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आजतक का भी बाप निकला इंडिया न्यूज़

> इंडिया न्यूज की तत्परता आसाराम की गिरफ्तारी को लेकर इस कदर बनी हुई है कि सुबह के आठ ही बजे उसे सलाखों में दिखा दिया. जो वॉल उसने तैयार की, उसे देखते हुए किसी को भी लगेगा कि वो जोधपुर पहुंचने के पहले ही, बिना किसी कार्रवाई और सुनवाई के सीधे जेल चला गया..मीडिया ट्रायल मामले में तो ये आजतक का भी बाप निकला.
>आसाराम ने जेल के लिए बैकुंठ शब्द का प्रयोग किया. उसके बाद से इंडिया न्यूज ने जेल के लिए जेल शब्द का प्रयोग करना छोड़ सीधे बैकुंठ लिखना शुरु किया. सड़ी-गली स्थिति में मौजूद जेल के लिए बैकुंठ शब्द इस्तेमाल कर आसाराम ने जो इज्जत बख्शी है, उनके भक्तगण इससे भले ही अभिभूत हों लेकिन चैनल के अंदर का पाखंड़ लाख कोशिशों के बावजूद भी उजागर हो जा रहा है. चैनलों का ऐसे पाखंड और अंधविश्वास दिखाए जाने के पीछे का तर्क होता है कि लोग देखना चाहते हैं जबकि सच्चाई है कि चैनल और मीडिया का मानसिक गठन भी इसी अंधविश्वास और पाखंड के बीच पनपता आया है. नहीं तो जेल के लिए बैकुंठ शब्द इस्तेमाल करने के पीछे उसे इस बात पर गौर नहीं करना चाहिए कि इसका क्या अर्थ हैं ? मुझे तो आशंका हो रही है कि कहीं आसाराम के भक्तगण आसामराम के लिए बैकुंठ जाने का कुछ और ही अर्थ न लगा लें. अब ये तर्क मत देने लग जाइएगा कि चैनल ने ऐसा आसाराम पर व्यंग्य के लिए लिखा है..मीडिया और चैनल व्यंग्य को लेकर कितने सीरियल हैं, वो हमें भी लॉफ्टर शो की घंटों फुटेज काटकर दिखाए जाने के बीच समझ आता है.
विनीत कुमार की कुछ और टिप्पणियाँ :
> उम्मीद ही नहीं, पूरा यकीन है कि देश की एक बड़ी आबादी का मुख्याधारा मीडिया,समाचार चैनलों के प्रति एक बार फिर से वही श्रद्धा और चौथा खंभा होने का भ्रम पैदा हो गया होगा जैसा कि निर्मल बाबा के दौरान हुआ था..लेकिन इस श्रद्धा सीजन-2 में मौका मिले तो ये आइबीएन 7 और न्यूज 24 जैसे चैनलों से ये सवाल जरुर पूछिएगा कि जब तुम आसाराम की खबर से भी धारदार निर्मल बाबा के पर्दाफाश होने की खबर दिखा रहे थे तो अभी भी आधे घंटे का निर्मल समागम किस सरोकार के तहत चला रहे हो ?
> आसाराम के कई पर्यायवाची बना दिए जाने के बीच जो भी धुंआधार कवरेज देख रहा हूं, मुझे उसकी पैटर्न साल 2005 में प्रिंस नाम के बच्चे के गड्ढे में गिरने की कवरेज लगातार याद आ रही है. फर्क सिर्फ इतना है कि वो बच्चा लोगों की करतूत और लापरवाही से गड्ढे में गिरा था जबकि यहां लाखों लोग इस आसाराम के करतूत के कारण गड्ढे में गिरते आए हैं. कवेरज की फार्मेट लगभग बराबर है और अगर टाइम्स नाउ और इंडिया टीवी की फार्मेट देखें तो आतंकवादी घटना की कवरेज से मेल खाती हुई.
> आसाराम की हालत की चर्चा जिस तरह टीवी चैनल कर रहे हैं, आपको बार-बार लगेगा कि इससे तो लाख गुणा अच्छा अपना बच्चा प्रिंस था, चालीस घंटे से उपर गड्ढे में भूखे-प्यासे पड़ा रहा लेकिन थोड़े दिनों बाद टनमनाकर रियलिटी शो में हाजिर हो गया, बिस्कुट बेचने लग गया. इसका मतलब यही है कि ये सब सत्संग, संयम, आत्मज्ञान और अकेले में घंटों ध्यान लगाने की बात बंडलबाजी है. भक्तगणों, जब तुम्हारे आराध्य के 4-5 घंटे में ही इस आत्मज्ञान से बाजा बज गया, तब तुम्हारी क्या दशा होगी ? सो प्लीज लीव दस आत्मज्ञान एन ऑल दीज बुल्लशिट एंड सांसारिकता, प्रतिरोध,संघर्ष की दुनिया में लौटो.
> आपको लग रहा होगा कि न्यूज चैनल आसाराम की धुंआधार कवरेज से अंधविश्वास और पाखंड के खिलाफ लड़ रहे हैं, नहीं जी..वो उस रिवन्यू सिस्टम से हार रहे हैं जहां दो दिनों तक इस कवरेज के जरिए आसाराम जैसे शख्स को पाखंडी,धोखेबाज,उसकी हरकतों को ड्रामा और गुंडई बताने के कुछ ही दिनों बाद अपने यहां ऐसी जगह तैयार करेंगे हैं, जहां आधे-एक घंटे सिर्फ वो, उनके ड्रामे और प्रवचन होंगे. बीच में कोई लक्स कोजी से निकलनेवाले चूजे और 140 रुपये की गैस नहीं डियो उड़ानेवाले लौंड़े के पीछे आधे दर्जन लड़कियां होगी बल्कि शांतचित्र सिर्फ बाबा और उनके अमृतवचन होंगे. इसे विज्ञापन कहा जाएगा जी और आप तो जानते ही हैं टीवी में विज्ञापन का मतलब होता है महामृत्युंजय जाप जिसके बीच में किसी तरह की खलल नहीं डाली जाती, ऐसा विधान है. हैं जी, आप पूछते हैं तब चौथे खंभे का क्या होगा ? लो कल्ल लो बात. इसमे पूछना क्या है ? आइबीएन 7 की बुलेटिन ढोल-नगाड़े की ट्यून की तरह वैसे ही शुरु होगी जैसे कि मंडी हाउस से कोई भारी रैली निकल रही है और उस पर निर्मल दरबार लगेगा और पीछे से तीन-साढ़े तीन सौ लोगों की विदाई होगी..अजी, गांवघर में इसे कहते हैं- जात भी गंवाना और भात भी न खाना..सब साथे-साथ चलेगा जी..छंटनी भी और कमाई भी. पाखंड भी और पाखंड उन्मूलन कार्यक्रम भी..है न ओरोजिनल तमाशा..बीच-बीच में भूख लगने पर पेटिस( नॉट पेचिश)- बर्गर और कोक-शोक भी चलेंगे..तो डन न जी.
(विनीत कुमार के एफबी से साभार)