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मीडिया नोट छापने की मशीन नहीं



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आपने पत्रकारिता की शुरुआत कहां से और कैसे की ?
 
इसके लिए तो मुझे 26 साल पीछे जाना होगा। एक अखबार निकलता था ‘समय’ उसके लिए लिखता रहा और फिर वहीं पर काम मिल गया और नौकरी करने लगा। फिर, मैंने सोचा कि मुझे कोर्स करके अच्छी तरह से पत्रकारिता करनी चाहिए। तब, मैंने ‘सागर विश्वविधालय’ से पत्रकारिता में एक साल का कोर्स किया। इस तरह से, पत्रकारिता का सफर शुरू हुआ।  बाद में दिल्ली में इंटर्नशिप के लिए आ गया। यहां ‘पीटीआई’ और ‘एनबीटी’ में इंटर्नशिप की। इस तरह आप कह सकते हैं कि 1985 में मैंने पत्रकारिता की शुरुआत की। उन्हीं दिनों बंगलुरू से एक अखबार शुरू हो रहा था ‘आदर्श पत्र’ उससे जुड़ा और उसकी लॉन्चिंग टीम का हिस्सा बना। उसके बाद में इलाहाबद चला आया और ‘माया’ पत्रिका के साथ जुड़ गया। साल भर वहां रहने के बाद, फिर दिल्ली आया और दिल्ली से गुवाहटी चला गया वहां मैं ‘हिंदी सेंटिनलअखबार का संपादक बना और उसे लॉन्च कराया। दो साल वहां रहने के बाद भोपाल चला आया जहां भोपाल संस्करण लॉन्च होने वाला था उस संस्करण के साथ बतौर असिस्टेंट एडिटर जुड़ गया। फिर दिल्ली आ गया और यहां पर ‘समय-सूत्रधार’ का एक्जीक्यूटिव एडिटर बना। वह पत्रिका करीब साल भर चली। फिर फ्रीलांसिंग का दौर आ गया। इसके बाद से टीवी का सफर शुरू हुआ और विनोद दुआ के प्रोजेक्ट के साथ जुड़ गया। वहां  मैंने रिपोर्टिंग की, प्रोडक्शन का काम किया लगभग दो साल का अनुभव बहुत ही अच्छा रहा। वहीं, हिंदी मैगजीन ‘पहल’ शुरू हुई जिसके साथ करीब चार साल रहा। फिर ‘सुबह-सवेरे’ से जुड़ गया जहां मैं कंटेंट देखने के साथ-साथ एंकरिंग भी करता था।  उसी वक्त, ‘सहारा’ अपना चैनल लॉन्च करने जा रहा था तो मैंने ‘सहारा’ ज्वाइन कर लिया फिर यूपी चैनल लॉन्च होने पर प्राइम टाइम में एंकरिंग भी की। यह चैनल कुछ ही दिनों में सुपरहिट हो गया। लेकिन प्रबंधन के साथ अनबन के चलते वहां से इस्तीफा देना पड़ा। फिर, ‘एस वन’ चैनल को लॉन्च करवाया और उसे दिल्ली का नंबर वन चैनल बनाया। लेकिन परिस्थितियां कुछ ऐसी होने लगी कि मैंने वहां से भी इस्तीफा दे दिया। वहां से, ‘वॉयस ऑफ इंडिया’ पहुंचा जहां मुझे सभी रीजनल चैनल की बागडोर दी गई जिसमें हिंदी राज्यों के लिए न्यूज चैनल लॉन्च करने थे। हमने एक ही दिन में दो चैनल राजस्थान और मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ लॉन्च किया। दोनों चैनल हिट भी हुए। लेकिन फिर प्रबंधन के तौर-तरीके बदल गये जो मुझे अच्छा नहीं लगा और मैंने वहां से भी अपना नाता तोड़ लिया। उसके बाद मैंने, पटना में प्रकाश झा के चैनल ‘मौर्य टीवी’ जो पिछले दो साल से लॉन्च नहीं हो रहा था, उसे लॉन्च कराया। साल भर काम करने के बाद मुझे एक इस नेशनल चैनल संभालने का अच्छा मौका मिला और  मैंने यह ऑफर स्वीकार कर लिया।    
 
