Sakshatkar.com- Filmidata.com - Sakshatkar.org

पत्रकारों की परीक्षा लेनी है तो बीबीसी वालों से कुछ सीखिए

Nadim S. Akhter : ये देखकर वाकई में बहद दुख होता है कि कुछ संपादक लोग पत्रकारों की पहचान सामान्य ज्ञान (General knowledge) के कीड़े के रूप में करना चाहते हैं. नौकरी देनी है तो सामने वाले के सामान्य ज्ञान का टेस्ट लेना जरूरी समझते हैं. मेरी समझ से किसी पत्रकार की पहचान उसकी सोच-समझ-संवेदनशीलता और किसी खबर के बारे में उसके दृष्टिकोण को लेकर होनी चाहिए. ऐसे ही और भी कई मापदंड बनाए जा सकते हैं लेकिन सामान्य ज्ञान के टेस्ट को मैं बहुत ही गैरवाजिब मानता हूं.
मेरे एक मित्र हैं टीवी में. आधे घंटे का स्पेशल प्रोग्राम अकेले ही बनाते हैं. रिसर्च, स्क्रिप्ट राइटिंग, प्री और पोस्ट प्रोडक्शन सब अकेले अपने दम पर करते हैं. कभी-कभी बहुत कम समय में आधे घंटे का प्रोग्राम बनाना पड़ता है. सब कुछ उनके हाथ में होता है. मसलन अगर नरेंद्र मोदी या अखिलेश यादव पर आधे घंटे का प्रोग्राम बना रहे हैं तो अगर वो चाहें तो अपने कंटेंट से उन्हें हीरो बना दें या फिर विलेन. और दोनों ही मामलों में मजाल है कि कोई उन्हें टोक दे. तर्कसम्मत तरीके से अपनी बात कहते हैं.

एक और उदाहरण देता हूं. अखबार की मीटिंग होती है और सम्पादक महोदय ने तय किया कि मिजोरम के चुनाव पर एडिट जाना है. अब जो असिस्टेंट एडिटर, एडिट यानी सम्पादकीय लिखेगा, उन्हें मिजोरम के राजनीतिक हालात की ज्यादा जानकारी नहीं है. वैसे भी नार्थ-ईस्ट पर कितनी खबरें देखते हैं आप. लेकिन एडिट तो जाना है. सो असिस्टेंट एडिटर साहब गूगल बाबा पर जाएंगे, जरूरत पड़ी तो अन्य माध्यमों का सहारा लेंगे, वहां के किसी लोकल पत्रकार से बात करेंगे और तय समय में एक धांसू एडिट यानी सम्पादकीय अखबार के लिए लिख देंगे. इसे पढ़कर आपको लगेगा कि कितने जानकार आदमी ने बड़ी बारीकी से एक-एक चीज पर निगाह डाली है लेकिन असलियत यह होती है कि कुछ घंटों पहले तक सम्पादकीय लिखने वाले असिस्टेंट एडिटर साहब को खुद इस विषय पर ज्यादा जानकारी नहीं थी लेकिन वह एक अच्छे, सुलझे हुए पत्रकार हैं. आप जिस लाइन पर उनसे एडिट लिखवाना चाहते हैं, (कांग्रेस की बैंड बजानी है, बीजेपी की बजानी है या बीच का रास्ता अपनाना है) वह लिख देंगे. ये हुई खासियत. आपको नौकरी मांगने आए बच्चों में-पत्रकारों में ये योग्यता तलाशनी होगी. उनके जीके यानी सामान्य ज्ञान की परीक्षा लेनी है तो जाइए, किसी क्लर्क की तलाश करिए. जो रट्टू मल होगा. वह पत्रकार नहीं होगा.

