस होती है. उसका विश्लेषण होता है और बात खत्म हो जाती है. ठीक वैसे ही चैनलों के लिए बलात्कार भी महज एक विषय है जो उसके लिए चर्चा का विषय तब – तब ही बनता है जब – जब ऐसे बलात्कार होते हैं. आजतक ने कैम्पेन शुरू किया है कि, ‘पूछता है आजतक – आखिर कबतक’. लेकिन आजतक कबतक इस मुद्दे को पूछता रहेगा. यह भी एक सवाल है. कैमरे का डर वाकई में कायम रहता तो न पुलिस – प्रशासन ऐसी निकम्मी होती और न अपराधियों के हौसले ऐसे बुलंद होते. यह पुलिस, प्रशासन और सरकार की ही विफलता नहीं बल्कि समाचार चैनलों और पूरे मीडिया की भी विफलता है.
पुष्कर पुष्प ,
संपादक ,
मीडिया खबर डॉट कॉम