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भाई के पेट में छुरा भोक दिया -डॉक्टर रुपेश


डॉक्टर रुपेश  के बारे में क्या लिखू  अभी मुझे पता चला की डॉक्टर रुपेश  जी नहीं रहे । बड़ा दुःख हुआ | करीव दो महीने पहले ही मेरी  रुपेश जी बात हुई थी  | वह बार बार मुझे बुला रहे थे यार तुम नवी मुंबई वासी आ जाओ, मिलकर बात करते है |


मै मिल न सका। इसका मुझे मलाल जिन्दगी भर रहेगा | मेरी फ़ोन पर लम्बी लम्बी बाते हुआ करती थी .| जब मैंने मीडिया दलाल शुरू किया था तभी उनका ही फ़ोन आया था  | खुश होकर कहने लगे सुशील जी  आपको बधाई हो | रुपेश जी बोले - मै दूकान पर खड़ा था मेरे दोस्त ने बताया एक ब्लॉग शुरू किया है  मीडिया दलाल ? हम लोग मिलकर कुछ नया करते है | 


वह अपने पुराने मित्र के बारे में कहने लगे | भड़ास को मैंने बहुत करीव से देखा मगर आज वह भड़ास ४ मीडिया बन गया है | यशवंत सिंह मेरे दोस्त नहीं भाई है मगर भाई ने भाई के पेट में छुरा भोक दिया | 


भड़ास को मैंने - यशवंत  सिंह - रजनीश के झा ने मिलकर शुरू किया था | यशवंत ने भड़ास  को भड़ास ४ मीडिया बना लिया | हम लोगो के चुत्तर पर लात मार दी खैर  वह हमारा मित्र कम भाई है उसका हक़ है | इतना कहते कहते डॉक्टर रुपेश फ़ोन पर ही रो पड़े | मै बोला भाई रोया मत करो | सुशील जी मैंने  भड़ास से अपना   http://bharhaas.blogspot.in   बना लिया है |  | मेरे पास  रुपेश जी  का अक्सर फ़ोन आता था वह मीडिया और भड़ास की बाते करते रहते थे | उनकी यादो से भड़ास  नहीं निकल पा रहा था | उनको भड़ास से दूर करने  गम  ता उम्र  सताता रहेगा | 


सुशील गंगवार 
मीडिया दलाल .कॉम 
साक्षात्कार.कॉम 

डॉ. रुपेश श्रीवास्तव यादों के झरोखों में, अनमोल तस्वीर जो शायद मेरे दुनिया से जाने के बाद भी मेरे लिए रत्न बना रहेगा.

बृहस्पतिवार, 10 मई 2012


डॉ. रुपेश कभी नहीं मर सकता, ये वो नश्वर है जो विचारों के साथ भड़ास भड़ास आत्मा तक में वास करता है, इन हँसते हुए चेहरे को देख कर कौन कह सकता है की मात्र 40 साल का यह युवा हृदयाघात से दुनिया छोड़ सकता है, तस्वीरों के सहारे भड़ास पिता को याद करने की के कोशिश...



मनीषा दीदी अपने लाडले भाई को इडली खिला रही है 

सिर्फ रुपेश भाई नहीं मैं भी और हठ करके निवाला मैंने भी लिया था 

अपने गुरुदेव की वो हँसी, अब कभी नहीं देख पाऊंगा, वाकई में दीदी और गुरुदेव के गोद में एक नन्हा बच्चा सा ही तो बना हुआ था.

हरभूषण  भाई और डॉ. साहब के बीच मंथन मुंबई के वाशी स्टेशन पर.

यहाँ दो भडासी, तो भाई, दो शरीर मगर एक प्राण, विचारों की एक्लिप्त्ता ने हमें कभी महसूस ही नहीं होने दिया की रुपेश और रजनीश दो अलग अलग इंसान है. 

माँ का लाडला, मुनव्वर आप के आगे हम दोनों ही बच्चे से बन जाते थे, वाकई आपा का प्यार और मातृत्व ने हम दोनों को आपा का पुत्र बना दिया था.
Sabhar-http://bharhaas.blogspot.in/