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मनमोहन और आसाराम को खजाने की खोज वाली खबर से फायदा मिला : दिबांग

Nadim S. Akhter : तो महाखजाने की महाखोज ने विश्व हिन्दू परिषद की संकल्प यात्रा की हवा निकाल दी. टीवी चैनलों पर खबर ही गायब रही. ना कोई कैमरा और ना कोई एक्शन. पता ही नहीं चला कि संकल्प यात्रा निकली भी कि नहीं और अगर निकली तो क्या हुआ. मौजूदा घटनाक्रम ये बताने के लिए काफी है कि आज के टीवी युग में आंदोलन और यात्राएं मास मीडिया के जरिए ही सम्पन्न होती हैं या यूं कहें कि कराई जाती हैं.

आपकी छोटी सी यात्रा-सभा को टीवी पलभर में देशव्यापी बना देता है. बस कैमरा एंगल सही रखिए. अगर 10-15 लोग ही हैं तो क्लोज शॉट दिखाइए-रखिए. ऐसा लगेगा कि सैकड़ों की भीड़ दहाड़ रही है. नरेंद्र मोदी की दिल्ली में हुई पहली रैली के दौरान भी मीडिया पर कुछ ऐसे ही आरोप लगे थे और ये कहा गया था कि भीड़े के दृश्य-शॉट के आउटपुट बीजेपी द्वारा तैनात किए गए खास कैमरे से सारे टीवी न्यूज चैनलों को जा रहे थे, जिससे हजारों की भीड़ टीवी के स्क्रीन पर लाखों में लगे-दिखे.

जंतर-मंतर और फिर रामलीला मैदान में अन्ना का आंदोलन भी टीवी मीडिया की वजह से ही देशव्यापी बना था. अब आप चाहे कितना भी कह लें कि लोग खुद जुड़ने आ रहे थे. लेकिन उस आंदोलन को घर-घर तक पहुंचाने में टीवी मीडिया का अभूतपूर्व योगदान रहा था. अरे भाई, जब लोगों को पता चलेगा आपके आंदोलन के बारे में, तभी तो वो आपसे जुड़ेंगे.

यही हाल महाखजाने की महाखोज और महाखुदाई का भी है. कल एक हिंदी न्यूज चैनल पर उत्सुक रिपोर्टर रात में घटनास्थल से लाइव दे रहा था. जेनरेटर से बनाई रोशनी में कीट-पतंगे खूब दिख रहे थे. सामने एक खंडहरनुमा टीले पर चैनल के रिपोर्टर ने लोगों की भीड़ बैठा रखी थी. सबसे यही पूछ रहे थे कि खजाना निकलेगा या नहीं. स्टूडियो का वरिष्ठ एंकर भी मंद-मंद मुस्कुरा रहा था. मानो कह रहा हो कि सबको सब मालूम है, लेकिन बोलेगा कौन??

खैर, वहां बैठे कुछ लोगों ने बताया कि वे उस चैनल के आभारी हैं, जिन्होंने खजाने की खुदाई की सूचना उन्हें दिखाई. उसे देखकर ही ये लोग वहां पहुंचे. यही हाल दूसरे हिंदी चैनलों का भी रहा. यहां तक कि ठेले पर दुकान लगाने वाले एक व्यक्ति ने कहा कि चैनल पर खबर देखकर ही उसे पता चला कि यहां काफी सारे लोग आ रहे हैं. सो उसने अपना ठेला यहां लगा लिया है. तर्क दिया कि लोग इस वीराने में भूखे-प्यासे फिर रहे थे, उन्हें खिलाने-पिलाने आए हैं. वाह! दूसरे चैनलों के संवाददाताओं ने भी जब भीड़ से बात की तो एक कॉमन बात निकलकर आई. लोगों ने बताया कि वे चैनल पर खबर दिखाए जाने के बाद वहां आए हैं. कुछ मनोरंजन करने आए थे, कुछ खजाना देखने की ललक में और कुछ इस आस में कि टीवी पर चेहरा दिख जाए. अगर रिपोर्टर लाइव दे रहा है तो फ्रेम में पीछे से कुछ लोग माबाइल फोन हाथ में लिए हंसते हुए बतियाते दिख जाते थे. जो शायद घर पर-मित्रों को फोन करके ये सूचना दे रहे होते थे कि मैं अभी फलां टीवी चैनल पर Live हूं, मेरा चेहरा दिख रहा है क्या..???

कहने का मतलब ये है कि मास मीडिया खासकर टीवी मीडिया पलभर में छोटी से छोटी खबर को राष्ट्रीय और फिर अंतरराष्ट्रीय बना देता है. प्रिंस नाम के एक अनजान से लड़के का गड्ढे में गिरना और फिर उसके राष्ट्रीय पटल पर छा जाना हमारे देश में टीवी मीडिया की कवरेज में एक ऐतिहासिक मोड़ था. सबने इस घटना से कुछ ना कुछ सीखा. पीपली लाइव, पार्ट-2 इसका विस्तार मात्र है. यानी मीडिया, खासकर हिन्दी टीवी न्यूज चैनल जब संगठित होकर किसी एक खबर पर फोकस कर देते हैं, आंख गड़ा देते हैं, तो वह राष्ट्रीय चर्चा का विषय बन जाता है. देश में चाय की दुकानों और नुक्कड़ों पर उसी खबर के बारे में चर्चा होने लगती है. इस मामले में हिन्दी टीवी न्यूज चैनल्स की ताकत अंग्रेजी के चैनलों से कहीं ज्यादा है क्योंकि हिंदी के न्यूज चैनल सीधे मास से कनेक्ट करते हैं. अंग्रेजी के न्यूज चैनलों का दर्शक वर्ग इलीट माना जाता है और इसकी खबरों का असर सत्ता के गलियारों में ज्यादा मानते हैं भाई लोग. वहीं हिन्दी के न्यूज चैनलों का असर आम आदमी के बीच ज्यादा दिखता है.

ये पता लगाया जाना चाहिए कि महाखजाने की महाकवरेज ने किन-किन मुद्दों को-खबरों को पीछे धकेल दिया. बिरला एफआईआर, आसाराम जैसे मुद्दे हिन्दी चैनलों से अचानक नेपथ्य में चले गए. मोदी की रैली की थोड़ी खबर दिखी लेकिन ज्यादातर इसी रूप में कि नरेंद्र मोदी ने सोने के लिेए हो रही खुदाई की निंदा की है और ये कहा है कि इससे देश की जगहंसाई हो रही है. यानी हिन्दी चैनलों ने मोदी की खबर को भी अपनी सबसे बड़ी खबर---महाखजाने की महाखुदाई---का हिस्सा बना दिया.

तभी एक चैनल पर वरिष्ठ पत्रकार दिबांग ये कहते नजर आए कि खजाने की खोज वाली खबर से अगर किसी को फायदाहुआ है तो वो मनमोहन सिंह सरकार है और आसाराम. और इसका नुकसान अगर किसी को हुआ है तो वह हैं नरेंद्र मोदी. मतलब साफ है. चैनलों के एजेंडे बहुत कुछ तय कर दिया करते हैं. किसको कितना एयर टाइम मिल रहा है, यह किसी का बहुत कुछ बना और बिगाड़ सकता है. फिलहाल तो महाखजाने की खोज जारी है. जय हो.

लेखक नदीम एस. अख्तर युवा और तेजतर्रार पत्रकार हैं. वे कई अखबारों और न्यूज चैनलों में वरिष्ठ पदों पर काम कर चुके हैं. नदीम से संपर्क 085 05 843431 के जरिए किया जा सकता है
Sabhar- Bhadas4media.com