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बेशर्मी की हद है ये पत्रकारिता

जगमोहन फुटेला

परसों सी.बी.आई. ने पंजाब के एक सीनियर भाजपाई मंत्री के लिए रिश्वत लेते संसदीय सचिव को पकड़ा,कल मंत्री को सी.बी.आई. ने पूछताछ के लिए बुलाया है और आज ट्रिब्यून में एक खबर है.खबर में शिकायतकर्ताओं की ऐसी तैसी की गयी है.कहा गया है कि शिकायतकर्ता मनप्रीत उस देवेंदर का दोस्त है जो मंत्री के लिए दलाली करते हुए पकड़ा गया है. खबर ट्रिब्यून के विशेष संवाददाता और प्रेस क्लब के प्रधान नवीन गरेवाल ने लिखी है. कैसे एहसान उतारा उन्होनें बादल सरकार का,इसकी बात करेंगे.पर पहले खबर का वो हिस्सा देखिए . Naveen Garewal

“The corruption case registered by the CBI against Raj Khurana, Punjab ’s Chief Parliamentary Secretary (Finance) and BJP MLA from Rajpura today became murkier with the Punjab Automobile Mechanics Association alleging that both co-accused Devinder and CBI complainant Manpreet were partners in many cases of land grabbing and illegal land sales.” 

मोटे तौर पे मामला ये है कि चंडीगढ़ के साथ सटे पंजाब के कसबे जीरकपुर में मैकेनिकों ने मिल कर करीब चौदह एकड़ ज़मीन खरीदी.आरोप ये है कि पंजाब के समाज कल्याण मंत्री स्वर्णा राम ने नगर निकाय मंत्री मनोरंजन कालिया को इस प्लाट पर मोटर मार्केट न बनाने देने के लिए एक नोट लिखा (हालांकि समाज कल्याण विभाग का इस से कोई सरोकार नहीं था) . उस नोट की मार से बचाने के लिए डेढ़ करोड़ रूपये की रिश्वत मांगी गई.मनप्रीत जब देवेंदर के ज़रिये कालिया से डेढ़ करोड़ में हुई डील में से डेढ़ लाख रूपये देने खुराना के घर गया तो सी.बी.आई. ने खुराना को धर दबोचा.उस देवेंदर को भी.दोनों को अदालत ने जेल भेज दिया.अब सी.बी.आई. ने स्वर्णा राम और कालिया को तलब किया है.उस पूछताछ से एक दिन पहले ये खबर है. नवीन की खबर कहती है खुराना को पकड़वाने वाला मनप्रीत और देवेंदर न सिर्फ दोस्त बल्कि बिजनेस पार्टनर हैं.जिस गाड़ी में देवेंदर खुराना के घर गया वो एक करोड़ की है. ये भी कि एसोसिएशन दोफाड़ है.और ये भी कि ये सारी बातें पत्रकारों को जीरकपुर से आए बीस परिवारों ने बताईं हैं.

आइए,अब ज़रा आकलन कर लें. पहले तो इस खबर की टाईमिंग देखें. एक की गिरफ्तारी और दो की पेशी के बीचोंबीच.दूसरे,ये कि ये जानकारी देने के लिए बीस परिवार इकट्ठे हुए.किसने किए? समझना मुश्किल नहीं है. तीसरे,कि दोनों शिकायतकर्ता देवेंदर और मनप्रीत दोस्त हैं,पार्टनर हैं.और चौथे ये कि एसोसिएशन (के दूसरे धड़े) को पंजाब के किसी नेता या मंत्री की किसी भूमिका की कोई जानकारी नहीं है.खबर का वो हिस्सा भी देखिए....

“Though, the association denies any knowledge about the role of Khurana or any Punjab politician in the CBI raid, they claim that since there were several cases and complaints of the association pending before various authorities, the CBI could be trailing Devinder and others”.

अब इस सारी खबर का एक और दिलचस्प पहलू और भी है. खबर कहती है कि एसोसिएशन (गौर करें,एसोसिएशन) इसका खंडन करती है कि सी.बी.आई. का छापा डलवाने में खुराना या पंजाब के किसी नेता का हाथ हो सकता है. लगे हाथ इसे भी समझते चलें. ये सफाई कौन और क्यों दे रहा है कि सी.बी.आई. को कालिया तक पंहुचाने में पंजाब के किस नेता का हाथ नहीं है. हो सकता है या नहीं ये सफाई भी सरकार दे,पार्टी दे या कुछ अरसा पहले कालिया से सख्त नाराज़ माने जाते रहे सुखबीर बादल दें, एसोसिएशन कैसे दे रही है? और कोई भी दे रहा है तो क्यों दे रहा है? किसको शक है कि ये छापा किसी नेता ने ही डलवाया है?

खबर का ये हिस्सा पूरा किस्सा बयाँ करने के लिए काफी है. खबर का मतलब भी. मकसद भी. मौका भी. पत्रकारिता में सीनियर पोजीशनों पे रह चुके लोगों की समझ से इसे 'प्लांट' कहते हैं. वर्ना कोई पूछे नवीन गरेवाल से कि एसोसिएशन पहले से बंटी थी तो उसकी खबर अब क्यों? बीस परिवारों को पत्रकारों से मिलवाने का प्रबंध किसने किए और क्यों? फिर परिवारों ने कहा क्या कि देवेंदर एक करोड़ की गाड़ी में आया? क्या ये भी कोई गुनाह है? दोनों का दोस्त होना भी कोई जुर्म है? या मिल के कोई कारोबार करना? हो सकता है कि दोनों ने मिल के मंत्रियों की औकात नापने और फिर उन्हें नपवाने की स्कीम भी बनाई हो. तो क्या इस से मंत्रियों के गुनाह,गुनाह नहीं रहते? 

अगर अपने आप से भी कह रहे हैं तो कितनी बेशर्मी से कह रहे हैं नवीन गरेवाल कि इन बीस परिवारों की समझ से इन नेताओं और मंत्रियों की कहीं कोई भूमिका नहीं है. अरे भाई, मंत्रियों की भूमिका या अपराध है या नहीं इसका फैसला इस देश में क्या ये बीस परिवार या आप करेंगे? क्या चाहते हैं आप कि सी.बी.आई. और अदालतें आपकी खबर को मानें अपील और आपकी इस दलील पर केस को दफ़न कर दें? और फिर खबर लिखनी ही है तो लिखो. सरकार के (ट्रिब्यून के न चाहने के बावजूद) प्रेस क्लब पे किए एहसान उतारने ही हैं तो उतारो. ईमान बेचना ही है तो बेचो. कम से कम खुद अपने आप को तो नंगा न करो ये लिख के कि इन नेताओं की कोई गलती नहीं है. आपको ये बात किसी ने कही तब भी नहीं लिखनी चाहिए. क्या जानते हैं आप,नहीं जानते तो अपने जस्टिस सोढ़ी साहब से पूछ लीजिए कि ऐसा लिख के आप इस देश की न्याय बांचन प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं!अपराध भी. 

हम सब ने देखा,सुना और पढ़ा था कि भ्रष्टाचार का सुराग देने वालों का ये व्यवस्था क्या हाल करती है.मंजुनाथ का मामला अभी कोई बहुत पुराना नहीं है. मगर ये पहली बार हुआ है कि कोई पत्रकार भ्रष्ट की बजाय व्हिसल ब्लोअर के पीछे ही हाथ धो के पड़ा है.

जर्नलिस्टकम्युनिटी ने ट्रिब्यून के सम्पादकीय प्रबंधन से बात की.उनका कहना है कि इस खबर के पीछे की कहानी जानी जाएगी


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