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दंगाई प्रदेश

दंगाई प्रदेश

Page 1 jpgइसे उत्तर प्रदेश का दुर्भाग्य ही कहेंगे। केवल डेढ़ साल पहले प्रदेश की जनता ने एक नौजवान को प्रदेश की कमान सौंपी थी। लोगों को लगता था कि यह नौजवान प्रदेश को मुलायम सिंह और मायावती की धर्म और जाति की राजनीति से ऊपर ले जायेगा। मगर इतने कम समय में ही उत्तर प्रदेश अब दंगा प्रदेश बन चुका है। प्रदेश के लोगों ने बाइस साल बाद फौजी बूटों तले खत्म होते लोकतंत्र की आवाजें सुनी हैं। जाहिर है यह नौजवान मुख्यमंत्री न सिर्फ खुद मुसीबत के दौर में हैं बल्कि पूरी पार्टी को भौचक्का किया हुआ है। लोकसभा चुनाव नजदीक हैं और अगर खुफिया रिपोर्टों को सही माने तो प्रदेश के एक दर्जन से अधिक जिले मुजफ्फरनगर की राह पर हैं।
समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह का भी सबसे प्यारा सपना टूटता नजर आ रहा है। वह जानते हैं कि प्रधानमंत्री पद के लिए यह उनका आखिरी दांव हैं। मगर यह तभी पूरा होगा जब उत्तर प्रदेश से कम से कम चालीस समाजवादी पार्टी के सांसद चुने जायें। उत्तर प्रदेश में ताबड़तोड़ हो रहे दंगों और उनमें भी अधिकांश जगह मुस्लिमों को हो रहे नुकसान से मुस्लिम समुदाय भी आग बबूला है। जो खेल समाजवादी पार्टी खेलना चाहती थी उस खेल के मोहरे पिट चुके हैं। मुसलमानों को लुभाने का कोई और कारगर तरीका भी नजर नहीं आ रहा। जिस तरह से प्रदेश में दंगों से माहौल खराब हो रहा है उससे यह संदेश साफ तौर से जा रहा है कि अखिलेश राज में कानून व्यवस्था पूरी तरह से ठप हो गयी है। इसके राजनैतिक नुकसान के संदेश लखनऊ से दिल्ली तक सुने जा रहे हैं।
मुजफ्फरनगर कांड की अब राजनैतिक दल अपने-अपने हिसाब से व्याख्या करने में जुट गये हैं। अब यह बात साफ तौर पर सामने आ रही है कि दस दिन पहले छेड़छाड़ को लेकर हुए एक हत्याकांड को दस दिन तक जानबूझकर गर्म होने दिया गया। इसके पीछे ठोस राजनैतिक कारण भी थे। मेरठ और सहारनपुर मंडल में समाजवादी पार्टी का जनाधार सबसे कम है। जाट और मुसलमान बड़ी संख्या में अजित सिंह के लोकदल के साथ जुड़े हैं। बहुजन समाज पार्टी को भी वोट का कुछ प्रतिशत मिलता रहता है। समाजवादी पार्टी को कामयाबी तभी मिल सकती थी जब इन दोनों के बीच विभाजन हो सके। भारतीय जनता पार्टी भी ऐसी ही स्थिति चाहती थी। उसे भी लगता था कि अगर धार्मिक आधार पर इस क्षेत्र में तनाव बढ़ेगा तो जाट समुदाय उसके साथ आ जायेगा। लिहाजा उसके भी कुछ नेता चाहते थे कि यह छेड़छाड़ की घटना थोड़ा और विस्तार ले ले। जब सपा और भाजपा की सोच एक जैसी हो जाये तो फिर यह बवाल बढऩा ही था।
मगर समाजवादी पार्टी को सपने में भी अंदाजा नहीं था कि यह बवाल इस स्तर तक बढ़ जायेगा कि सरकार चाह कर भी इसे संभाल नहीं पायेगी। जाटों की पंचायत के बाद जब हिंसा भड़की तो जाट समुदाय ही प्रभावित हुआ। मगर उस रात को आई रिपोर्टों ने पूरी सरकार के पसीने छुड़ा दिये। जाटों के सामूहिक हमले की संभावना से ही सरकार की हालत पतली हो गयी और बाइस साल के बाद सेना को बुलाने का फैसला करना पड़ा।
यह फैसला भी इसलिए किया गया क्योंकि सरकार को पता चल गया था कि अब बाजी उनके हाथ से निकल गई है। सपा जान गई थी कि अब बड़ी संख्या में मुस्लिमों की हत्या होगी। और अगर ऐसा हो गया तो मुस्लिम सपा को कभी माफ नहीं करेंगे। जाहिर है जिस मामूली विवाद को थोड़ा भड़काने की कोशिश की जा रही थी वह कुछ ज्यादा ही भड़क गया था और अब सपा नेतृत्व चाह कर भी उसे थामने की हालत में नहीं था।
सपा का यह दांव अब उसके गले की फांस बन गया। चौराहों-चौराहों पर इस बात की चर्चा होने लगी कि आखिर मायावती के पांच साल शासन के दौरान प्रदेश में एक भी दंगा क्यों नहीं हुआ और अखिलेश राज के डेढ़ साल के भीतर सौ से ज्यादा दंगे क्यों हो गये। लोग इस बात का भी राज जानना चाहते थे कि जिस विश्व हिन्दू परिषद का नाम भी लोग भूल गये थे आखिर उस विश्व हिन्दू परिषद के नेताओं को उस दिन अपने घर बुलाने की जरूरत क्या थी जिस दिन पूरी मीडिया मुख्यमंत्री ने अपने घर बुलाई थी। क्या यह विहिप नेताओं की ज्यादा ब्राडिंग करने की कोई सुनियोजित योजना तो नहीं थी।
मायावती से लेकर कांग्रेस तक ने प्रदेश में राष्टï्रपति शासन लगाने की बात करके जन मानस में साफ तौर पर यह संदेश दे दिया कि प्रदेश की सरकार के हाथों से यह प्रदेश निकल रहा है। नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्या ने कहा कि पूरे प्रदेश को गुंडों के हाथों में सौंप दिया गया है।
राज्यपाल द्वारा मुजफ्फरनगर हिंसा की रिपोर्ट भेजे जाने के साथ ही सरकार की कंपकंपी और चढ़ गयी। इस हंगामे के बीच आयी खुफिया रिपोर्टों ने हालत और खराब कर दी। इन रिपोर्टों में कहा गया कि प्रदेश के एक दर्जन से अधिक जिलों में हिंसा भड़काने की तैयारी चल रही है। अखिलेश यादव को भी समझ आ रहा है कि उन्हें जो थोक वोट मिला था वह प्रदेश के विकास के लिए मिला था। जिस तरह पूरे देश में उत्तर प्रदेश दंगाई प्रदेश के रूप में स्थापित होता जा रहा है उससे वह नाकामयाब मुख्यमंत्री के रूप में अपनी छवि बना रहे हैं। पिछले बीस सालों में ऐसा कोई दंगा नहीं हुआ जिसमें एक जिले में दंगे में पचास से अधिक लोग मारे गये हों। जाहिर है यहां की जनता इस प्रदेश को तो इस रूप में पसंद नहीं करेगी।
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