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विकास हुआ जिन्दल का और गुलामी आयी लोगों के हिस्से में

हिमांशु कुमार




कल दो कार्यक्रमों में गया. पहले में जम्मू के ईंट भट्टे से आज़ाद कराये गये इक्यावन गुलाम मजदूर थे. इनमे तीन साल के बच्चों से सत्तर साल के बूढ़े भी शामिल थे. इन्हें ग्यारह साल सिर्फ खाना मिला है. आज ये सिर्फ खाली हाथ वहाँ से लौट कर अपने गाँव वापिस चले गये. ये गुलाम छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के लोग थे. रायगढ़ में जिन्दल को हज़ारों एकड़ ज़मीन गाँव वालों से पुलिस के दम पर छीन कर दी गयी थी. वादा किया गया था विकास का लेकिन विकास हुआ जिन्दल का और गुलामी आयी लोगों के हिस्से में.

दूसरा कार्यक्रम था मध्य प्रदेश में महेश्वर बाँध के डूब प्रभावित गाँव के लोग बारह दिन से गले तक पानी में डूब कर मरने के लिये खड़े हैं. सर्वोच्च न्यायालय का आदेश है कि इन्हें ज़मीन के बदले ज़मीन दो और तब बाँध में पानी भरो. लेकिन बीस हज़ार गाँव वालों को दूसरी ज़मीन दिये बिना उनकी ज़मीन में पानी भर दिया गया है. अब ये लोग क्या खाएं ? कहाँ रहें ? क्या करें ? इनकी ज़मीन पर बनाए गये बाँध से जो बिजली बनेगी उससे हमारे एसी चलेंगे….. और जिनकी ज़मीन छीनी गयी वो पानी में डूब कर मर जायें ? यही वादा किया था हमने इस मुल्क के नागरिकों से आज़ादी के वक़्त ?

याद रखिये मुल्क बनाते समय आपने सभी लोगों से दो वादे किये थे पहला बराबरी का और दूसरा इन्साफ का. अगर लोगों को आप बराबरी और इन्साफ नहीं देते हैं तो आप एक नागरिक के साथ किये गये वादे से मुकर रहे हैं.

कल हमने मध्यप्रदेश भवन में इन सत्याग्रहियों के समर्थन में प्रदर्शन किया था. मन बहुत बैचैन है.

साइकिल लेकर दिल्ली से ओंकारेश्वर बाँध के सत्याग्रह में हिस्सा लेने जाने का इरादा किया है ! कोई साथ चलेगा क्या ? रास्ते भर लोगों से चर्चा करते चलेंगे !



(हिमांशु कुमार लेखक
और जाने-माने गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता हैं.)

हस्तक्षेप से साभार