अभिषेक मेहरोत्रा
डेप्युटी एडिटर
एक्सचेंज4मीडिया समूह ।।
आज के दौर में जहां बड़ी संख्या में पत्रकारों ने पत्रकारिता के साथ-साथ एक्टिविज्म को जोड़कर कई तरह की मुहिमें चला रखी है। ऐसे में तमाम बार पत्रकारिता भी सवालों के घेरे में आ जाती है और तब यह बड़ा सवाल उठना लाजिमी है कि क्या पत्रकार को एक्टिविस्ट होना चाहिए? ये एक ऐसा प्रश्न है जिस पर अनेक संपादकगण घुमा-फिराकर जवाब देते हैं। पर जब हमने ये सवाल हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘आउटलुक’ के संपादक हरवीर सिंह से पूछा, तो उनका स्पष्ट कहना है कि जर्नलिस्ट को कभी भी एक्टिविस्ट नहीं होना चाहिए। इसके पीछे उनका तर्क है कि जब कोई पत्रकार किसी मुहिम को आगे बढ़ाने का संकल्प ले लेता है, तो वे उसका पक्षकार बन जाता है और पक्षकार बनकर किसी मुद्दे पर काम करना पत्रकारिता के सिद्धांत के अनुरूप नहीं है। किसी एक मुद्दे के पक्षकार के तौर पर पत्रकारिता के मंच का प्रयोग करना गलत ही है।
वे कहते है कि पत्रिकाओं की रीडरशिप तेजी से इसलिए बढ़ रही है क्योंकि आज भी टीवी या अखबार आपको खबर ही देते हैं, ऐसे में किसी भी विषय का विश्लेषणात्मक विवरण आप मैगजीन की स्टोरीज से ही समझते हैं। पत्रिकाएं ही किसी अहम मुद्दे पर 10-15 पृष्ठों की कवर स्टोरी कर पाठक को विषय का एटूजेड समझा पाती है। मैगजीन किसी भी विषय को 360 डिग्री अप्रोच के साथ प्रस्तुत करने की ताकत रखती है।
सोशल मीडिया के इस दौर में फेक न्यूज की बढ़ती संख्या पर चिंतित हरवीर सिंह कहते हैं कि ये एक बहुत बड़ी चुनौती है। और आज मीडिया को इस पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि मीडिया की पूंजी उसकी विश्वसनीयता है और फेक न्यूज आपकी क्रेडिबिलिटी पर ऐसी चोट लगा रही है, जो आपके काम पर ही सवाल उठा रहा है। वे कहते हैं कि अब स्पीड न्यूज की जगह सही न्यूज पर फोकस करना ज्यादा जरूरी है।
आज जिस तरह पत्रकारों के बीच लगातार विवाद, ट्विटर वार और खेमेबाजी हो रही है, उस पर दुखी मन से वे कहते है कि ये बहुत ही अफसोसजनक है कि आज पत्रकारों के बीच डिविजन की बात लगातार सुनने को मिल रही है। वे कहते हैं कि जर्नलिज्म किसी एक व्यक्ति का काम नहीं, ये संस्थान का काम है। पर जिस तरह आज कुछ बड़े पत्रकारों ने अपनी एक खास तरह की इमेज गढ़ना शुरू किया है, वे बहुत ही खतरनाक ट्रेंड है। क्या राष्ट्रवादी है या क्या गैरराष्ट्रवादी, ये तय करने का अधिकार मीडिया को नहीं है। इस देश के संविधान और कानून के पास ये अधिकार है, ऐसे में मीडिया ट्रायल से बचना चाहिए। वे मानते हैं कि टीवी मीडिया के कुछ पत्रकार आज एक ब्रैंड बन गए हैं और खेमों में बंट गए है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है। जिस तरह वे विचार को खबर बनाकर प्रस्तुत कर रहे हैं, उससे मीडिया की क्रेडिबिलिटी कम हो रही है। किसी को टारगेट करके खबर बनाना हम पत्रकारों का काम नहीं है।
Sabhar- Samachar4media.com