शव्दो की माँ बहन। . थोड़ा सुनने में अजीव लगता है आजकल सोशल मीडिया में ऐसा ही हो रहा है। जो चाहे जिसकी बजा सकता है। अभी मैंने एक लेख अपने परम मित्र मदन तिवारी जी का पढ़ा। पढ़कर दुःख हुआ। उनकी भाषा इतनी ओछी कैसे हो सकती है। वो तो एक अच्छे लेखक और सोशल वर्कर है। फिर इस तरह की भाषा क्यों। .
एडिटर
सुशील गंगवार
साक्षात्कार डॉट कॉम
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