Naved Shikoh : अब कलम बिकेगा, अखबार नहीं... RNI और DAVP में दर्ज यूपी के 97% पत्र-पत्रिकाओं का वास्तविक सर्कुलेशन 0 से 1000 तक ही है। सोशल मीडिया पर कोई भी अपनी बात या अपना विज्ञापन फ्री में हजारों-लाखों लोगों तक पहुंचा सकता है। ऐसे में बड़े अखबारों को छोड़कर किसी अन्य को चुनावी विज्ञापन क्या खाक मिलेगा! यही कारण है कि सोशल मीडिया पर लिखने की कला का बाजार सजने लगा है। सुना है यूपी के निकाय चुनाव के चुनावी दावेदार सोशल मीडिया को प्रचार का सबसे बड़ा-आसान और सस्ता माध्यम बनाने जा रहे हैं।
जुमलेबाजी की जादूगरी से सच को झूठ और झूठ को सच साबित करने का हुनर रखने वाले कलमकारों की मांग बढ़ गयी है। प्रत्याशियों को प्रचारित करते हुए कलमकारों का हुनर मुफ्त के प्लेटफार्म सोशल मीडिया पर मुखरित होगा। पत्रकार खबर इन्टरव्यू/फर्जी सर्वै/फीचर का हुनर दिखायेगा। कवि-शायर तुकबंदी के जादू से पैसा कमा सकेगा। लेकिन पत्रकारों के लिए सोशल मीडिया पर कैम्पेन मृत्यु शय्या पर पड़े इनके रोजगार की संजीवनी साबित होगा।
देशभर के ज्यादातर अखबारों के बंद हो जाने के पूरे आसार है। बेरोजगारी के खतरों के बीच पत्रकार सोशल मीडिया पर पेड न्यूज में अपनी रोजी-रोटी तलाशने लगा है। इन्टरनेट का जदीद दौर पुराने दौर में भी लिए जा रहा है जहां कलमकार का दर्जा किसी अखबार के मालिक से ऊंचा होता था। लेकिन आज लाइजनिंग, सियासत और मीडिया संचालकों के मोहताज होते जा रहे थे कलमकार। वक्त ने करवट ले ली है। इन्टरनेट (सोशल मीडिया /वेबसाइट) के जरिए कलमकार अब किसी बिचौलिए का मोहताज नहीं रहेगा। जिसमें लिखने की कला है वो बेरोजगारी की इस आंधी में भी भूखा नहीं रहेगा। एक हाथ से लिखेगा और दूसरे हाथ से पैसा लेगा।
-नवेद शिकोह
पत्रकार, लखनऊ
9918223245
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