आजतक न्यूज चैनल में वरिष्ठ पद पर कार्यरत और सोशल मीडिया पर अपने लेखन के चलते चर्चित विकास मिश्र के पिताजी नहीं रहे. सिद्धार्थनगर के गांव बरवां के श्यामनारायण मिश्र जी की उम्र 93 साल थी. उन्हें कोई बीमारी, दिक्कत, तकलीफ नहीं थी. उन्हें स्थानीय लोग ‘बरवां के बाबा’ के नाम से पुकारते थे. उनके पांडित्य की दूर-दूर तक ख्याति थी.
निधन के बारे में बताया जाता है कि पिता श्यामनारायण मिश्र जी मनपसंद परवल की सब्जी बनवाए और दही चावल के साथ खाते हुए कुर्सी पर बैठे बैठे देह छोड़ गए. विकास मिश्र की माताजी का कुछ समय पहले निधन हो गया था जिसके बाद से उनके पिताजी एकाकी हो गए थे. हालांकि उन्होंने अपने एकीकापन को अपने भरे-पूरे परिवार के बीच कभी किसी को पता नहीं चलने दिया और सबके साथ लीन-तल्लीन होकर प्रसन्नता के साथ दिन काटते गए. पर मां-पिता की जोड़ी में से मां के चले जाने के बाद पिता अंदर से अकेले हो गए थे.
पिता श्यामनारायण मिश्रा अपने पीछे बेटों, बेटियों, नातियों-नतिनियों का भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं. विकास मिश्र कुल तीन भाई व तीन बहन हैं और सभी लोग वेल सेटल्ड हैं. विकास मिश्र के जानने वालों और पिताजी के परिचितों ने पुण्यात्मा को प्रणाम करते हुए श्रद्धांजलि दी है.
विकास ने अपने पुत्र और अपने पिताजी को लेकर एक संस्मरण इसी एक अप्रैल को फेसबुक पर लिखा, जिसे नीचे पेश किया जा रहा है. तब उन्हें और उनके परिजनों को तनिक आशंका न थी कि इतनी जल्दी वे देह छोड़ जाएंगे…
Vikas Mishra : कुछ महीने पहले हमारे सुपुत्र समन्वय गांव गए हुए थे। दादा-पोते का स्वाभाविक लगाव होता है, लिहाजा बाबूजी से खूब बातें हुईं थीं। सारी कहानी वे यहां बता रहे थे। एक दिन किसी प्रसंग में समन्वय ने बाबूजी से कहा- बाबा अब मैं जान गया कि मेरी मम्मी मुझसे ज्यादा वीरू भइया को प्यार करती हैं। बाबूजी ने पूछा-प्यार नापने-तौलने का कोई ‘बाट’ रखे हो..? समन्वय बोले-नहीं। बाबूजी बोले-तो कैसे पता चलता है कि किसे ज्यादा प्यार करती हैं, किसे कम प्यार करती हैं..? बाबूजी के सवाल से समन्वय लाजवाब हो गए। यहां बता दूं कि वीरू मेरे मंझले भइया का बेटा है, मेरे साथ ही रहता है।
हमारी भानजी रुचि ने भी एक प्रसंग बताया था, बाबूजी से पूछा कि नाना आप सबसे ज्यादा प्यार किसे करते हैं..? बाबूजी बोले-प्यार कभी ज्यादा कम नहीं होता है। प्यार तो बस प्यार होता है। या तो होता है या फिर नहीं होता है। प्यार नापने का कोई थर्मामीटर और बाट नहीं बना है, फिर भी लोग अपने अपने तरीके से नापते रहते हैं।
जिंदगी को लेकर मेरे बाबूजी का नजरिया बहुत अलग रहा। विचारों से उनसे सबसे ज्यादा करीब रहने की वजह से असर भी मुझ पर हुआ। ऊपर से मेरी मां। जब तक आंखें खुली रहती थीं, तब तक लोगों पर प्यार उड़ेला करती थी, फिर भी उसका प्यार का सागर हमेशा छलकता रहता था। माता-पिता की ऐसी परवरिश का आनंद भी मुझे खूब मिलता है। मेरी भी उमर 45 से छूटकर 50 की तरफ निकल चुकी है, फिर भी प्यार को लेकर मेरी समझ बाबूजी और मां के समवेत प्यार से अलग नहीं हो पाई।
