जिंदगी के खट्टे मीठे अनुभव हमें ये सोचने पर मजबूर कर देते है कि कितनी बार ,हम अपनी जिंदगी में खुद को मजबूर खड़ा पाते है। चाहे आपके पास कितनी शोहरत हो दौलत हो। जिन लोगो को हम जानते भी नहीं है वो हमारे दोस्त है या दुश्मन, ये कह पाना थोड़ा सा मुश्किल हो गया है।
भीड़ में हर चेहरा अलग तो होता है किसके दिमाग में क्या और किसके बारे में क्या चल रहा है। खैर ये तो समाजी बाते है। मीडिया में १६ साल बीत जाने के बाद भी कितनी बार अकेलापन कचोटता रहता है। हर किसी को अकेले ही चलना है, मैं भी उसी हिंदी पट्टी पर चल रहा है। मंजिल का तो पता है पर जितना पास जाओ उतनी दूरी फिर बढ़ जाती है। लोगो का कहना है ये ही जीवन है। ये ही सच्चाई है। चलते जाना है चलते जाना है।
एडिटर
सुशील गंगवार
साक्षात्कार डॉट कॉम
भीड़ में हर चेहरा अलग तो होता है किसके दिमाग में क्या और किसके बारे में क्या चल रहा है। खैर ये तो समाजी बाते है। मीडिया में १६ साल बीत जाने के बाद भी कितनी बार अकेलापन कचोटता रहता है। हर किसी को अकेले ही चलना है, मैं भी उसी हिंदी पट्टी पर चल रहा है। मंजिल का तो पता है पर जितना पास जाओ उतनी दूरी फिर बढ़ जाती है। लोगो का कहना है ये ही जीवन है। ये ही सच्चाई है। चलते जाना है चलते जाना है।
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