आप इतने संस्थानों के साथ जुड़े रहे हैं सबसे अच्छा अनुभव कहां का रहा ?
पटना में, ‘मौर्य टीवी’ के शुरुआती दिनों को ही ले लें, तो यह बहुत ही अच्छा अनुभव रहा। एक दूसरे प्रदेश में जाकर चैनल लॉन्च कराना जहां पर करीब नब्बे फीसदी भर्ती हो चुकी हो और  उनमे से अधिकत्तर लोगों ने कभी टीवी में काम ही नहीं किया था उनके साथ मिलकर काम करके चैनल लॉन्च कराना और एक मुकाम तक ले जाना सबसे अच्छा अनुभव था। इसी तरह, ‘एमपी चैनल’ और ‘एस वन’ चैनल का अनुभव भी काफी अच्छा रहा। ‘सुबह-सवेरा’ का तजुर्बा हर जगह काम आया। इसकी टीम अच्छी थी, क्रिएटिव थी, कमिटेड थी। वो मेरे लिए सीखने का एक अच्छा प्लेटफॉर्म था, जहां मैंने बहुत कुछ सीखा भी। वहां बहुत मजा आया क्योंकि प्रिंट से टीवी में आया था।  सबसे बुरा अनुभव ‘वीओआई’ का रहा, क्योंकि बहुत सारे लोग बहुत सारी उम्मीदें लेकर अच्छा काम करने की ललक के साथ वहां पहुंचे, लेकिन प्रबंधन के अनैतिक तौर-तरीकों की वजह से जो चीजें बन रही थी वो पहले ही बिखर गई।
 
अनैतिक चीजों का क्या मतलब निकाला जाए ? 
पेड न्यूज...। वो खबरों की खरीद-बिक्री करना चाहते थे। मुझे ये बिल्कुल भी पसंद नहीं है। मुझे नहीं लगता कि ‘एनडीटीवी’, ‘स्टार’, ‘जी’ और ‘आज तक’ में ऐसा कुछ होता होगा। लेकिन उनका मकसद था कि पूरे सिस्टम को भ्रष्ट करके पत्रकारों को भ्रष्ट बनाकर और साइड में रखकर खबरों का धंधा करना। मैंने ये चीजें पहले भी स्वीकार नहीं की और ना ही आगे करूंगा। जहां भी अगर ऐसी स्थितियां बनी है या बनेगी तो मैं अपने आपको इससे अलग कर लेता हूं।
 
तो आपकी पत्रकारिता को लेकर क्या राय है ? 
साधारण सी बात है कि एक पत्रकार का काम होता है कि वो समाज की किसी घटना को अपनी जानकारी के आधार पर सत्यतम ब्यौरा लोगों को दे। ना कि वो तथ्यों को तोड़े-मरोड़े। और इसी में उसके पेशे की ईमानदारी है। एक सामाजिक सरोकार है जिसे पत्रकारिता के साथ जोड़कर देखा जाता है। अगर सरोकार नहीं है, तो कोई भी काम नहीं किया जा सकता है, पत्रकारिता ही क्यों। हर एक पेशे की अपनी नैतिक जिम्मेदारी होती है चाहे वो पुलिस वाला हो, वकील हो, डॉक्टर हो, नेता हो। मैं अपने आप को एक पत्रकार मानता हूं तो मेरी जिम्मेदारी बनती है कि मैं पत्रकार रहते हुए अपने दायित्व का ईमानदारी से निर्वहन करूं। इस तरह के समझौते मैंने ना कभी कबूल किये और ना ही करूंगा।
 
‘न्यूज एक्सप्रेस नाम के पीछे आपकी क्या सोच रही है? 
यह ऐसा नाम है जो कि लोगों के जेहन में आसानी से बैठ जाता है और जुबान पर अच्छे से चढ़ जाता है। क्योंकि एक्सप्रेस और न्यूज दोनों ऐसे शब्द हैं जिनका इस्तेमाल पत्रकारिता में अक्सर किया जाता है। दूसरे इंडस्ट्री के नजरिये से भी देखें तो ये दोनों शब्द सटीक हैं। टीवी में देखा जाता है कि खबरें कितनी तेजी के साथ दिखाई जा रही हैं। इन दोनों चीजों को ध्यान में रखते हुए यह नाम रखा गया है।
  
