वेंकट सुष्मिता विश्वास ।।
‘इंडियन रीडरशिप सर्वे’ (IRS) 2017 के आंकड़े 18 जनवरी 2018 को मुंबई में जारी किए जाएंगे। ‘आईआरएस’ की गैरमौजूदगी में अब तक पुराने और असत्यापित आंकड़ों के आधार पर काम कर रहीं मीडिया एजेंसियां अब इस सर्वे की लॉन्चिंग का बेसब्री से इंतजार कर रही हैं। पिछले चार वर्षों से पुराने आंकड़ों के आधार पर काम कर रहे इन एजेंसियों के प्रमुख भी इस सर्वे के नए आंकड़ों के जारी होने की प्रतीक्षा में हैं।
दरअसल, इन चार वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। इन वर्षों में मोबाइल ने अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज कराई है और इसका इस्तेमाल अभी भी तेजी से बढ़ रहा है जबकि ये एजेंसियां अभी भी उन्हीं आंकड़ों को आधार बनाकर अपने काम में जुटी हुई हैं, जो काफी पुराने हो चुके हैं।
इस बारे में ‘ओमिनीकॉम मीडिया ग्रुप इंडिया’ (Omnicom Media Group India) के सीईओ हरीश श्रीयान का कहना है, ‘इन चार वर्षों के दौरान हमें महसूस हुआ है कि आईआरएस की गैरमौजूदगी में नाटकीय रूप से मोबाइल ने शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में मीडिया के उपभोग की दिशा बदल दी है।’ वहीं, ‘Havas Media Group India’ के मैनेजिंग डायरेक्टर मोहित जोशी का कहना है कि उन्होंने भी इस सर्वे की खासकर ग्रामीण क्षेत्र के परिप्रेक्ष्य में काफी कमी महसूस की है।
‘पाइंटनाइन लिंटास’ (PointNine Lintas) के सीईओ विकास मेहता का कहना है, ‘पिछले चार साल से एजेंसियां पुराने डाटा के आधार पर ही आंख मूंदकर काम कर रही थीं। इस दौरान विभिन्न समाचार पत्रों ने प्रॉडक्ट की वैल्यू बढ़ाए बिना विज्ञापन दरों में वृद्धि भी कर दी थी। हालांकि इन आंकड़ों की शुद्धता और लोगों की राय को लेकर हमेशा बहस होती रहेगी लेकिन काम करने के लिए डाटा का होना बहुत जरूरी है।’
मेहता का कहना है, ‘यदि प्रिंट इंडस्ट्री की बात करें तो भारत ऐसे चुनिंदा देशों की लिस्ट में शुमार है, जहां पर अभी भी प्रिंट आगे बढ़ रहा है। चार साल से पब्लिशिंग इंडस्ट्री पुराने सर्वे के आधार पर ही काम कर रही थी। ऐसे में 18 जनवरी को आंकड़े जारी होना काफी महत्वपूर्ण है। आईआरएस की यह वापसी स्वागतयोग्य है।’
मीडिया प्लानर्स को इन डाटा के जारी होने का इसलिए भी बेसब्री से इंतजार है, क्योंकि चार साल से चल रही ऊहापोह की स्थिति का अब अंत हो जाएगा और नए सिरे से प्लानिंग करने में आसानी रहेगी। आईआरएस का बेसब्री से इंतजार कर रहीं ‘करात’ (Carat) की सीईओ रजनी मेनन का कहना है, ‘अब हमारे पास ज्यादा ताजा आंकड़ें होंगे , जिससे हमारे क्लाइंट्स के पास ज्यादा विकल्प होंगे। क्योंकि वे अभी तक विभिन्न पब्लिकेशंस द्वारा बताए गए आंकड़ों को देख रहे हैं, जबकि उनमें सच्चाई नहीं है।’
पूर्वानुमान (Anticipation)
