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मीडिया जो कारपोरेट घराने के नियंत्रण मे


इस बार का चुनाव जनता बनाम मीडिया है। मीडिया जो कारपोरेट घराने के नियंत्रण मे है। उसके अपने सिद्धांत होते है जिनमे व्यवसायिक हित सर्वोपरि होता है। कारपोरेट के नियंत्रण वाले मीडिया से आम जनता की भलाइ की बात सोचना बेवकूफ़ी है। मीडिया को नियंत्रित करने वाले कारपोरेट घरानो पर देश के बडे व्यवसायिक घरानो का नियंत्रण है । हालांकि इसकी बीज आजादी के पहले हीं बोयी गई थी । गांधी जी सुत्रधार थे। बिरला-गोयनका जैसे महारथियो ने भांप लिया था मीडिया का आनेवाले समय मे प्रभाव । कारपोरेट घराने वाली मीडिया अभिच्यक्ति की आजादी का लाभ नही ले सकती। उसके उपर गलत विग्यापन प्रकाशित करने वाले कानून , अफ़वाह फ़ैलाने वाली धाराओ एवं धोखाधडी जैसे कानूनी प्रावधान लागू होने चाहिये। दुर्भाग्य है कि यह कारपोरेट नियंत्रित मीडिया के पक्ष मे बुद्धिजिवियो का वह तबका भी उतर जाता है जिसे यह मीडिया घास नही डालती। गाहे बगाहे बहस या परिचर्चा आयोजित किया जाता है इनके द्वारा उसमे , एक खुबसुरत लडकी या लडका , बहस के दौरान खुद तो तिसमार खा समझने वाले नेता या बुद्धिजिवी की डाट फ़टकार करता है , उनकी क्लास लेता है लेकिन टीवी पर, अखबार मे थोबडा दिखे, इस अहंम के कारण उनकी डाट पर भी मुस्कुराते है ये। जनता का बहुमत किसको मिलेगा अभी कहना बहुत कठिन है परन्तु इन मीडिया वालो का ओपिनियन पोल शुरु है। देश मे मात्र दस से बीस प्रतिशत मतदाता हीं निष्पक्ष है। इनका हीं मत मुद्दो पर आधारित होता है, इनका हीं मत इधर से उधर होता है । बाकी अस्सी प्रतिशत तो किसी न किसी राजनितिक दल के खरीदे हुये गुलाम है , हर हाल मे अपने हीं दल को वोट देंगें। बहुत गुस्सा हुये तो वोट देने नही जायेंगे , लेकिन दुसरे दल को कभी नही देंगें। इन जर खरीद गुलामो से सर्वेक्षण का अर्थ क्या है ? जनता ने अभी तक मन नही बनाया है। लूभाने की कोशिश जारी है, एक बार मुझे भी दे दो, भगवान के नाम पर दे दो, दंगे के नाम पर दे दो, माता की हत्ा हुई दे दो, पिता की हत्या हुई दे दो, मुफ़्त मे अनाज देंगे दे दो, आतंकवाद पनपने देंगे , समाजवादि बना देंगेसारे कट्तरपंथियो को दे दो, सर्वहारा को हमेशा मजदुर बनाये रखेंगे , तुम्हारी फ़ैक्टरी मे कभी कभी दिखावे के बंद करवायेंगे दे दो। इन भिखमंगो की भीख मांगने वाली कवायद शुरु हो चुकी है और इनके बीच कारपोरेट ने अपना लक्ष्य निर्धारित कर लिया है किसको बनाना है, किसको जिताना है, मीडिया बनाम जनता । भावनाओ से उपर उठना मुश्किल है । एकबार कोई नही हो पाता ।
Madan Tiwari Facebook wall se sabhar lekar .