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आने वाला समय ऑनलाइन मीडिया का है


मोनिका लेवेंस्की और बिल क्लिंटन के अफेयर से जुड़ी खबर एक लीडिंग अमेरिकी मैगजीन के हाथ लगी, लेकिन उसने इसे छापने से इंकार कर दिया। उसके बाद किसी भी मेनस्ट्रीम मीडिया ने उसे नहीं छापा तो इस खबर को एक वेबसाइट ने जगह दी। ऑनलाइन मीडिया पर ब्रेक होने वाली यह सबसे बड़ी खबर बन गयी।
विश्व भर में यह घटना और इसके फॉलोअप फ्रंट पेज खबर बनने लगे। इसी तरह माइकल जैक्सन की मौत की खबर को एक वेबसाइट ने ब्रेक किया तो लाखों लोगों ने इसे गॉसिप का दर्जा दिया। चंद घंटों बाद खबर की पुष्टि हुई। खबर फैलने से इस वेबसाइट को इतने क्लिक मिले कि साइट ही क्रैश हो गई। इस साल ऑनलाइन और सोशल मीडिया के ग्लोबल प्रभाव को जानने से पहले इन दो खबरों की बात करने के अपने अर्थ हैं।
ऑल्टरनेटिव और मेनस्ट्रीम : इन दोनों खबरों के ऑनलाइन या ऑल्टरनेटिव मीडिया के फोरम पर ब्रेक होने को एक मामूली चीज साबित करने के लिए मेनस्ट्रीम मीडिया ने अपने पक्ष में दो तर्क दिये थे। पहला यह कि वहां से न्यूज ब्रेक या किसी मामले में लीड लेना एक तुक्का भर है। दूसरा यह कि अभी भी उनकी खबरों में प्रामाणिकता का अभाव है। लोग ऑनलाइन खबरों को तब तक स्वीकार नहीं करते जब तक कि मेनस्ट्रीम मीडिया उस पर अपनी मोहर ना लगा दे। कुल मिलाकर सामने ये आया कि एजेंडा बनाने का काम उनका है और उसे फॉलो करने का काम ऑनलाइन मीडिया का। ऑनलाइन मीडिया के शुरुआती दौर में इसकी यही तस्वीर कई लोगों के दिमाग में थी।
विकीलीक्स की धमक : यह साल इस मिथ को तोड़ गया। ऑनलाइन मीडिया को मेनस्ट्रीम में जगह पहले ही मिल गई थी। इधर सोशल मीडिया ने अपना अंदाज बदला और अपनी पहुंच और शक्ति की पहचान कराने में सफल रहा। साल 2011 को पूरे विश्व में आक्रोश और बदलाव के साल के रूप में जाना जाएगा। कॉमन मैन के भीतर उबल रहे गुस्से को तीली दिखाने का काम सोशल मीडिया ने किया। अब तक अपनी पहचान-मुकाम के लिए जमीन तलाश रहे ऑल्टरनेटिव मीडिया ने एकदम 20-20 के अंदाज में खबरें पहुंचाने का काम किया। ये खबरें वायरस की तरह फैलने लगी। इजिप्ट के जन विदोह से लेकर कोलावेरी डी की विडियो क्लिप तक मेनस्ट्रीम मीडिया को स्वीकार करना पड़ा कि हां, यह एक इवेंट है। इसके साथ विकीलीक्स को भी जोड़ दें तो फिर किसी दलील की जरूरत ही नहीं बचती।
जब सोशल नेटवर्किंग साइट्स और दूसरे ऑल्टरनेटिव मीडिया ने बाजार में ऐंट्री मारी तो कई लोगों ने इसे काफी कैफे डे का ऑनलाइन संस्करण कहा। शुरुआत एंटरटेनमेंट से हुई थी, सो इसे यूथ का हैंगआउट बता दिया गया। कुल मिलाकर इसे एक ऐसे 'जॉइंट' का दर्जा दे दिया गया जहां युवा अपने स्टाइल में बैठते-गपियाते-बतियाते हैं और फिर उन बातों को भूलकर रियल वर्ल्ड में आगे बढ़ जाते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो ऑनलाइन शगल में असली दुनिया के मुद्दों को प्रभावित करने का माद्दा नहीं है। कुछ वक्त पहले सोशल मीडिया पर शुरू होने वाले पिंक चड्ढी जैसे कुछ अभियानों को असली जिंदगी में सफलता मिली तो कुछ हल्के-फुल्के उदाहरण दिखने शुरू हुए। लेकिन इस साल तो पूरी कहानी ही बदल गई।
