
डकैती केवल माल असबाब की नहीं होती है. डाका भावनाओं का भी होता है. पाठकों से जुड़ाव का होता है. दुखदर्द से आशनाई का होता है. ऐसी डकैतियां नफरत नहीं पैदा करतीं. आपको रुला देती हैं. पत्रकारिता का ऐसा ही प्यारा सा ‘डकैत’ छह साल पहले हमें छोड़कर चला गया. घुसिए उसके चंबल में और खोजिए अपने आप को. आलोक तोमर की उन अनजानी यात्राओं में धंसिए जिसकी चाह अपना चंबल छोड़कर दिल्ली आया हुआ हर पत्रकार अपने सीने में पालता है. आजतक न्यूज चैनल में वरिष्ठ पद पर कार्यरत प्रतिभावान पत्रकार नवीन कुमार ने भड़ास के एडिटर यशवंत से बातचीत के दरम्यान स्वर्गीय आलोक तोमर से जुड़ी कई बातें साझा कीं. ध्यान से देखिए-सुनिए इस वीडियो को, पूरा… नीचे क्लिक करें…