वेब मीडिया के एक "महारथी" हैं जगमोहन "फुटेला". सिर्फ उनका लिखा ही पढ़ा है. शब्दों पर गजब का कमांड है. आजकल इन महाशय की दसों ऊँगली घी में और सर कड़ाही में है. कारण यशवंत भाई का जेल जाना. तिस पर तुर्रा ये कि महारथी ने तय कर दिया है कि भड़ास बंद हो चुका है. इनके लेखन में ऐसी लाईनें भी मिल जाएँगी "चंडीगढ़ पुलिस से उठवाकर इधर मंगवाऊँ...." (मानो चंडीगढ़ पुलिस प्रमुख वगैरह इनके गेटकीपर हों.)
अक्सर अपने लेखों में बताते फिरते हैं कि फलां-फलां वेबसाईट (यानि एक से ज्यादा) हमहु चलाते हैं (मानो साईट नहीं सेटेलाईट चला रहे हों). बताने का मकसद खुद को यशवंत से बड़ा दिखाना. बड़ा बनना है तो बड़ी लकीर खींचो न साहब न की बड़ी लकीर को छोटा दिखाने के प्रयास में जुट जाओ. लेखों में ऐसा भी लिखते मिल जायेंगे "मैं पंजाबी हूँ, खुद्दारी कूट-कूट कर भरी है" अच्छी बात है भई, पंजाबियों में खुद्दारी कूट-कूट कर भरी होती है, मैं जानता हूँ. लेकिन गैर-पंजाबी क्या खुद्दारी का कच्छा उतारकर भीख माँगा करते हैं. कुल मिलकर क्षेत्रवादी मानसिकता की भी बू आती है.
हुजूर यशवंत भाई के खिलाफ लिखे गए एक लेख में फरमा रहे हैं कि बंगलादेश ने वो जो एक बार (लगभग दस साल से ज्यादा पहले) 16 सेना के जवान काटपीट कर भारत भेज दिए थे (हालाँकि इन्होने 20 लिखा है) वो इसलिए क्युकि भारत ने तसलीमा नसरीन को पनाह दी थी. वाह फुटेला महोदय वाह! अरे शब्दों पर पकड़ का मतलब ज्ञानी होना नहीं होता, समझो इस बात को प्रभु. एक तो आपकी सोच और तिस पर तुर्रा ये कि जब वो दुखद घटना हुई थी तब तसलीमा को भारत में पनाह नहीं मिली थी. 2004 में तसलीमा को भारत में रहने के लिए टेम्परेरी रेजिडेंसियल परमिट दिया गया था. जबकि "फुटेला" महोदय जवानों के मारे जाने की घटना अप्रैल 2001 की है.
जो व्यक्ति इस तरह की लफ्फाजी मात्र यशवंत को नीचा दिखाने के लिए कर सकता है, वो तसलीमा का विश्लेषण करे- हद है यार. महोदय ने एक और शुभ कार्य करने का प्रयास किया है. दयानंद पाण्डेय जी को स्व. प्रभाष की याद दिलाकर यशवंत के खिलाफ भड़काने का बचकाना प्रयास. जाइये फुटेला साहब जाइये, जो सेटेलाईटें सॉरी साईटें आप चला रहे हो चलाओ, यशवंत को समझने के लिए भौतिकवादी मानसिकता को ताख पर रखना होगा जो आपसे संभव नहीं.
चन्दन श्रीवास्तव
हुजूर यशवंत भाई के खिलाफ लिखे गए एक लेख में फरमा रहे हैं कि बंगलादेश ने वो जो एक बार (लगभग दस साल से ज्यादा पहले) 16 सेना के जवान काटपीट कर भारत भेज दिए थे (हालाँकि इन्होने 20 लिखा है) वो इसलिए क्युकि भारत ने तसलीमा नसरीन को पनाह दी थी. वाह फुटेला महोदय वाह! अरे शब्दों पर पकड़ का मतलब ज्ञानी होना नहीं होता, समझो इस बात को प्रभु. एक तो आपकी सोच और तिस पर तुर्रा ये कि जब वो दुखद घटना हुई थी तब तसलीमा को भारत में पनाह नहीं मिली थी. 2004 में तसलीमा को भारत में रहने के लिए टेम्परेरी रेजिडेंसियल परमिट दिया गया था. जबकि "फुटेला" महोदय जवानों के मारे जाने की घटना अप्रैल 2001 की है.
जो व्यक्ति इस तरह की लफ्फाजी मात्र यशवंत को नीचा दिखाने के लिए कर सकता है, वो तसलीमा का विश्लेषण करे- हद है यार. महोदय ने एक और शुभ कार्य करने का प्रयास किया है. दयानंद पाण्डेय जी को स्व. प्रभाष की याद दिलाकर यशवंत के खिलाफ भड़काने का बचकाना प्रयास. जाइये फुटेला साहब जाइये, जो सेटेलाईटें सॉरी साईटें आप चला रहे हो चलाओ, यशवंत को समझने के लिए भौतिकवादी मानसिकता को ताख पर रखना होगा जो आपसे संभव नहीं.
चन्दन श्रीवास्तव
महासचिव
प्रेस क्लब अयोध्या-फैजाबाद
Sabhar- Bhadas4media.com