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प्रवक्ता एक प्रचार नहीं, विचार मंच / कन्‍हैया झा

सनातन काल से अपने देश में एक बहुत बड़ी परंपरा चलती आयी है। अपनी सभी (पारिवारिक एवं व्यक्तिगत) जिम्मेदादियों को निभाते हुए सबके लिए खटने वाले ऐसे ईश्वनिष्ठ लोगों की टोली हमारे समाज में सदा सर्वदा विद्यमान रही है। उसी मानसिकता से समाज को कुंदन बनाने वाली यह टोली खड़ी हो पाई है। यह वेबसाईट कोई व्यावसायिक वेबसाईट ना होकर यह एक मानसिकता है। प्रवक्ता ने सभी विचारधारा के साथ सज्जनता का व्यवहार करते हुए अपने अंतःकरण को राष्ट्रीय हित के साथ जोड़ रखा है। स्वयं के लिए तो सभी लोग कार्य करते हैं लेकिन सबके लिए खटने वाले ऐसे प्रवक्ता डॉट कोम की मंडली ने सभी विचारों को इस वेबसाईट में समाविष्ट किया है। यह कोई नई बात नहीं है। ऐसा अपने भारत वर्ष में होता आया है और वो परंपरा किसी ना किसी रूप में चलती रहती है। हमारे संजीव जी भी उसी परंपरा के वाहक है।
गैर व्यासायिक रूप से इस प्रकार के वेबसाईट चलाने का उद्देश्य क्या है? कार्य करने के पीछे बुद्धि क्या है? किसी अपरिचित व्यक्ति के सामने तुलना का संकट खड़ा होता है। हम देखते हैं कि वेबसाईट पर भांति-भांति के लेख पढ़ने को मिलते हैं जिसमें दो अलग-अलग धुरि पर रहने वाले विचारों को एक समान अभिव्यक्ति का मंच प्राप्त हुआ है। लोकतांत्रिक देशों में अभिव्यक्ति की आजादी के लिए सतत प्रयास किये जाते रहे हैं। पूरा विश्व मुक्ति चाहता है एवं स्वतंत्रता चाहता है और इसीलिए इस प्रकार के कार्य समाज जीवन में राष्ट्रभक्तों द्वारा खड़ा किया जाता है। ऐसे अवसर पर आनंद और उत्सव के साथ अपने दायित्व का स्मरण करते हुए इस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को निरंतरता के साथ बनाये रखना चाहिए क्योंकि यह एक प्रक्रिया है। उस प्रक्रिया को पूर्ण करना और इस प्रक्रिया का पूर्णता की स्थिति में बने रहना आवश्यक है। कार्य प्रारंभ का स्मरण केवल आनंद और उत्सव का विषय नहीं है बल्कि दायित्वबोध के स्मरण का विषय भी है। जिससे आगे के कार्य का दिग्दर्शन हो सके। विभिन्न विचारधाराओं के एक मंच पर आने से पाठकगण को एक लाभ पहुंचा। यह लाभ था कि सभी बातें एक विचार और भाषा में नहीं कही जा सकती। शब्दों के पीछे के अर्थ को जानने के लिए विभिन्न विचारों को एक स्थान पर आना आवश्यक था जिससे विचारों के मानस का मनन संभव हो सके।
यह कार्य पिछले 5 वर्षों से अव्याहट रूप से चल रहा है। सीमित संसाधन के कारण स्थितियां बदली होंगी, दशा बदली होंगी लेकिन पूरी टोली ने कभी भी प्रवक्ता की दिशा नहीं बदलने दी। यह मंच एक व्रत के समान है जिसमें बांकी सब अपनी अकांक्षाओं को समर्पण करते हुए तथा घर गृहस्थी के सभी कर्तव्यों का पूरा करते हुए सभी राष्ट्रीय जनमानस के विषयों को बारीकी से देखने की चिंता की है।
जिन बातों को अनुभव से जाना जा सकता है उसका वर्णन कठिन कार्य है। संजीव जी से मेरा पहला परिचय डॉ. सौरभ मालवीय जी के माध्यम से हुआ। संजीव जी से व्यक्तिगत परिचय होने के कारण मुझे प्रारंभ से ही प्रवक्ता डॉट कॉम को जानने का अवसर प्राप्त हुआ। यह प्रचार नहीं विचार वेबसाईट है जिसमें स्वाभाविक कृतज्ञता का अभास है। यह कार्य अव्याहट रूप से समाज का ऐसे ही दिग्दर्शन करे ऐसी कामना है।