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कभी बचाई थी राजीव गांधी की जान, आज कर रहा मजदूरी



कभी बचाई थी राजीव गांधी की जान, आज कर रहा मजदूरी
हांसी [हिसार], [पंकज नागपाल]। भारतीय सेना की पैरा रेजीमेंट में भर्ती होने के बाद वीरता के बलबूते शांति मेडल हासिल करने वाला जांबाज फौजी भरत सिंह आज दो जून की रोटी के जुगाड़ के लिए मजदूरी कर रहा है।
फौजी का कहना है कि श्रीलंका में भेजी गई शांति में वह भी शामिल था। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के जाफना दौरे के दौरान तामिल सैनिक ने अपनी राइफल के बट से जब राजीव पर प्रहार किया था तो उस समय वह ही भारतीय प्रधानमंत्री के पीछे चल रहा था और उसने राइफल को झपट कर पकड़ लिया था। उनकी इसी सतर्कता पर सेना अधिकारियों ने उनकी पीठ थपथपाकर उन्हें इनाम के तौर पर शांति मेडल प्रदान किया था। महेंद्रगढ़ जिले की कनीना तहसील के गांव पोटा के रहने वाले भरत सिंह ने बताया कि मजदूरी करने वाले उसके साथी अब भी उसे फौजी के नाम से पुकारते हैं।
भरत सिंह ने बताया कि वे 1981 में भारतीय थल सेना की पैरा रेजीमेंट में सैनिक के पद पर भर्ती हुए थे। वे आगरा में रेजीमेंट के मुख्यालय पर तैनात थे। अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर को आतंकियों से मुक्त करवाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी। उनकी इस शानदार बहादुरी से खुश होकर उन्हें हवलदार पद दिया गया था। इसके बाद उन्हें उनकी बहादुरी देख कर 1987 में उन्हें श्रीलंका में गई शांति सेना में भेजा गया था। वहीं कुछ समय बाद उनका बुरा दौर शुरू हुआ। भरत सिंह ने बताया कि अपनी यूनिट के हेड क्लर्क के एक आदेश को उन्होंने मानने से इंकार कर दिया था। इसी रंजिश में क्लर्क ने भरत सिंह को फंसाने के लिए षड्यंत्र रचना शुरू कर दिया। इसके कुछ ही समय बाद सेना के अधिकारियों व सैनिक साथियों के साथ सेना के वाहन में बैठकर जा रहे भरत सिंह के दोनों पांव एक भूमिगत सुरंग के फटने से बुरी तरह जख्मी हो गए। इसके बाद इलाज के दौरान उसके सिर पर करंट लगाकर उसे पागल घोषित कर सेना से वापस भेज दिया गया। यही नहीं, सेना में दिखाई बहादुरी के नाम पर उन्हें महज एक डिस्चार्ज पुस्तिका थमा दी गई। उन्हें पेंशन व अन्य लाभ नहीं दिए गए। उन्होंने बताया कि उनकी हालात का फायदा उठाकर कुछ लोगों ने उनकी जमीन पर भी कब्जा कर लिया। न्याय के लिए उन्हें जगह-जगह फरियाद की लेकिन सब व्यर्थ। व्यवस्था से थक हारकर सेना का ये हवलदार आखिरकार दो जून की रोटी के जुगाड़ के लिए मजदूरी करने पर विवश हो गया।'