जरा सोचिए, वेब सर्च में गूगल होने का क्या मतलब है, यू ट्यूब और वीडियो का क्या रिश्ता है अथवा प्रिंट के लिए जाइट के अथवा संगीत और विभिन्न ऐप्स के लिए आईट्यून्स के क्या मायने हैं। दरअसल ये सभी समूहक (एग्रीगेटर) हैं जो अपने बलबूते पर बड़े मीडिया ब्रांड बन चुके हैं। वैश्विक स्तर पर बड़े मीडिया ब्रांडों के लिए ऑनलाइन अथवा मोबाइल पर आधारित कारोबार आसान नहीं रहा है। इकॉनॉमिस्ट और डिज्नी जैसे कुछ सफल उदाहरण हैं लेकिन बड़े पैमाने पर देखा जाए तो दिग्गज मीडिया कारोबारी इसमें उस हद तक सफलता हासिल नहीं कर सके हैं। एक परिपक्व बाजार की 'नया मीडिया' व्यवस्था में ताकत का केंद्र अनिवार्य रूप से एक समूहक ही है। एक ऐसी व्यवस्था जहां विभिन्न, तकनीक, सामग्री और प्रारूप एक साथ मिल सकें।
भारत में नये मीडिया का दिग्गज कौन होगा? क्या यह हंगामा जैसी समूहक बन चुकी कोई मीडिया कंपनी होगी या फिर नये मीडिया पर भरपूर तवज्जो देने वाला टाइम्स समूह? इस सवाल का जवाब तलाश करना अभी भी किसी मजाक से कम नहीं है क्योंकि देश में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या अभी भी बहुत कम है। देश में टेलीविजन के दर्शकों की संख्या 70 करोड़ और समाचार पत्रों के पाठकों का दायरा 34.5 करोड़ है जबकि इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों का आंकड़ा अधिकतम 10 करोड़ है। लेकिन अगर बात मोबाइल की हो तो इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। देश में करीब 87.3 करोड़ मोबाइल धारक हैं। यह देश में टेलीविजन से भी बड़ी मीडिया ताकत है। यही वजह है कि नये मीडिया के क्षेत्र में मोबाइल की अनदेखी नहीं की जा सकती है।
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के आंकड़ों के अनुसार इन 87 करोड़ से अधिक मोबाइल धारकों में से 37.3 करोड़ से अधिक मोबाइल धारक अपने मोबाइल में इंटरनेट का इस्तेमाल कर सकते हैं, हालांकि ऐसा करने वालों की वास्तविक संख्या अभी ज्ञात नहीं है। औसतन हर दूरसंचार सेवा प्रदाता अपने कुल राजस्व का 10 फीसदी डाटा सर्विस से अर्जित करता है। बाजार के आकार को देखते हुए कहा जा सकता है कि यह दोगुना हो सकता है। ऐसे में जहां पर्सनल कंप्यूटर पर आधारित इंटरनेट का संघर्ष जारी है वहीं मोबाइल फोन पर इसके विस्तार की संभावना में दिनोदिन इजाफा देखने को मिल रहा है।
काफी लंबे समय से यह अनुमान जताया जा रहा था कि दूरसंचार सेवा प्रदाता भविष्य में नये मीडिया के दिग्गज होंगे। मोबाइल आधारित मनोरंजन के क्षेत्र में उन्होंने जबरदस्त काम किया है और यह कारोबार वर्ष 2000 के लगभग शून्य के स्तर से वर्ष से 2011 में 10,000 करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर गया। लेकिन यह दबदबा कितने लंबे समय तक कायम रह सकेगा?
डिजिटल मीडिया के इस तरह आंदोलित होने के पीछे कई वजहें हैं। इनमें एक वजह राजस्व भी है। मोबाइल आधारित मनोरंजन से जुटने वाले 10,000 करोड़ रुपये में से सामग्री मुहैया कराने वाली कंपनी को महज 15 फीसदी हिस्सा ही मिलता है। इसका 15 से 20 फीसदी हिस्सा समूहकों के पास जाता है जबकि 60 से लेकर 80 फीसदी तक हिस्सा दूरसंचार सेवा प्रदाता अपने पास रख लेते हैं। यूरोप, जापान और दुनिया के अन्य हिस्सों में सामग्री मुहैया कराने वाली कंपनियों को राजस्व का बहुत बड़ा हिस्सा मिलता है।
चूंकि समूहकों और सामग्री मुहैया कराने वाली कंपनियों दोनों को जबरदस्त प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है, उनके मार्जिन में कमी आ रही है और राजस्व भी घट रहा है। राजस्व बढ़ाने की कोशिश में उनको सीधे उपकरण निर्माताओं और उपभोक्ताओं से संपर्क करना अधिक आसान लग रहा है। उदाहरण के लिए मोबाइल टीवी ऑपरेटर जेंगा के राजस्व का आधा से अधिक हिस्सा प्रौद्योगिकी और सामग्री को मोबाइल उपकरणों में जोडऩे से ही मिल जाता है। इसके अलावा 40 फीसदी राजस्व सामग्री को अन्य समूहकों को बेचने से हासिल होता है और 10 फीसदी विज्ञापन से मिलता है। हंगामा दरअसल एक मीडिया कंपनी है जो 127 देशों में 35 से अधिक भाषाओं में 2,800 भिन्न प्लेटफार्म पर सामग्री उपलब्ध कराती है और उसका वितरण करती है। सामग्री मुहैया कराने वाली कंपनियों को उसका संदेश यही है कि आप रचनात्मकता पर ध्यान दीजिए, पैसे हम मुहैया कराएंगे। दूरसंचार सेवा प्रदाताओं ने ऐसा कभी नहीं किया।
दूसरी ओर बड़ी-बड़ी मीडिया कंपनियां हैं। इनमें टाइम्स समूह अथवा नेटवर्क18 आदि शामिल हैं जिन्होंने इंटरनेट कारोबार को खूब मजबूत बनाया है। टाइम्स के अच्छे प्रदर्शन की वजह यह है कि उसने क्रॉस मीडिया सिनर्जी की बदौलत वेब अथवा फोन पर सामग्री की बिक्री की है। एक औसत समूह की पहुंच देश के सबसे अधिक बिकने वाले अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के महंगे विज्ञापन स्थान या फिर उस समूह के टेलीविजन चैनल अथवा रेडियो स्टेशन तक नहीं होती है। न ही वह उस समूह की सामग्री तक पहुंच रखता है। ऐसे में इस बात की काफी अधिक संभावना है कि बड़ी मीडिया कंपनी डिजिटल जगत में भी दिग्गज का दर्जा हासिल कर सकती है। यहां इकलौता मसला तटस्थता का होगा। अनेक मीडिया कंपनियां शायद नहीं चाहेंगे कि टाइम्स, नेटवर्क18 अथवा कोई अन्य प्रतिस्पर्धी उनकी सामग्री का समूहन और बिक्री करे।
देश के डिजिटल मीडिया जगत में चल रहे इन तमाम घटनाक्रम के बीच ऐसे बिचौलिये उभरकर सामने आएंगे जो यू ट्यूब अथवा हुलु की तरह ही शक्तिशाली होंगे। यह सवाल बाकी है कि यह एक समूहक से बनी मीडिया कंपनी होगी, कोई दूरसंचार सेवा प्रदाता, कोई पुरानी मीडिया कंपनी या तीनों का मिश्रण। साभार : बीएस