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प्राइवेट चैनल हमारी फीड लेकर जनता की सेवा नहीं कर रहे


प्राइवेट चैनल हमारी फीड लेकर जनता की सेवा नहीं कर रहे हैं

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राजीव मिश्रा ने दिसंबर 2011 में लोकसभा टेलीविजन के चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफिसर के तौर पर ज्वाइन किया था। वे ब्रॉडकास्ट/मीडिया प्रोफेशनल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया रेटिंग काउंसिल ऑफ इंडिया के संस्थापक हैं। यूरोप में टेलीविजन रेटिंग मूल्यांकन की दुनिया में उनके योगदान को 1996 में आईटीयू/ईबीयू (इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन/यूरोपियन ब्रॉडकास्टिंग यूनियन) ने मान्यता दी थी।
मिश्रा ने इससे पहले ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’, ‘स्टार टीवी’, अमेरिका के ‘टीवी एशिया’, ‘यस टीवी’, ‘बैग फिल्म्स’, ‘रिलायंस इंफोकॉम लिमिटेड’, ‘सीने माया मीडिया इंक’ और ‘पी एंड एम’ समूह में कार्य किया है। इसके अलावा, वे भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों के द्वारा विभिन्न मीडिया सलाहकार समिति के नामित सदस्य हैं।
 
इसके अलावा, वे एसोसिएशन ऑफ रेडियो ऑपरेटर्स फॉर इंडिया (एआरओआई) के संस्थापक और पहले प्रेसिडेंट रह चुके हैं। मिश्रा को हाल ही में सूचना एवं प्रसारण/सूचना प्रौद्योगिकी/टेल्को एंड कन्वर्जेंस सेक्टर ऑफ इंडिया के लिए योजना आयोग के द्वारा गठित वर्किंग समूह-चार के लिए नामित किया गया है। 

हमसे बात करते हुए राजीव मिश्रा ने लोकसभा टीवी से जुडे अनेक पहलुओं के बारे में विस्तार से चर्चा की।
 
आप लंबे समय तक प्राइवेट ब्रॉडकॉस्ट कंपनियों के साथ रहे, फिर पब्लिक ब्रॉडकॉस्ट की ओर कैसे आना हुआ?
ग्रेजुएशन की पढ़ाई के दौरान, मैंने प्राइवेट और पब्लिक दोनों ही ब्रॉडकास्टर के हर पहलुओं के बार में पढ़ा। मुझे याद है कि पूरे वर्ल्ड से विजिटिंग प्रोफेसर हमारे कॉलेज में आया करते थे। उन्हीं में से एक बीबीसी के डायरेक्टर जनरल, सर माइकेल चेकलैंड भी थे। एक बार उन्होंने ब्रिटेन में पब्लिक सेक्टर में काम करने वाले ब्रॉडकास्टर की फ्रीडम का एक उदाहरण दिया। किया। उन्होंने बताया कि जब मार्गेट थैचर युवा थीं तो उन्होंने बीबीसी के किसी कार्यक्रम में हिस्सा लिया था। बाद में वे ब्रिटेन की प्रधानमंत्री बनीं तो उन्होंने उस कार्यक्रम के प्रसारण के लिए बीबीसी के डायरेक्टर जनरल को एक पत्र लिखा। लेकिन प्रोग्राम को देखने के बाद, बीबीसी के डायरेक्टर जनरल ने इस कार्यक्रम के प्रसारण से मना कर दिया। कुछ दिनों के बाद, प्रधानमंत्री थैचर ने डायरेक्टर जनरल को बुलाया और उनसे प्रोग्राम के प्रसारण नहीं करने का कारण पूछा। डायरेक्टर जनरल ने कहा कि प्रोग्राम की गुणवत्ता ऐसी नहीं थी जिस तरह के प्रोग्राम का प्रसारण बीबीसी से होता है, यही कारण है कि उन्होंने इसका प्रसारण नहीं किया।
भारत में भी मैं खुद से देखना चाहता था कि किस तरह से पब्लिक ब्रॉडकास्टर संस्था काम करती है।

कई देशों में पब्लिक ब्रॉडकास्टर संस्था की स्थिति एक जैसी ही है। भारत में लोगों में यह धारणा है कि सरकार द्वारा एडेड चैनलों पर नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों का भारी दबाव रहता है।  मैं लोकसभा टीवी के साथ काम करते हुए आपको विश्वास दिलाता हूं कि यह धारणा पूरी तरह से गलत है। लोकसभा टीवी पूरी तरह से लोकसभा सचिवालय के अंतर्गत है, लेकिन प्रोग्राम के बारे में हमारे निर्णय में कोई हस्तक्षेप नहीं  होता है औऱ यह स्वतंत्र रूप से कार्य करता है। हम लोग लोकसभा अध्यक्ष की तरह हैं जो अराजनीतिक होते हैं। लोकसभा टीवी पूरी तरह से  तटस्थ है।
 
