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रंडियो से बत्तर जिन्दगी बनती जा रही है पत्रकरिता की ?

पत्रकारिता देश का चौथा स्तम्भ माना जाता है मगर दिनों दिन पत्रकारिता और पत्रकारों की हालत रंडियो से बत्तर होती जा रही है वह धंधा करके घर चला लेती है | आखिर इसके लिए कौन जिम्मेदार है पत्रकार और पत्रकारिता ? सवाल थोडा सा टेडा है दिल को चीर देता है ? बद से बत्तर जिन्दगी जीने पर मजबूर कुछ पत्रकार दो जून की रोटी के लिए तरस रहे है फिर उनके परिवार और बच्चो का भविष्य क्या होगा |

क्या रोटी पाने के लिए पत्रकार को दलाली करना जरुरी है पत्रकारिता में बीच का रास्ता नहीं निकल सकता है , अमेरिका की एक कंपनी के अनुसार पत्रकार और पत्रकरिता का दर्जा इतना नीचे हो गया है उससे कही अच्छे मजदूर है जो दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ कर लेते है | आज एक पत्रकार बंधू का फ़ोन आया तो बोले मिया कब तक पत्रकारिता के फेर में पड़े रहोगे कुछ तो करो ?

मै भी पंद्रह साल से झक मार रहा हु आज मेरे पास पाच हजार की नौकरी नहीं , अगर मुंबई में जुगाड़ हो तो बता दो कही लगवा दो | मै बोला हर जगह मीडिया की हालत पतली हो चुकी है |हमारी हालत भी आपकी जैसे है हम कहा से रोजगार बता दे |भाई जान बोले अपने काम करने का तरीका बदलो या फिर किसी मीडिया के दलाल को पकड़ो जो मीडिया से लेकर नेता की दलाली कर रहा हो उसके साथ मिलकर अपनी साईट चलाओ तो कुछ हो सकता है नहीं तो रास्ता बदल लो |

उस पत्रकार की बात में दम था मगर हमारे पिछवाड़े में दलाली करने का दम नहीं है मैंने उसे बातो में समझाया | पत्रकार भाई ने फ़ोन पटक दिया और बोले यार हम लोगो से अच्छी तो रंडी है जो कम कम से अपने बच्चो को पाल रही है ? पत्रकारिता में घाघ बैठे है जो दलाली करके माल बना रहे है अगर दलाली आती है तो मीडिया में आओ नहीं तो मेरे भाई लोगो किसी और काम में लगो |

एडिटर
सुशील गंगवार
फ़ोन -09167618866