अरे कुछ नहीं तो बीबीसी वालों से कुछ सीखिए. वो जैसा एग्जाम लेते हैं, उनके पैटर्न का अध्ययन करिए. वो नौकरी के लिए सामान्य ज्ञान, जीके की परीक्षा नहीं लेते. अलग-अलग तरह के प्रश्नों से यह देखने-समझने की कोशिश करते हैं कि आप में एक अच्छे पत्रकार की तरह लिखने-बोलन-समझने की सलाहियत है या नहीं और दबाव में भी आप शांत रहकर कैसा परफॉर्म कर सकेंगे. GRE (Graduate Record examination) के पैटर्न का अध्ययन करिए, जो एमबीए जैसे कोर्सेज के लिए दुनिया भर में एग्जाम लेता है. मैथ्स, रीजनिंग, अंग्रेजी के प्रश्नों को हल करने के लिए आपको दिमाग लगाना होगा, problem solving technique अपनानी होगी (जो एक अच्छे मैनेजर की खासियत होती है), तभी आप उन प्रश्नों को हल कर पाएंगे. और problem solving technique तो एक पत्रकार में भी होनी चाहिए ताकि वह खबरों की तह में जा सके, उसका विश्लेषण कर सके, investigative journalism कर सके.

ये घूम-फिरकर आप लोगों की सुई सामान्य ज्ञान पर क्यों टिक जाती है. जीके की परीक्षा लेकर पत्रकार चुनना कब छोड़ेंगे. अमेरिका में विदेश मंत्री होता है या secretary of state, ब्रिटेन का संविधान लिखित है या अलिखित, रेपो रेट और मुद्रा स्फीति किसे कहते हैं, जैसे सवालों से अगर आप अच्छा पत्रकार चुनना-बनाना चाहते हैं, तो आपकी मर्जी. और पत्रकार बनाए नहीं जाते, ये एक अंदर की चीज है जिसे सिर्फ तराशा जा सकता है. ठीक उसे तरह जैसे किसी को एक्टर या सिंगर नहीं बनाया जा सकता, आप सिर्फ उसकी प्रतिभा को निखार सकते हैं.

मेरे हाथ में जब-जब किसी को नौकरी देने की ताकत आई, कभी किसी के सामान्य ज्ञान की परीक्षा नहीं ली. थोड़ी-बहुत बातचीत की, कामकाज के बारे में पूछा और मामला डन. अगर सामने वाला बंदा रिपोर्टिंग में है, तो उसने कैसी खबरें लिखी हैं ये देख-पूछ लिया. अगर बंदा डेस्क का है तो उसकी भाषा कैसी है, कोई लेख या रिपोर्ट लिखी है, कौन सी अच्छी हेडिंग लगाई है, ये सब पूछ लिया, देख लिया. मामला डन.

अरे क्या टेस्ट लेना है. अगर एक सम्पादक होने के नाते आपमें गुण हैं, तो आपके साथ काम करके वह भी सीख जाएगा (अगर ज्यादा नहीं जानता है तो). कई बड़े सम्पादकों ने अच्छे पत्रकारों की फौज तैयार की है, आप भी कीजिए. सबको मौका दीजिए. अगर उसे written test & interview देकर ही पत्रकार बनना होता, तो वो आपके पास नहीं आता. UPSC, SSC की परीक्षा देकर किसी सरकारी नौकरी में लग गया होता. इस बात को, इस अंतर को समझिए. आप सम्पादक (अच्छा या बुरा) इसलिए बने क्योंकि किसी ने आपकी मदद की, आपकी प्रतिभा को निखरने का मौका दिया, आपको आजादी दी. फिर दूसरों से ये हक क्यों छीनना चाहते हैं आप. सबको मौका दीजिए, जो ज्यादा मेहनत करेगा, वह ज्यादा दूर तक जाएगा. ये टेस्ट-जीके-सामान्य ज्ञान का रोना छोड़िए. पत्रकार हैं तो पत्रकार की तरह behave करिए, सरकारी बाबू की तरह नहीं.
पत्रकार नदीम एस. अख्तर के फेसबुक वॉल से.