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अर्थ की राजनीति को बेपर्दा करने वाली Costa-Gavras की फिल्‍म

  • अर्थ की राजनीति को बेपर्दा करने वाली Costa-Gavras की फिल्‍म Le Capital जब खत्‍म हुई, गीतकार और अभिनेता पीयूष मिश्रा ने मुझसे सीधा सवाल किया कि फाड़ू फिल्‍म थी, सही है, लेकिन नसीम का फंडा क्‍या था पूरी फिल्‍म में - समझाओ तो सही। दरअसल पूंजीवादी मुल्‍कों में बैंक किस तरह से अर्थव्‍यवस्‍था की डोर थामे रहते हैं, "ले कैपिटल" इसकी कहानी कहती है। पुराने सीईओ को कैंसर डिटेक्‍ट होने पर अमेरिका के सबसे बड़े बैंक फिनिक्‍स का सीईओ अपने सबसे विश्‍वस्‍त अधिकारी मार्क तुरनेल को अपनी कुर्सी सौंपता है। पर सीईओ बनने के बाद मार्क अपने तरीके से बैंक चलाता है। शेयर होल्‍डर्स उसे प्रभावित करने की कोशिश करते हैं और एक हद तक वह उनके प्रभाव में आता भी है लेकिन उनका खेल समझ कर जल्‍दी ही अपनी चाल से सबको मात दे देता है। इस कहानी में नसीम नाम की एक मॉडल-अभिनेत्री है, जो मार्क से टकराती है। मार्क उसे पाना चाहता है। नसीम भी उसकी हसरत को हवा देती है, लेकिन हाथ नहीं आती। वह मार्क को पेरिस बुलाती है और एक पार्टी में उसे लेकर जाती है और कहती है, सिर्फ एनजॉय करो। मार्क कहता है कि खुले में एनजॉय नहीं कर सकता, क्‍योंकि वह अमेरिका के सबसे बड़े बैंक का सबसे बड़ा अधिकारी है। मार्क की ये बात नसीम को दो कौड़ी की लगती है और वह उसे धक्‍का देकर चली जाती है। दूसरी बार नसीम उसे टोक्‍यो बुलाती है और मार्क अपने प्राइवेट जेट में जब टोक्‍यो पहुंचता है, नसीम न्‍यूयॉर्क जाने के लिए एयरपोर्ट पर आ जाती है। मार्क एयरपोर्ट पर उससे मिलता है, तो दोनों के पास सिर्फ दस मिनट हैं। नसीम उसे लेकर टॉयलेट में घुस जाती है, लेकिन स्‍मूचिंग के दौरान मार्क जब नसीम के कपड़े उतारने लगता है, वह एक भद्दी सी गाली देकर टॉयलेट से निकल जाती है। नसीम को पाने की हवस में मार्क उसके अकाउंट में कई करोड़ डॉलर ट्रांसफर कर देता है। फिर वह न्‍यूयॉर्क में अपनी बड़ी क्रूज गाड़ी में नसीम से मिलने जाता है। नसीम गाड़ी में आकर बैठती है, तो मार्क उससे छेड़छाड़ शुरू कर देता है। नसीम बिफर पड़ती है और एक चेक उस पर फेंकती हुई कहती है कि इसी पैसे ने ये अधिकार दिया है न तुमको, मैं इसे तुम पर थूकती हूं। लेकिन मार्क कुछ नहीं सुनता और गाड़ी में ही वह नसीम से रेप कर डालता है।

    नसीम की कहानी का ट्रैक मूल कहानी से बिल्‍कुल अलग है और पूंजी की राजनीति में प्‍यार और वासना का ये संदर्भ पीयूष भाई के लिए रहस्‍य की तरह खदबदा रहा था। वे बहुत बेचैन थे - स्‍वरा भास्‍कर, दीपक डोबरियाल, राज शेखर सबसे नसीम की कहानी का संदर्भ पूछ रहे थे। सबने अपनी अपनी व्‍याख्‍या बतायी होगी, मैंने उनसे कहा कि पैसे को लगता है कि वह दुनिया में सबकी माचिस लगा के रख सकता है और जब नहीं लगा पाता है, तब रेप कर डालता है। मेरा कहा पीयूष भाई को कन्विंसिग लगा या नहीं, पर मुझे नसीम की कहानी कहने के पीछे निर्देशक का यही तर्क नजर आता है।

    ले कैपिटल के संवाद भी शोले की तरह जलवाखेज हैं। मार्क अपनी कामयाबी के बाद जब अपने मां-बाप से मिलने पैतृक घर जाता है, तो उसका चाचा जो मार्क्सिस्‍ट बूढ़ा है, मार्क से एथिक्‍स को लेकर बहस करता है। चाचा कहता है कि हमारी जरूरत भर पैसा ही हमारी खुशी के लिए काफी है। मार्क कहता है कि खुशी की कोई सीमा नहीं है और आज पैसा ही सबको खुश कर सकता है, मनी इज द मास्‍टर। फिल्‍म का आखिरी संवाद ही पूरी कहानी का सार है, जब वह सिकंदर की तरह अपनी जीत का पहला भाषण शुरू करता है। कहता है, मैं आधुनिक रॉबिनहुड हूं, गरीबों से पैसे छीन कर अमीरों में बांटता हूं।

    एक लाजवाब फिल्‍म, जिसे न देखना बहुत अफसोसनाक होता। शुक्रिया Prakash K Ray, इस फिल्‍म को देखने का सुझाव देने के लिए।

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