घटना दर घटना, मौके दर मौके आते गये और सोशल मीडिया का दायरा बढ़ता गया। जापान में आए सूनामी के बाद अकेले दम सूचना तंत्र का मजबूत जरिया बना ट्विटर। राहत कार्य में भी ट्विटर ने अहम भूमिका निभाई। इजिप्ट और ट्यूनीशिया के आक्रोश की पटकथा फेसबुक पर लिखी गयी। भारत की नई पीढ़ी ने अन्ना के रूप में जो पहला जन आंदोलन देखा, उसमें सबसे मजबूत भूमिका सोशल मीडिया की थी। आईपीएल विवाद से लेकर अन्ना मूवमेंट तक कई मर्तबा पहली सूचना ट्विटर पर आई। एक ट्विटर में शामिल मात्र 140 कैरक्टर ट्रेंड सेटर होने लगे।
जैसा कि हर नए टूल के साथ होता है, ऑल्टरनेटिव मीडिया के साथ भी कुछ एंटी हीरो एलिमेंट चले आए। इनके तंत्र का गलत फायदा भी उठाया गया, जो एक चेतावनी स्वर था कि इसके दूसरे पहलू भी हैं। लंदन में साल के सबसे बड़े दंगे का कारण बनी सोशल मीडिया। नार्वे में ट्विटर पर ऐलान कर आतंकी ने दर्जनों लोगों को गोली मार दी। सुसाइड लेटर के बदले सुसाइड ट्वीट और सुसाइड वाल बनने लगे। नेगेटिव खबरें भी कई हैं। अब भी इसके कंटेंट पर बहस हो सकती है। इसके उपयोग के तरीके पर बहस हो सकती है।
अभी भी अत्यधिक आवेश-आवेग में इनके बहक जाने की आशंका बनी रहती है। प्रामाणिकता के पहलू पर ऑल्टरनेटिव मीडिया को कई परीक्षाएं पास करनी होंगी। लेकिन साल 2011 ने इस बात पर आम सहमति बना दी है कि इस मीडिया ने अपनी जमीन तैयार कर ली है। इसकी अपनी पहुंच है। एजेंडा तय करने की कूवत है और उसे आगे बढ़ाकर मंजिल तक पहुंचा देने की क्षमता भी है।
ताकत का एहसास : मुंबई में कुछ गुंडे जब रूबेन की हत्या अपनी गर्लफ्रेंड को छेड़खानी से बचाने के कारण कर देते हैं तो उसके दोस्त न्याय के लिये मेनस्ट्रीम मीडिया तक नहीं पहुंचते। वे खुद अपनी ताकत पहचानते हैं और सोशल मीडिया पर लड़ाई का बिगुल बजाते हैं। इस साल मीडिया के लिए एक बड़ी उपलब्धि है ऑल्टरनेटिव मीडिया को मिलने वाली स्वीकार्यता। जानकार मानने लगे हैं कि आने वाले वक्त में बदलाव की स्क्रिप्ट सोशल मीडिया द्वारा ही लिखी जाएगी। ऑनलाइन की खबरें भी मेनस्ट्रीम मीडिया में जाहिर होने वाली असल दुनिया जैसी ही हकीकत भरी होंगी। खबरों का ब्रेक होना एक सुबह का इवेंट नहीं, चौबीसों घंटे चलने वाली कवायद होगी। यह साल बता रहा है कि इस शुरुआत की सुबह सुनहरी है।
नरेंद्र नाथ का यह लेख नवभारत टाइम्‍स में प्रकाशित हो चुका है, वहीं से साभार लिया गया है

Sabhar:- Bhadas4media.com