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शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया जी,


शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया जी,

आज एक प्रकाशक से मुलाक़ात हुई । उन्होंने बताया कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों को पुस्तक ख़रीद के लिए साल में बीस हज़ार रुपये मिलते हैं । दस हज़ार प्रिंसिपल और लाइब्रेरियन रख लेते हैं और दस हज़ार की अनाप शनाप किताबें ठेल दी जाती हैं ।

क्या आप सभी प्रिंसिपल से कहेंगे कि उन किताबों की सूची स्कूल की दीवार पर चस्पाँ करें ताकि नागरिक जान सके कि किस क्लास के बच्चों को क्या किताबें दी जा रही हैं । क्या ये सूची आप आन लाइन कर सकते हैं ? क्या आप सोशल मीडिया पर साझा करेंगे ? क्या आप सरकारी फ़ंड से चलने वाले कालेजों में भी जाँच करवाएँगें ?

प्रकाशक महोदय ने यह भी कहा कि बीजेपी( मध्य प्रदेश ) हो या समाजवादी (यूपी) या कांग्रेसी( दिल्ली ) सभी सरकारों में किताब के लिए रिश्वत देते देते इतना शर्मिंदा हो चुका हूँ कि पूछिये मत । सोचा था कि इस लाइन में अच्छे लोग मिलेंगे मगर सर ये जो हिन्दी अधिकारी हैं न बिना घूस लिये काम नहीं करते । इन्होंने हिन्दी का जितना नुक़सान किया है उतना किसी ने नहीं ।

उम्मीद है कि आप के साथी जो सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं इस ख़त को आप तक पहुँचा देंगे ।

बाक़ी तो जो है सो हइये है । यह न कहना पड़े ।

रवीश कुमार