अभी जो न्यूज चैनल के परंपरागत विषय हैं मसलन क्रिकेट, सिनेमा और क्राइम। क्या आप उन्हें भी अपने अंदर की खबर के कॉन्सेप्ट में शामिल कर रहे हैं ?  
देखिए, जैसा मैंने कहा कि हर जगह एक राजनीति होती है। मीडिया दिखाता है कि शाहरुख खान और सलमान खान में तू-तू, मैं-मैं है। ये क्या है, पब्लिशिटी है या फिर एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश है। इस पर हम लोग फोकस करेंगे। खेल के मैंदान में क्या है? जो खेल चल रहा है वो क्या है? वो खेल के हित में हो रहा है या फिर अपने हित में हो रहा है। मुझे लगता है कि इस तरह का कंटेंट पसंद किया जायेगा। खास तौर पर हिंदी पट्टी में राजनीति को लेकर जितनी ललक है शायद ही और कहीं पर ऐसा हो। आज तक जो दर्शक राजनीति का जो रूप देखते आये हैं, उससे तंग आ गये हैं। अगर उनके सामने राजनीति का एक नया कंटेंट परोसा जाये तो उसे लोग जरूर पसंद करेंगे। मेरा तो यहीं कहना है कि कभी भी ऐसा नहीं सोचो की आप ‘इंडिया टीवी’ या ‘आज तक’ जैसी टीआरपी हासिल करना चाहते हैं। आप अपना अच्छा कंटेंट बनाओ, अपनी पहचान अपने अच्छे काम के जरिए से बनाओ तो आप अपने आप सफल होते जाओगे। मेरे हिसाब से मार्केट दो तरीकों से चलता है एक तो नंबरों के माध्यम से और दूसरा मार्केट में अच्छी इमेज से। अगर मार्केट में आपकी अच्छी इमेज है तो आपका चैनल अपने पैरों पर आर्थिक रूप से खड़ा हो सकता है।
 
 
आप डिस्ट्रीब्यूशन पर बहुत पैसा खर्च कर रहे है तो क्या आप भी ‘जो दिखता है वो बिकता है की पॉलिसी पर काम कर रहे हैं? 
हां, आपकी ये बात तो सही है कि ‘जो दिखता है वो बिकता है’। अगर कोई चैनल दिखेगा नहीं तो उसके लिए लोगों की राय कैसे बनेगी? विज्ञापनदाता आपको विज्ञापन क्यों देगा? डिस्ट्रीब्यूशन का हिस्सा तो मजबूत होना चाहिए। कम से कम अगर हम अच्छा काम कर रहे हैं तो वो दिखना तो चाहिए, वो डिस्ट्रीब्यूशन के जरिए ही दिख सकता है। फिर, हमारे दर्शक तैयार होंगे और उसे पसंद करेंगे और उन्हीं को ही विज्ञापनदाता टारगेट करते हैं। अगर, मेरे पास मेरा दर्शक वर्ग नहीं है तो मेरे पास विज्ञापनदाता आयेगा क्यों? चाहे मैं कितना भी अच्छा कंटेंट बना लूं। लेकिन हमारे देश मे यह दुर्भाग्य है कि यह सिस्टम बहुत ही खर्चीला है। और यह चैनलों के लिए एक जहर की तरह काम कर रहा है। यह चैनलों की मजबूरी हो गई है कि वो इस पर ज्यादा खर्च करें। ऐसे में लोग कंटेंट पर होने वाले खर्च में कटौती करते हैं जबकि कंटेंट को अच्छा या मजबूत बनाने के लिए उस पर भी खर्च करने की जरूरत है। सरकार और इंडस्ट्री को यह देखना चाहिए कि इस बुराई से कैसे निजात मिले। और इसके लिए एक वाजिब फीस तय कर देनी चाहिए।
 
