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तेजपाल प्रकरण में मीडिया के एक हिस्से के दोगलेपन से लगा साख पर बट्टा

अनुराग बत्रा
चेयरमैन एंड एडिटर इन चीफ, एक्सचेंज4मीडिया समूह

भारतीय  मीडिया की प्रतिष्ठा को इससे ज्यादा ठेस कभी नहीं पहुंची। ऐसा सिर्फ एक बड़े कद और सम्मान की नजर से देखे जाने वाले पत्रकार पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगने के चलते नहीं, बल्कि महिलाओं के अधिकारों की बात करने वाले मीडिया के एक तबके की ओर से आरोपी को बचाने की कोशिश के चलते हुआ है।

तहलका के एडिटर-इन-चीफ तरुण तेजपाल न सिर्फ स्वतंत्र और निर्भीक पत्रकारिता का प्रतिनिधित्व करते हैं, ब्लकि वे ऐसे इनसान है जो तमाम दबावों से डरते नहीं है। पहले तो उन्होंने अपने से कई साल जूनियर सहकर्मी का कथित तौर पर यौन उत्पीड़न किया, बाद में तेजपाल और तहलका की मैनेजिंग एडिटर शोमा चौधरी ने मामले की गंभीरता को दबाने और आसानी से बच निकलने की कोशिश की। इससे मामला बद से बदतर हो गया। दोनों ने घटनाक्रम को घुमाने की कोशिश की जिसने चीजों को निंदनीय बना दिया।

पीड़ित पत्रकार की ओर से चौधरी को भेजे गए एक ई-मेल के जरिये मामले का खुलासा हुआ। इसमें उसने नवंबर में गोवा में आयोजित मैगजीन के थिंक फेस्ट के दौरान हुए कथित यौन उत्पीड़न के बारे में विस्तार से बताया है।

पीड़ित पत्रकार के मुताबिक, तेजपाल ने गोवा में दो बार उसके उत्पीड़न की कोशिश की। ई-मेल में उसने हर घटना का बारीकी से जिक्र किया है। तेजपाल और उसने एक-दूसरे को जो मेसेज भेजे वे इस मेल में मौजूद हैं। पत्रकार ने अपने तीन साथियों को इस मेल की कॉपी भेजी। इन्हीं तीन साथी पत्रकारों को उसने घटना की जानकारी दी थी।

जवाब में तेजपाल ने शोमा चौधरी को पछतावे भरा ई-मेल भेजा। उन्होंने मैगजीन के संपादक की कुर्सी से 6 महीने तक दूर रहकर अपनी हरकत के लिए प्रायश्चित करने की बात कही। तेजपाल ने बताया कि किस तरह उन्होंने अपने ‘खून, पसीने और मेहनत’ से तहलका को खड़ा किया और ये कि उनकी मैगजीन हमेशा ‘समानता और न्याय की पक्षधर’ रही है। तेजपाल ने खुद को जो सजा दी वो अपने किए पर पछतावे की बजाय घमंड के रूप में सामने आई।

पीड़ित ने अपने ई-मेल में चौधरी से मामले की जांच के लिए एक समिति बनाने की मांग की थी। लेकिन मामला मीडिया में आने के बाद ही चौधरी ने इस दिशा में कदम उठाने का फैसला किया। शोमा ने लिखा : ’तरुण तेजपाल की संपादक की कुर्सी से हटने की पेशकश स्वीकार किए जाने के बाद तहलका ने विशाखा गाइडलाइंस के आधार पर एक जांच समिति गठित की है। इसकी अध्यक्षता नामी महिलावादी और प्रकाशक उर्वशी बुटालिया करेंगी। समिति के दूसरे सदस्यों के नाम का ऐलान जल्द किया जाएगा।’

चौधरी ने आगे लिखा, ‘तहलका सेक्सुअल हैरेसमेंट ऑफ वुमन (प्रिवेंशन, प्रोहिबिशन और रेड्रेसल एक्ट, 2013) के सेक्शन 4 के मुताबिक कंप्लेंट्स कमिटी का गठन सुनिश्चित करेगा। तहलका को ऐसे संस्थागत तंत्र की कमी महसूस हो रही थी।’

इसने मामले को बदतर बना दिया। तेजपाल के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग और तेज हो गई। इस मामले में मैगजीन प्रबंधन का ढीला-ढाला रवैया सामने आने के बाद गोवा पुलिस तेजपाल को पूछताछ के लिए बुलाने पर विचार करने लगी। इस विवाद में ताजा खबर है तेजपाल और चौधरी के खिलाफ गोवा में दर्ज की गई एफआईआर। वैसे अब कुछ बातें साफ होने लगी हैं।

