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यशवंत का विकास, ब्रह्मांड और अध्यात्म चिंतन

Yashwant Singh : ब्रह्मांड में ढेर सारी दुनियाएं पृथ्वी से बहुत बहुत बहुत पहले से है.. हम अभी एक तरह से नए हैं.. हम अभी इतने नए हैं कि हमने उड़ना सीखा है.. स्पीड तक नहीं पकड़ पाए हैं.. किसी दूसरे तारे पर पहुंचने में हमें बहुत वक्त लगेगा.. पर दूसरी दुनियाएं जो हमसे बहुत पहले से है, वहां संभव है ऐसे अति आधुनिक लोग हों कि अब वे टेक्नालजी व बाडी को एकाकार कर पूरे ब्रह्मांड में भ्रमण कर रहे हों, कास्मिक ट्रैवल पर हों...उनके लिए हमारे रेडियो संदेश इतने पिछड़े हों कि वे उसे इगनोर कर दें या पढ़ कर जवाब दें तो उस जवाब को समझने में हमें सैकड़ों साल लग जाएं....
जरूरी नहीं कि जीवन वहीं हो जहां कार्बन हो... कार्बन विहीन लेकिन सिलिकान बहुल दुनियाओं में भी जीवन है और वहां के जीवन फार्मेट, पैरामीटर, शक्ल-सूरत अलग है... दूसरी दुनियाओं को समझने के लिए जिंदा होने की अपनी परिभाषा को फिर से परिभाषित करने की जरूरत है. बेहद ठंढे और बेहद गर्म दुनियाओं में जीवन है... जीवन बहुत मुश्किल से मुश्किल स्थितियों में बहुत कम एनर्जी से भी कायम रह पाने में संभव है... सरवाइवल के लिए इंटेलीजेंस का होना जरूरी नहीं है... सरवाइवल बेहद मुश्किल हालात में बहुत कम एनर्जी से भी संभव है... जीवन पनपने के जो मूलभूत आधार धरती के लिए अनिवार्य हों वही अन्य दुनियाओं के लिए होना जरूरी नहीं...
धरती पर जो कुछ भी है वह दूसरी दुनियाओं से आया हुआ है.. हम मनुष्य खुद भी यहां धरती के नहीं हैं... हमारा सब कुछ स्टार डस्ट से बना है... यहां लोहा से लेकर कार्बन तक दूसरी दुनियाओं के उठापटक विस्फोट संकुचन के जरिए गिरता उड़ता गलता सुलगता फटता हुआ आया है... ऐसा संभव है कि ब्रह्मांड कि किसी दूसरी उन्नत दुनिया में कोई सुपर इंटेलीजेंट सुपर डेवलप सभ्यता हो जिसके सामने हम बच्चे ही नहीं बल्कि बिलकुल नए हैं.. वे हम पर नजर रखे हुए हों... ऐसा संभव है कि पूरे ब्रह्मांड के संचालन में कुछ बेहद समझदार और बेहद प्राचीनतम जीवन - सभ्यता का हाथ हो, जिन्हें हर तारे के बुझने, जन्मने, फटने, हर ग्रह और उपग्रह पर जीवन के पैदा होने व नष्ट होने का सही सही हिसाब पता हो... और इस कारण वे अपने को अपनी बेहतरीन तकनीक के जरिए, कास्मिक ट्रैवल के माध्यम से एक तारे से दूसरे तारे या एक ग्रह से दूसरे ग्रह या एक दुनिया से दूसरी दुनिया या एक गैलेक्सी से दूसरी गैलेक्सी या एक प्लानेट से दूसरे प्लानेट में शिफ्ट कर लेने में सक्षम हों...
जीवन की जो परिभाषा हमने गढ़ रखी है, वह काफी संकुचित और स्थानीय है. अदृश्य में भी जीवन संभव है, स्थिर में भी जीवन संभव है.. हमने इंटेलीजेंट एलियन्स को लेकर अपने मन-मुताबिक धारणाएं, तस्वीरें, कहानियां पाल रखी हैं.. वो दूसरी दुनियाओं में वहां के माहौल के हिसाब से बिलकुल अलग तरीके के जीवित हो सकते हैं जिन्हें संभव है हम जिंदा ना मानें...
डिस्कवरी साइंस चैनल पर यूनीवर्स को लेकर कई तरह के प्रोग्राम आते रहते हैं जिससे मिले ज्ञान के कुछ अंश की कड़ियों को अक्रमबद्ध रूप से जोड़ने-तोड़ने-मरोड़ने की कोशिश :) .. और इसी प्रक्रिया में उपजी ये चार लाइनें...
हर रोज खुद को तुम को सब को बड़े आश्चर्य से निहारता हूं
हर रोज ज़िंदगी होने, न होने के बीच के थोड़े मायने पाता हूं
हर रोज अपने अंदर-बाहर के दुनियादारी से दूर हुआ जाता हूं
हर रोज कुछ नया कुछ चमत्कार सा हो पड़ने का भ्रम पाता हूं
जैजै
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Sabhar- Bhadas4media.com