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उन्‍नाव में दैनिक जागरण के पत्रकार को सपा विधायक के भाई ने पीटा, बंधक बनाया


एक लाइन की खबर भी नहीं छपी अखबार में : मुलायम सिंह यादव एवं अखिलेश यादव ने भले ही कहा हो कि यूपी में अब सपा सरकार में गुंडाराज नहीं रहेगा, पर अब तक जिस तरह की घटनाएं सामने आई हैं, उससे कहीं भी नहीं लग रहा है कि इस गुंडाराज पर रोक लग पाएगी. मतगणना वाले दिन सपाइयों ने झांसी में पत्रकारों से मारपीट की तो अगले दिन उन्‍नाव में सपा विधायक के दबंग भाई ने दैनिक जागरण के एक पत्रकार पर अपने साथियों के साथ हमला किया तथा घंटों बंधक बनाए रखा.
घटना सात फरवरी की है. दैनिक जागरण के पत्रकार अमित मिश्रा एसपी ऑफिस के बाद स्थित कैंटीन के पास खड़े थे. इस बीच भगवंत नगर क्षेत्र के सपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर का भाई मनोज सिंह सेंगर उर्फ रावण आया तथा अमित को देखते ही उलूल-जुलूल बकने लगा. उसने गाली-ग्‍लौज भी दी. बताया जा रहा है कि वो जागरण में प्रकाशित कुछ खबरों के चलते अमित से खफा था. अमित ने जब इस तरह से बात करने का विरोध किया तो मनोज अपने साथियों के साथ मिलकर अमित पर हमला कर दिया. अमित से ना सिर्फ मारपीट की गई बल्कि उन्‍हें दो घंटे तक बंधक भी बनाए रखा गया.
इसकी सूचना कुछ लोगों ने दैनिक जागरण के पत्रकारों को दी. जागरण के ब्‍यूरोचीफ राजेश शुक्‍ल और क्राइम रिपोर्टर अनिल अवस्‍थी अपने साथी को छुड़ाने वहां पहुंचे पर दबंग रावण ने उन्‍हें भी धमका कर भगा दिया. इस बीच किसी पत्रकार ने हिंदुस्‍तान के स्ट्रिंगर ज्ञानेंद्र सिंह सेंगर, जो सपा विधायक के करीबी बताए जाते हैं, को मामले की जानकारी दी. ज्ञानेंद्र तत्‍काल मौके पर पहुंचकर बंधक बनाए गए जागरण के रिपोर्टर अमित मिश्रा को छुड़वाया. अमित ने अपने साथ हुए इस पूरे वाकये की जानकारी कानपुर में अपने वरिष्‍ठ लोगों को दी. परन्‍तु वहां से भी कोई कार्रवाई नहीं की गई.
सबसे शर्मनाक बात तो यह रही कि अमित के साथ हुई मारपीट की घटना का एक लाइन तक जागरण ने अपने अ‍खबार में नहीं छापा और ना ही एफआईआर दर्ज करवाया गया. इस मामले में उन्‍नाव के मीडियाकर्मियों की चुप्‍पी भी काफी दुर्भाग्‍यपूर्ण रही. दल्‍ले टाइप पत्रकारों का घर माना जाने वाला जागरण तो पहले से ही अपने पत्रकारों का साथ न देने के लिए कुख्‍यात रहा है. अगर किसी पत्रकार की खबर पर किसी ने अंगुली उठाई नहीं कि जागरण अपने पत्रकार के पक्ष में खड़ा होने की बजाय उसे दूध की मक्‍खी की तरह निकाल फेंकता है. इस मामले में भी ऐसा ही हुआ.
अखबार प्रबंधन को पूरे मामले की जानकारी होने के बाद भी उनकी तरफ से कोई भी कदम नहीं उठाया गया, अमित को अपनी लड़ाई खुद लड़ने या इस बेइज्‍जती के साथ जीने के लिए छोड़ दिया गया. सबसे बुरी स्थिति तो उन्‍नाव के मीडियाकर्मियों की रही, जो अपने साथी के साथ हुई मारपीट की घटना के खिलाफ आवाज भी नहीं उठा सके. उन्‍होंने इस पर ध्‍यान नहीं दिया कि जो घटना आज अमित के साथ हुई, विरोध न होने पर कल वही घटना उन लोगों के साथ भी दुहराई जा सकती है
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