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एक बिहारी बाबू साहब की भारत यात्रा


बिहार के एक बाबू साहब थे साधु चरण प्रसाद, एक बड़ी जिमींदारी के मालिक थे। बाबू साहब ने अपने जन्म स्थान का नाम चरजपुरा लिखा है। और यहीं से उन्होंने 1891 ईस्वी संवत (1948) से अपनी यात्रा शुरू की। बाबू साहब के अनुसार चरजपुरा पहले दोआबा परगना में था और बिहार के शाहाबाद जिले में आता था पर बाद में इसे पश्चिमोत्तर प्रांत (मौजूदा उत्तर प्रदेश) के गाजीपुर जिले से अटैच कर दिया गया। और परगने का नाम दोआबा बिहिया हो गया। उन्होंने अपने पिता का नाम बाबू विष्णुचंद्र जी बताया है तथा यह भी लिखा है कि उनका बनवाया हुआ शिवमंदिर चरजपुरा का बड़ा मंदिर है। अपनी यात्रा के दौरान जिमींदारी का कामकाज देखने वाले अपने अनुज बाबू तपसीनारायण प्रसाद को उन्होने बार-बार याद किया है इसलिए उनके परिवार के बारे में मुझे बस इतना ही मालूम है। बाबू साहब 1880 से 1895 तक पूरा भारत घूमते रहे। लौटकर अपने घर आए तो अपनी यात्रा को सहेजते हुए अपनी भारत यात्रा को लिखा और 5 खंडों में उसे प्रकाशित कराया। बाबू साधुचरण प्रसाद ने खुद ही लिखा है कि इस पुस्तक की प्रथम आवृत्ति उन्होंने काशी से छपवाई तथा द्वितीय आवृत्ति बंबई के श्रीवेंकटेश्वर स्टीम प्रेस से। उन्होंने अपनी किताब में पश्चिमोत्तर प्रांत और अवध का पूरा हवाला दिया है। साथ ही डौंडिया खेड़ा स्थित चंद्रिका देवी मंदिर का भी। इसमें राणा बेनी माधव के मालगुजार राव रामबख्स सिंह का भी हवाला है। बाबू साहब की यह पुस्तक इतिहास भी है और भूगोल भी तथा उस समय की सामाजिक व आर्थिक अवस्था का पूरा चित्रण भी इसमें है। पुस्तक इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इसमें अंग्रेजों की अमलदारी में आने वाले हिंदुस्तान और देसी रजवाड़ों की अमलदारी में आने वाले हिस्से का पूरा सटीक ब्योरा है। इसमें जाति व मजहब के आधार पर मनुष्यों की गणना भी है तथा हर गांव व शहर के राजस्व का गणित भी। बाबू साहब चूंकि कायस्थ थे इसलिए हिसाब-किताब में एकदम चुस्त-दुरुस्त। जो लोग डौंडिया खेड़ा का इतिहास जानने के लिए उत्सुक हैं उन्हें यह किताब पढऩी चाहिए। मैने बंद होती हुई एक लायब्रेरी से नीलामी में खरीद ली थी जिसे चाहिए वह संपर्क कर सकता है। मेरा ई मेल एड्रेस है-
shambhunaths@gmail.com


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