पहली बात देश में उत्पीड़न के बारे में समझ की कमी है। सुप्रीम कोर्ट के कई ऐसे फैसले हैं जिनमें साफ तौर पर कहा गया है कि महिला की सहमति के बगैर उसके साथ सेक्स की हर कोशिश बलात्कार की कोशिश से कम नहीं है। तेजपाल का मामला कहीं से भी उत्पीड़न नहीं है। पीड़ित ने अपने ई-मेल में साफतौर पर कहा है कि ‘विरोध के बावजूद तेजपाल ने उंगलियों से उसे पेनिट्रेट किया।’ तेजपाल ने घटना की जिम्मेदारी ली है जिससे साफ हो जाता है कि यह बलात्कार का मामला है। अहम तथ्य यह है कि मैगजीन ने इसे बलात्कार का मामला नहीं माना और तेजपाल को इससे अलग रखा, यह मीडिया और देश के लिए शर्मनाक बात है।

दूसरी बात है यौन उत्पीड़न और बलात्कार के मामलों से सार्वजनिक रूप से निबटने में दृढ़ इच्छाशक्ति की कमी का होना। बीते कुछ दिनों में तहलका ने जो बर्ताव किया है उससे देश हैरत में है। खासकर तब जब तहलका हमेशा से महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ता रहा है।

चौधरी ने तेजपाल पर बलात्कार का आरोप लगाने वालों पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि बेसिक रिपोर्टिंग गाइडलाइंस के मुताबिक, घटना के बारे में बताते वक्त ‘कथित’ शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। शोमा ने कहा कि अब जब मामला सार्वजनिक हो चुका है तो तेजपाल के पास अपना पक्ष रखने का अधिकार है। चौधरी ने कहा कि उन्हें ऐसे देखा गया जैसे वह पीड़ित पत्रकार के खिलाफ काम कर रही हों जो कि दुखद है जबकि उसके सामने आने पर उन्हें गर्व महसूस हुआ। शोमा ने कहा कि अगर महिला पत्रकार का बयान सही साबित होता तो वह घटना को बलात्कार या उसकी कोशिश कहती।

जानकार पत्रकार और वक्ता होने के बावजूद यह शोमा की फैसला लेने की क्षमता में कमी को दर्शाता है। मामले की जांच के लिए समिति गठित करने में इच्छाशक्ति की कमी हमारे समाज की पितृसत्तात्मक सोच के समान है जो ऐसी घटनाओं से बंद दरवाजों के भीतर ही निबटने में यकीन रखता है।

इस विवाद का तीसरा अहम पहलू है सोशल मीडिया का अच्छा और बुरा पक्ष। खबर सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर न्याय और तेजपाल के खिलाफ कार्रवाई के लिए जो आवाजें उठीं उन्होंने आरोपी को सजा देने के लिए तहलका, केंद्र और राज्य सरकार पर ठोस कार्रवाई के लिए दबाव डाला। हालांकि, सोशल मीडिया का एक घटिया चेहरा भी सामने आया। एक तबके ने तेजपाल की बेटी पर भद्दी टिप्पणियां कीं। कहा गया है कि उनकी परवरिश वेश्लयालय में हुई है। तेजपाल के खिलाफ नहीं बोलने के लिए उनकी बेटी को गालियां दी गईं। तेजपाल की बेटी के खिलाफ सोशल मीडिया पर इस तरह से कैंपेन चलाई गई कि उसे अपना ट्विटर अकाउंट डिलीट करना प़ड़ा।

इस वक्त एक मिसाल पेश किए जाने की जरूरत है। इसका मतलब सिर्फ तेजपाल को सजा दिया जाना नहीं है। बलात्कार कोई आंतरिक मामला नहीं है। यह देश के हर नागरिक से जुड़ा हुआ है। इसका संबंध देश के युवाओं और महिलाओं से है। अगर उन्हें वर्कफोर्स में शामिल होने से रोका जाएगा तो व्यवस्था में बदलाव कैसे आएगा। पुरानी पीढ़ी की जिम्मेदारी है वो नए लोगों को काम करने के लिए पेशेवर वातावरण मुहैया कराए।

आखिर में, यह ‘भद्दी घटना’ हमारी व्यवस्था में मौजूद बनावटीपन, निराशावाद और जोड़-तोड़ को दर्शाती है। इसने अहंकार और दोहरेपन को सामने रखा है। आज के दौर के जागरूक लोग इसे समझते हैं।

न्याय का मतलब सिर्फ सजा देना नहीं है, यह काफी सरल है। इसका मतलब घटना, पीड़ित, जनता, कानून और देश का सम्मान करना है। खासकर इस मामले में।

Sabhar= Samachar4media.com