मेरे बाबूजी बताते हैं कि जब वो आश्रम में पढ़ने गए थे तो उनके साथ नौकर भी गया था। फिर भी उनके गुरुजी बाबूजी के ही भरे पानी से नहाते थे। सुबह पौ फटने से पहले कुएं से गगरा भरकर बाबूजी खींचते, फिर गुरुजी नहाते। कई गगरा पानी नहा डालते। बाबूजी को बहुत बुरा लगता कि आखिर पानी तो नौकर भी भर देता, फिर गुरुजी क्यों उनसे पानी भरवाते हैं। बाबूजी ने आखिरकार पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। घर चले आए। बरसों बाद उन्हें सत्य का आभास हुआ। एक दिन मुझसे बता रहे थे – ‘मैंने इस बात पर तो ध्यान दिया कि वे कुएं से पानी मुझसे भरवा रहे हैं, लेकिन उनकी नजर हमेशा मेरे पांवों पर लगी रहती थी कि मेरा पांव कुएं की जगत पर ठीक से पड़ा है या नहीं। ये उनका प्यार था, जिम्मेदारी भरा प्यार। एक जमींदार के इकलौते बेटे को पहले वो छात्र बनाना चाहते थे, लेकिन बाबूजी के भीतर बैठे ‘जमींदार के बेटे’ ने उन्हें छात्र बनने नहीं दिया। गुरुजी की कठोरता देखी, मन का समंदर नहीं देखा।’ बाबूजी को जब ज्ञान हुआ, तब पढ़ाई की उम्र बीत चुकी थी, लेकिन वो अपने गुरुजी के पास नियमित रूप से जाते थे, उनके पांवों के पास बैठते थे। ये सिलसिला गुरुजी के जीवन पर्यंत चला।
मेरा मानना है कि जो जितना प्यार करेगा, वो उतना ही जिम्मेदार होगा। प्यार जिम्मेदारी का एहसास कराता है और कई बार जिम्मेदारियों के बोझ के नीचे दबकर दिखाई भी नहीं देता, इसे मैं दोनों तरफ से महसूस करता हूं। कोई मां या पिता अपने 3-4 साल के बच्चे को अनजाने स्कूल बस में छोड़ते हैं, तो उसके दिल पर क्या बीतती है, ये वो उस बच्चे को नहीं दिखा सकते। लेकिन उसकी जिम्मेदारी है कि अपने बच्चे के भविष्य के लिए वो ये दर्द बर्दाश्त करे। मैं भी पहले ऐसा प्यार शायद देख नहीं पाता था, आज वो प्यार दिखा नहीं पाता हूं।
जिस तरह से कुछ अहंकारी अपने अहंकार को स्वाभिमान समझ लेते हैं, उसी तरह कुछ लोग मोह को प्यार समझ लेते हैं। ये मोह घातक है। प्यार तो उबारता है, उदार बनाता है, मोह डुबाता है, स्वार्थी बनाता है। ये मोह है, जो कभी-कभी दिल दुखाता है, ये प्यार है, जो सिर्फ आनंद देता है। क्योंकि मोह में अधिकार भाव है, प्यार में कर्तव्य भाव, जिम्मेदारी का भाव।
आज कितना आसान है किसी को भी ‘आई लव यू’ कह देना। अब तो हर रिश्ते में आम हो चुका है। मां-बेटा-बेटी, बाप-बेटा-बेटी, भाई-बहन, दफ्तर के सहयोगियों तक भी तीन शब्दों का ये प्रेमास्त्र आम हो चुका है। ठीक है ये, कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन सिर्फ यही प्यार नहीं है। आपको कड़वा सुनाने वाले कुछ अपने भी आपको बहुत प्यार करते हैं, लेकिन आप देख नहीं पाते, वो दिखा नहीं पाते। उस रिश्ते में भी प्यार कम नहीं होता है, जहां कुछ कहने के लिए मुंह ही न खुल पाए। अब जरूरी थोड़े ही है कि जुबान ही बात करे, आंखें पढ़ने की भी तमीज होनी चाहिए, सामने वाले के दिल की हलचल पढ़ने का हुनर भी तो होना चाहिए
Sabhar- Bhadas4media.com