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इस आयोजन में मूर्खता और अदूरदर्शिता साफ झलक-दिख रही थी


इस आयोजन में मूर्खता और अदूरदर्शिता साफ झलक-दिख रही थी. मौका था प्रवक्ता डाट काम के पांच साल पूरे होने का. बहस का विषय भी था न्यू मीडिया. लेकिन मंच पर बिठवाया और बुलवाया उन लोगों से जो या तो न्यू मीडिया माने मालिक की नौकरी जानते हैं या फिर जिनका न्यू मीडिया के योगदान में कोई नाता नहीं... कम से कम पिछले छह सात साल में हिंदी न्यू मीडिया ने इतने चेहरे तो दे ही दिए हैं कि आप उन्हें मंच पर बिठा सकते थे, बुला सकते थे. ये यूं ही नहीं था कि भड़ास के पांच साल पूरे होने पर हम लोगों ने अनिरुद्ध बहल को मुख्य अतिथि चुना था. वे न्यू मीडिया के जबरदस्त चेहरे हैं. उन्होंने ब्लाग, वेब, सोशल मीडिया आदि के सहारे ही अपने कई जोरदार स्टिंग से पूरे देश में बैंकिंग व ब्लैकमनी को लेकर जोरदार बहस की... आयोजन में थोक के भाव जो जहां से मिले उसे वहां से पकड़ कर सम्मानित करने का जो ट्रेंड दिखा वो काफी खतरनाक है.. आप इसलिए किसी को सम्मानित कर रहे कि वो आपके यहां लगातार लिख रहा है, यह तो कोई बात नहीं हुई.. सम्मान और एवार्ड का एक मकसद और मायने होता है... पर अगर आयोजन घर का हो और 'सब संघी भाई भाई' वाला हिसाब किताब हो तो जो भी अपने अनुकूल दिखे, परिचित दिखे और करीब लगे, उसे सम्मानित करने से हम आपको भला क्यों दिक्कत हो..
पर कुल मिलाकर संजीव सिन्हा को बधाई देनी चाहिए कि उन्होंने बेदिल दिल्ली में अपने संकोची, सरल स्वभाव और मितव्ययी जीवनचर्या के बीच में प्रवक्ता नामक मिशन को लगातार चलाए जिलाए बनाए बचाए रखा और खाद पानी देते सींचते उसे पांच साल तक का बना ले गए... निजी तौर पर मुझे लगता है कि कारपोरेट और पूंजी के इस दौर में कुछ ऐसे मंचों को जिंदा रहना बेहद जरूरी है जो हमारे आप जैसे नौजवान संचालित करते हों और जिन तक पहुंच कर पाना हमारे आप जैसे भदेस लोगों के लिए सुविधाजनक हो.. वरना कारपोरेट्स के आफिसों, संपादकों, पोर्टलों तक दस्तक भी दे पाने हम जैसे देसज लोगों की फटती है, कि कहीं साले बुरा न मान जाएं..
प्रवक्ता डाट काम के आयोजन में मैं देर से पहुंचा लेकिन पहुंचा और संजीव जी को बधाई दी, पांच साल पूरे करने के लिए.... और, हम सभी गांव से आए लोग हैं, इसलिए अपनी फितरत है गल्तियां करने की और सीखने की, इसलिए उम्मीद करते हैं कि संजीव जी अगले साल ज्यादा बेहतर आयोजन करेंगे.... जय हो...



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