आपने कहा है कि पब्लिक ब्रॉडकास्टर के बारे में लोगों की धारणा गलत है। आप इस धारणा को बदलने के लिए क्या कर रहे हैं?
मेरी प्रोग्रामिंग लाइन-अप सभी कुछ कह देती है। कई निजी चैनल हैं उनके कार्यक्रम को देखिए, लेकिन हम संतुलित और वास्तविक हैं। हम लेफ्ट, राइट या सेंटर किसी के साथ नहीं हैं। हमारा काम जनता के बीच जागरूकता पैदा करना और संतुलित विचारों के साथ सूचना देना है।

आम घारणा है कि सरकारी चैनल है सरकार की कमजोरियों पर  सवाल नहीं उठायेंगे। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए आपने क्या रणनीति बनाई है?
हमारे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ। हम बहुत स्वतंत्र चैनल हैं।  मेरा मानना है कि निजी चैनलों पर बहुत ज्यादा दबाव होता है, यह कॉरपोरेट घरानों की ओर से होता है, जो उन्हें विज्ञापन देते हैं। मैं नहीं मानता कि जिस तरह की स्वतंत्रता का आनंद हम (लोकसभा टीवी) उठा रहे हैं, किसी अन्य चैनल के पास कभी हो सकती है।

कंटेंट के विचार से चैनल की स्थिति क्या है?लोकसभा टीवी निश्चत रूप से मास चैनल नहीं है। क्या आप सहमत हैं?
मैं इससे सहमत नहीं हूं। इससे पहले, लोकसभा टीवी का ओवरऑल लुक बहुत ज्यादा सीरियस था, जिससे लोगों को लगता था कि हमारा (लोकसभा) चैनल सिर्फ बौद्धिक लोगों को ही टार्गेट करता है। लेकिन मेरा मानना है कि यह एक गंभीर चैनल के लिए यह जरूरी नहीं है कि हम हमेशा उदास दिखें। हम संपूर्ण जनता को चैनल के माध्यम से टार्गेट कर रहे हैं और हम इस प्रक्रिया को शुरू भी कर चुके हैं। हम एक फोकस्ड और सीरियस चैनल हैं, लेकिन अधिक से अधिक लोगों को आकर्षित करने के लिए हमें और लाइव होना पड़ेगा। अगर आप भारत की स्थिति को देखें, तो आप पायेंगे कि निजी टेलीविजन इंडस्ट्री बदलाव के दौर से गुजर रही है। और वे बहुत ज्यादा फोकस्ड नहीं हैं। न्यूज़ चैनलों को उदाहरण के तौर पर ले सकते हैं। उनसे समाचारों को दिखाने की अपेक्षा की जाती है, लेकिन दिन के समय में, वे सिर्फ जनरल एंटरटेनमेंट चैनलों के कार्यक्रम का कॉपी पेस्ट करके कार्यक्रमों का प्रसारण करते हैं।

लोकसभा टीवी के सीईओ के तौर पर, टीआरपी को लेकर आपकी सोच क्या है?
लोकसभा टीवी टीआरपी की चूहा दौड़ में शामिल नहीं हैं। इंडस्ट्री में कई लोग हैं जिन्होंने रेटिंग के तरीकों पर सवाल उठाया है।  भारत में टीआरपी सिस्टम बेहतर नहीं है है। प्रामाणिकता का स्तर प्राप्त करने में इसे और 10 साल लग जायेंगे। इसलिए, मैं टीआरपी पर विश्वास नहीं करता। टीआरपी मीडिया प्लानर्स और बायर्स के लिए मायने रखता है, जिन्हें आंकड़ों की जरूरत होती है। लेकिन मेरा मानना है कि मीडिया प्लानर्स को खुद रिसर्च करना चाहिए और तब उन्हें मीडिया बाइंग की योजना को कार्यान्वित करना चाहिए। उन्हें पूर्ण रूप से टीआरपी पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।
 
हाल के मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, कुछ मुख्य मीडिया प्लेयर्स हैं जिन्होंने पिछले तीन सालों से लोकसभा टीवी से लिए गए फुटेज का भुगतान नहीं किया है और इस सिलसिले में 3 करोड़ से ज्यादा बिल लंबित हैं। इस पर क्या प्रगति हुई है?
मैं इस पर काफी गंभीरता पूर्वक कार्य कर रहा हूं।लोकसभा टीवी से कुछ मिनटों का फीड लेना ठीक है और हम इस पर कोई आपत्ति नहीं उठा रहे हैं। लेकिन जब आप अपने चैनल के लाभ के लिए पूरा का पूरा कंटेंट उठायेंगे तब हम ऐसा नहीं होने देंगे। लोकसभा टेलीविजन की यूएसपी (खासियत) यह है कि इसके पास संसद के सत्र के प्रसारण का विशेषाधिकार प्राप्त है। इसलिए अगर आप लोकसभा चैनल से कंटेंट ले रहे हैं, तो आपको इसके लिए भुगतान करना होगा। सभी केबल ऑपरेटर के लिए यह आवश्यक है कि वह लोकसभा टीवी का प्रसारण करे, इस तरह से हम हर घर में मौजूद है। इसलिए, अगर आप हमारे चैनल से कंटेंट उठाते हो तो आपको इसके लिए भुगतान करना चाहिए।

