निर्देशक सुनील सिंह के निर्देशन में देश के सबसे बड़े धार्मिक युद्ध "बाबरी मस्जिद और राम मंदिर अयोध्या कांड" पर बनाई गयी फिल्म को सेंसर बोर्ड से स्वीकृति न मिलने से बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है| जहां एक तरफ फिल्म बनकर तैयार सेंसर बोर्ड के रोड़े इसे मैदान में आने नहीं दे रहे| फिल्म अयोध्या राम मंदिर कांड पर आधारित है जिसमे प्रेम प्रसंग के जरिये हिन्दू-मुस्लिम सभ्यता का मिलाप दिखते हुए उस समय के हालत को दिखाया गया है और एक पत्रकार की कश्मकश को दिखाया गया गया है जो इस पूरी घटना के दौरान हिन्दू मुस्लिम विवाद का विस्तृत वर्णन करता है जबकि वहां के हिन्दू मुस्लिम में ऐसा कोई विवाद होता ही नहीं है।
अयोध्या में मंदिर मस्जिद के लिए मुकदमा लड़ते सवा सौ साल हो गया है| इस एक मुद्दे ने बड़े बड़े नेता बना दिए सरकारें बना दीं और सरकारें गिरा दीं| आइए देखतें हैं कैसे इस मुद्दे ने देश की तारीख बदल दी.फैजाबाद की इस पुरानी से इमारत सवा सौ साल पहले हुए मंदिर मस्जिद झगड़े के पहले मुकदमे की गवाह है| तब बाबरी मस्जिद के दरवाजे के पास बैरागियों ने एक चबूतरा बना रखा था.अदालत से मांग की कि चबूतरे पर मंदिर बनाने की इजाजत दी जाए, यह मांग खारिज हो गई| 1949: जुलाई में प्रदेश सरकार ने मस्जिद के बाहर राम चबूतरे पर राम मंदिर बनाने की कवायद शुरू की. लेकिन यह भी नाकाम रही| मस्जिद में राम सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां रख दी गईं. और तब से लेकर आजतक देश की अदालतों में यह मामला चल रहा| जैसा की सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था के दोनों समुदाय आपस में बैठके इस मामले का हल निकलने का प्रयास करें इन्ही सब बातों को ध्यान में रखते हुए इस फिल्म को बनाया गया ही।
भूषण अग्रवाल, कार्यकारी निर्मा ता कहते हैं, "यह सरकार की समर् थक फिल्म नहीं है, यह एक प्रेम कहानी है। यह फिल्म सच्चाई और घ टनाओं पर आधारित है और आधिकारिक तौर पर फिल्म के मुख्यालय से प् राप्त आधिकारिक शेयर शॉट के अनु सार फिल्म डिवीज़न मुंबई है.
और फिल्म पूरी तरह से लिब्रहान अयोध्या आयोग की रिपोर्ट के अनु सार आधारित है। गेम ऑफ़ अयोध्या , उग्रड़ को देखता है, जिसे बाबरी मस्जिद के ध्वस्त होने के बाद हमारे देश का सामना करना पड़ा था और हिंसा को हटा ने के लिए एक आदमी का वीर प्रया स |
बैनर- सरोज एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड; निदेशक - सुनील सिंह; निर्माता- ध्यान सिंह; कार्यकारी निर्माता- भूषण अग्रवाल; डीओपी- दामोदर नायडू; क्रिएटिव डायरेक्टर- पार्थो गोश; संपादक: मनोज सांखला; सहनिदेशक- मोहित शर्मा; पृष्ठभूमि संगीत- आनंद त्रिपाठी; कला निर्देशक- रमेश सुर्वे; शैली - सच्ची तथ्यों से प्रेरित (लिबरहान अयोध्या आयोग की रिपोर्ट के अनुसार); स्टार कास्ट- सुनील सिंह, मकरंद देशपांडे, अभय भार्गव, अरुण बक्षी, एहसान खान, सविता बजाज, संजय दधीच, विशाल सिंह, अमनदीप, रोहन, पूजा, अनूप और अन्य। ; स्थिति: पूर्ण; मीडिया कंसल्टेंट: पिक्चर एन क्राफ्ट।