लोगों का मानना है कि आप जिस चैनल को लॉन्च कराते हैं उससे पैसे बनाकर निकल लेते हैं तो इस पर आप कोई सफाई देना चाहेंगे ? 
देखिए, लोगों की बातों का क्या जवाब दूं। लेकिन अगर आप मेरे अतीत में जायेंगे तो ऐसी कोई भी बात निकलकर नहीं आयेगी। मैने जो जोखिम उठाएं हैं, कितनी बार बेरोजगार रहा हूं किन-किन संकटों और संघर्षों से निकल कर यहां पहुंचा हूं, उनके बारे में लोगों को पता नहीं है। और लोग बहुत ही जल्दी निष्कर्ष निकाल लेते हैं। मेरी उनसे कोई शिकायत या गिला-शिकवा नहीं है। मैंने सैलरी के अलावा एक भी पैसा नहीं लिया है। जब किसी संस्थान के साथ जुड़ता हूं, तब  जब तक वहां काम करने की परिस्थितियां हो या फिर इंज्वाय कर रहा हूं तभी तक काम करता हूं। मैं मन को मारकर या फिर अपनी इच्छा के खिलाफ जाकर एक अच्छा नौकर तो बन सकता हूं, लेकिन एक अच्छा पत्रकार नहीं बन सकता। तो लोगों को मुझ पर विश्वास करना चाहिए कि ये इंसान इतने जोखिम लेता रहता है। अगर लोग इस नजरियें से देखे तो दूसरी चीजें भी उन्हें देखने को मिलेंगी। दूसरी वजह है कि लोगों को मेरे बारे में बहुत ही कम पता है। ऐसा तो हर जगह होता रहता है अगर ऐसा होता तो मेरे पास आज अरबो-खरबों रुपये होते। कुल मिलाकर मेरे पास मेरा अपना फ्लैट है जिस पर अभी भी बीस लाख रुपये कर्ज है।
 
तो आप पत्रकारों द्वारा संपत्ति का ब्यौरा देने के पक्ष में हैं ? 
मुझे लगता है कि पत्रकारों को संपत्ति का ब्यौरा देना चाहिए। एक बार, मैं अपनी संपत्ति घोषित करने का ईरादा भी किया था। लेकिन यहां पर एक बात है कि अगर मैं अपनी संपत्ति घोषित कर दूं तो यह कैसे तय होगा कि जो आंकड़ें मैं दे रहा हूं वो सही है, इसे क्रॉस चेक करने के लिए भी तो कुछ होना चाहिए। वैसे भी मुझे नहीं लगता कि ईमानदार होने के लिए जरूरी नहीं है ईमानदारी का सर्टिफिकेट लिया जाए। इसके लिए अंतरात्मा का सही होना बहुत जरूरी है।
 
आप एडिटर-इन-चीफ और सीईओ दोहरी भूमिका में हैं, किस भूमिका के साथ न्याय कर पा रहे हैं.? 
कोशिश तो मैं कर रहा हूं कि दोनों के साथ ही न्याय करूं। वैसे भी मैं एक पत्रकार ही हूं भले ही मैं एक सीईओ की भूमिका निभा रहा हूं। मैं पत्रकार के रूप में अपने आप को ज्यादा सक्रिय मानता हूं। क्योंकि पॉलिटिकल चैनल का जो विचार है वो मेरे दिमाग की ही खुराफात है। और मुझे लगता है कि हम इस विचार को साकार रूप दे पाएंगे।
 
आप अपने पाठकों, दर्शकों को क्या संदेश देना चाहेंगे ? 
मैं तो यहीं संदेश देना चाहूंगा कि एक बार दर्शकों को सोचना चाहिए कि अगर कोई चैनल खराब कंटेंट दिखा रहा है तो लोग उस चैनल को क्यों देख रहे हैं? उसके खिलाफ आवाज उठायें और उसका बहिष्कार करें। और जो अच्छी चीजें दिखा रहे हैं उनको प्रोत्साहित करें। समाज में लोगों की अलग-अलग भूमिका होती है। उन्हें जो खाना परोसा जाता है कि उसमें भी चुनाव करने का हक है कि मैं ये खाउंगा और इसे रद्दी की टोकरी में डालूंगा। अगर इस नजरिये से दर्शक टीवी देखना शुरू करेगा तो सभी चीजें कंट्रोल हो जायेगी। मेरा तो यही कहना है कि दर्शक अपने रिमोट का अच्छे से इस्तेमाल करे। हम लोग एक अच्छे चैनल के साथ आ रहे है। इसे देखें और आगे बढ़ने में हमारा सहयोग करें।
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