हालांकि, लोकसभा टीवी के रेट चार्ट पर हम काम कर रहे हैं जिससे डील में पारदर्शिता बनी रहे। नेशनल और रीजनल ब्रॉडकास्टर्स के लिए हम उसी के अनुसार, रेट का निर्धारण कर रहे हैं। जिससे कोई भी ब्रॉडकास्टर्स अनावश्यक तौर पर परेशान ना हो। इसके अलावा, हम सामर्थ्य कारक को भी ध्यान में रखेंगे।

लेकिन प्राइवेट कहते हैं कि हम तो सरकारी चैनल जनता की सेवा के लिए फीड ले रहे हैं?
यह लॉजिकल नहीं है। हमें भी विज्ञापन मिलता है। हम भी अपने कैमरामैन, एडिटोरिएल टीम और अन्य कर्मचारियों को भुगतान करते हैं। इसके अलावा, हम अपलिंकिंग कॉस्ट का भुगतान करते हैं। इसलिए हमें, लोकसभा टीवी को चलाने के लिए पैसे चाहिए। मैं, अपने कर्मचारियों को अच्छा पैसा देना चाहता हूं क्योंकि मैं अच्छा मानव संसाधन चाहता हूं। हम पूरी तरह से संसदीय राजकोष पर निर्भर नहीं रहना चाहते हैं। और ना ही मैं ज्यादा पैसे मांग रहा हूं। आप हमारे कंटेंट का उपयोग करके रेटिंग लाइए जिससे आपको विज्ञापन मिले, लेकिन आप उस सोर्स को जिससे आपको टीआरपी मिल रही है उसे पैसा ही न दें, यह कौन सा तर्क है?

इस मुद्दे पर निजी ब्रॉडकास्टर्स की क्या प्रतिक्रिया है?
अनौपचारिक तौर पर मैं उनमें से कईयों से मिला हूं और वे सभी दोस्ताना ढंग से समस्या का हल करने को तैयार हैं।

लंबित बिल के बारे में आपका क्या कहना है?
हम उन्हें अच्छे संकेत के साथ राजी कर रहे हैं और बार-बार पत्र दे रहे हैं।

वे कौन से चैनल हैं? क्या आप उनके नाम बता सकते हैं?
 मैं उनके नाम नहीं लेना चाहता।

2006 में जब लोकसभा टीवी को लॉन्च किया गया था तो यह कहा गया था कि इसके ऑपरेशनल खर्चे को विज्ञापन से पूरा किया जाएगा। जो शुरुआत में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के लिए ही खोला गया था। यह चैनल के लिए किस तरह से काम कर रहा है? क्या अभी भी वही नियम हैं
हम लोग अभी तक पुरानी पॉलिसी का पालन कर रहे हैं और समय के साथ इस पर बने रहना चाहते हैं।

जब आप लोकसभा टीवी के लिए विज्ञापनों को टार्गेट करते हैं, तो क्या आपको अन्य सार्वजिनक क्षेत्र की प्रसारण चैनल जैसे राज्य सभा टीवी या डीडी नेशनल या किसी अन्य से एड शेयर करने का डर नहीं होता है?
 
मैं ऐसा नहीं सोचता, क्योंकि समय के साथ, विज्ञापन का हिस्सा बढ़ता जाता है। दूरदर्शन, लोकसभा टीवी और राज्य सभा टीवी के अलग-अलग दर्शक हैं। और अब विभिन्न टीवी चैनल्स हैं। जब आप मार्केट में अपने दर्शकों को टार्गेट करना चाहते हैं, तो इस तरह का कोई भय नहीं होता।

आपके नेतृत्व में, इस वर्ष लोकसभा टीवी में किस तरह के परिवर्तन की उम्मीद कर सकते हैं?
अधिक से अधिक नए प्रोग्राम, प्राइम टाइम प्रोग्रामिंग का अधिक से अधिक कंसोलिडेशन, नई प्रौद्योगिकी का इस्तमाल जिससे दर्शकों को देखने में अच्छा लगे। और निश्चत तौर, पर हम लोकसभा टीवी को बनायेंगे।

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