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एक पत्रकार की उत्तरकथा!

एक पत्रकार की उत्तरकथा!
मैं अब निराश और डिप्रस्ड होकर सोचने लगा हूं कि दिल्ली छोड़ ही दूं। कई वजहें हैं मसलन दिल्ली में अगर आप भाजपाई, कांग्रेसी या घोषित कम्युनिस्ट पत्रकार नहीं हैं तो आपको कोई पूछेगा नहीं। अगर आपके संबंध संपादकों से मधुर नहीं हैं तो कोई आपको छापेगा नहीं और अगर मालिकों से आपका सीधे संवाद नहीं है तो कोई नौकरी देगा नहीं। अब इस उम्र में पत्रकारिता से इतर कोई व्यवसाय तो कर नहीं सकता इसलिए एक ही विकल्प बचता है कि दिल्ली छोड़कर अपने मूल शहर या किसी अन्य शहर में जाकर कोई भी छोटा-मोटा व्यवसाय कर लूं। ३५ साल तक पत्रकारिता की और सक्रिय रहा लेकिन आज अखबारों में अपने काकस हैं। उनका कहना है कि हम आपको नहीं छाप सकते क्योंकि हमारे कालमिस्ट तय हैं। यह अलग बात है कि वे कालमिस्ट आंचलिक अखबारों के लेख उड़ाकर अपने नाम से छाप लेते हैं। कुछ कालमिस्ट अंग्रेजी में लिखते हैं पर हिंदी के अखबार उधार की प्रतिभा छाप लेते हैं। उन्हें मूल प्रतिभा नहीं चाहिए। अब तक जितना भी जोड़ रखा था सब खत्म हो गया। अब सोचता हूं कि गाड़ी बेच दूं और गाजियाबाद के वसुंधरा इलाके में स्थित फ्लैट भी। कानपुर स्थित अपने गांव जाकर थोड़े में गुजारा कर लूं। या बस स्टैंड पर चाय अथवा पकौड़ी की दूकान खोल लूं। हर व्यवसाय अपने अनुभवी लोगों की कद्र करता है पर पत्रकारिता में अनुभवी लोगों के लिए सिवाय भूखों मरने के और कोई रास्ता नहीं बचता। न मैं जातिवादी हूं न संप्रदायवादी इसलिए किसी भी राजनैतिक दल के लिए मेरी प्रतिभा की दरकार नहीं है। दिक्कत यह है कि जो लोग सिर्फ अपना श्रम बेच सकते हैं उन्हें सरकार क्या सुविधा प्रदान करती है। मुझ जैसे लोगों को भी साल में कम से कम १०० दिन की मजूरी तो मिलनी चाहिए। बीमार पड़ जाएं तो इलाज की भी सुविधा हो वर्ना सिवाय आत्महत्या के और क्या चारा है। घुट-घुट कर जीने से तो स्वस्थ रहते हुए ऊपर जाना बेहतर है।
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  • Vijay Tripathi ja ke pair na fati bewai so kya jane peer parai...
  • Wasil Khan Alif dont say like that sir, u r a fighter.
  • Acharya Sushil Gangwar
  • Sanjaya Kumar Singh स्थितियां निराशाजनक हैं पर उनका निराशाजनक वर्णन आपकी कमजोरी दर्शाता है। मैं जानता हूं यह क्षणिक है फिर भी मुझे लगता है कि स्थिति इतनी बुरी नहीं है कि फ्लैट और गाड़ी बेचने के बाद भी चाय-पकौड़ी की दुकान खोलनी पड़ेगी। हां, यह सही है कि, पत्रकारिता में अनुभवी लोगों की पूछ नहीं है पर क्या टीवी वाले भी पैसे नहीं देते?
  • Acharya Sushil Gangwar Guru ji esa kuchh plan hai to mai bhi apna noida ka flat bech leta hu aapke sath chal duga . Aane vala kuchh samya esa hi lagta hai mujhe .. Nuakri ke maalik ki talash karo yaa kisi sampadak chatukarita ..
  • Sanjaya Kumar Singh वंदना जी, नई दिशा यही है कि पत्रकारिता को दूर से ही सलाम कर दिया जाए। और कसम खाई जाए कि तीन पीढ़ियों को इधर देखने भी नहीं देना है।