मेहता का कहना है, ‘अभी तक एजेंसियों के पास अनुमानों अथवा लोगों की राय के अलावा ऐसा कोई बेंचमार्क नहीं था, जिससे विभिन्न पब्लिकेंशंस के बारे में सटीक पता लगाया जा सके कि कौन एक-दूसरे से आगे है। नए आंकड़ों के जारी होने से यह समस्या दूर हो जाएगी और हमें उम्मीद है कि इससे विभिन्न पब्लिकेशंस के बीच उत्तरदायित्व की भावना आएगी, जो काफी महत्वपूर्ण है और प्रिंट को इसकी जरूरत भी है।‘
मेनन का कहना है कि वर्ष 2014 में 18 पब्लिकेशंस सदस्यों ने त्रुटिपूर्ण होने का आरोप लगाते हुए आईआरएस की निंदा की थी और इन्हें खारिज कर दिया था। इसलिए अब इस रिपोर्ट से काफी उम्मीदें हैं। मीडिया एजेंसियों को पूरी उम्मीद है कि ‘मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल’ (MRUC) ने इसके लिए कड़ी मेहनत की है और इसलिए एक तथ्यात्मक रिपोर्ट जारी होने की उम्मीद है।
मेनन ने कहा, ‘पिछली बार ढेर सारी गड़बडि़यां हुई थीं, इसलिए इस बार उम्मीद है कि नए आंकड़े पूरी इंडस्ट्री को मान्य होंगे। उम्मीद है कि इस बार यह आंकड़े काफी सटीक होंगे और पिछली बार की तरह इनमें ज्यादा विसंगतियां नहीं होंगी।’
मेनन के अनुसार, चूंकि इन आंकड़ों को जारी करने में (MRUC) ने काफी देरी की है, इसलिए मीडिया प्लानर्स को उम्मीद है कि इन आंकड़ों को सत्यापित करने और उन्हें ज्यादा विश्वसनीय बनाने के लिए ज्यादा समय मिल गया है। ऐसे में एक अच्छी रिपोर्ट जारी होने की उम्मीद है।’ वहीं, जोश ने कहा कि इस बार के सर्वे में सैंपल का आकार बड़ा होने से वे बहुत खुश हैं और उम्मीद है कि इंडस्ट्री को भी इन डाटा से कोई ऐतराज नहीं होगा।
मेनन के अनुसार, चूंकि इन आंकड़ों को जारी करने में (MRUC) ने काफी देरी की है, इसलिए मीडिया प्लानर्स को उम्मीद है कि इन आंकड़ों को सत्यापित करने और उन्हें ज्यादा विश्वसनीय बनाने के लिए ज्यादा समय मिल गया है। ऐसे में एक अच्छी रिपोर्ट जारी होने की उम्मीद है।’ वहीं, जोश ने कहा कि इस बार के सर्वे में सैंपल का आकार बड़ा होने से वे बहुत खुश हैं और उम्मीद है कि इंडस्ट्री को भी इन डाटा से कोई ऐतराज नहीं होगा।
परिणाम (Results)
श्रीयान का मानना है कि हालांकि ये रिपोर्ट एक लंबे समय अंतराल के बाद आ रही है, ऐसे में इसमें इंडस्ट्री में हुए बदलावों को बेहतर तरीके से दर्शाया जा सकता है। उनका कहना है, ‘प्रिंट मीडिया पर इन बदलावों का क्या असर हुआ है, इसका भी लंबे समय से इंतजार किया जा रहा है। हमारा मानना है कि भाषायी पब्लिकेशंस की पहुंच में ज्यादा इजाफा हुआ होगा। इस रिपोर्ट का एक फायदा यह भी होगा कि पिछले चार वर्षों से विभिन्न पब्लिकेशंस अपने-अपने दावे कर रहे थे, लेकिन अब पुष्ट और प्रमाणिक आंकड़े आ जाएंगे।
वहीं, जोशी का कहना है, ‘मेरे अनुसार, आंकड़े वास्तविकता के नजदीक होने चाहिए, जिसमें डिजिटल का इस्तेमाल बढ़ना चाहिए और प्रिंट की रीडरशिप घटनी चाहिए। यदि इंटरनेट के परिप्रेक्ष्य में देखें तो इतने वर्षों में मोबाइल की पहुंच ज्यादा बढ़ी है और इसके द्वारा लोग डिजिटल की ओर ज्यादा बढ़ रहे हैं, खासकर छोटे कस्बों और गांवों में मोबाइल पर मीडिया का इस्तेमाल भी ज्यादा बढ़ा है
Sabhar-http://samachar4media.com/irs-you-have-been-missed