भाई Yashwant Singh के सूचना देने पर आज दोपहर 12 बजे मित्रवर शिवानन्द द्विवेदी सहर के साथ नोएडा स्थित महुआ चैनल के कार्यालय पहुंचकर विरोध-प्रदर्शन में शामिल हुआ। बताते चलें कि गत तीन महीने से महुआ के 150 मीडियाकर्मियों को वेतन नहीं दिया जा रहा है और इससे आक्रोशित होकर चैनल में कार्यरत मीडियाकर्मियों ने काम करना बंद कर दिया है और वे तीन दिन से महुआ के कार्यालय में ही डेरा जमाए हुए हैं।
मैं यही कहना चाहूंगा कि महुआ के मालिक ने अपने संस्थान में कार्यरत मीडियाकर्मियों के जीने के लोकतांत्रिक अधिकार पर ही हमला बोल दिया है। उनके साथ बंधुआ मजदूर की तरह व्यवहार हो रहा है। लेकिन मीडियाकर्मियों की संघर्षशीलता प्रणम्य है। उन्होंने झुकने से मना कर दिया। वे पिछले 72 घंटे से संघर्ष कर रहे हैं। पत्रकारिता जगत में यह एक मिसाल है।
भारत उत्सवधर्मी देश है। दीवाली सबसे बड़ा त्योहार है। इस पर्व पर जब मालिक और कर्मचारी आपस में खुशियों को साझा करते हैं, ऐसे समय में महुआ के मालिक ने मीडियाकर्मियों के साथ अन्याय किया है। चैनल में साज-सज्जा और गेस्टों के ऊपर पैसे बहाए जा रहे हैं, लेकिन किसी भी मीडिया संस्थान के जो रीढ़ होते हैं यानी पत्रकार, उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार हो रहा है। दिल्ली जैसे महानगर में जहां पल प्रति पल संघर्षों का सामना करना पड़ता है, बच्चों की फीस, परिवारजनों के स्वास्थ्य, रूम किराया, भोजन आदि आवश्यक मदों पर बेहिसाब खर्च होते हैं, ऐसे में तीन-तीन महीने से वेतन नहीं मिलना, एक गृहस्थी होने के नाते जानता हूं, उनको कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता होगा।
अक्सर कहा जाता है पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। वह देश को दिशा देती है। मीडिया सब वर्गों की खबर लेता है लेकिन वह अपने अंदर व्याप्त चुनौतियों पर खामोश है। उसे नहीं उठाता। लेकिन यह अच्छी बात है कि महुआ के मीडियाकर्मी साथी अपने अधिकार के लिए संघर्षरत है। पिछले दिनों हमने देखा कि कई चैनलों में खूब छंटनी हुई लेकिन कोई बड़ा अभियान नहीं चला, ऐसे में महुआ के मीडियाकर्मी साथियों का यह संघर्ष एक मिसाल है। आगे से अब चैनल मालिक मीडियाकर्मियों के हितों के विरुद्ध कोई कदम उठाने से पहले सौ बार सोचेंगे।
आज का प्रदर्शन महुआ के मालिकों को चेतावनी जैसा रहा कि जल्द ही मीडियाकर्मियों को वेतन दो, अन्यथा आगे यह प्रतिरोध और तेज होगा।
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