Sanjaya Kumar Singh : जब कानून का शासन नहीं होगा तो अराजकता ही रहेगी… भड़ास4मीडिया के दमदार 10 साल के जलसे में मीडिया के सताये, नोएडा के डॉक्टर अजेय अग्रवाल ने अपनी आप बीती सुनाई। वैसे तो यह उनकी अपनी व्यथा है लेकिन पूरे मामले में यह साफ हो गया कि इस देश में मीडिया की मनमानी से कहीं राहत नहीं है। स्थिति को लेकर जो अराजकता है उसमें चैनल चलाने की शर्तों का उल्लंघन होता है, बिना लाइसेंस चैनल चलते हैं और कोई जवाब नहीं है इसलिए वेबसाइट से पुरानी शर्त हटा ली गई हैं। यह भी कि किन शर्तों का उल्लंघन होने पर लाइसेंस रद्द कर दिए जाने का नियम है। इससे साबित होता है कि मीडिया के मामलों में नियमों का पालन नहीं हो रहा है और कानून का शासन नहीं है।
एक मामले में अदालत ने माना कि पीड़ित के साथ नाइंसाफी हुई है। माफीनामा चलाने का आदेश हुआ पर उसका पालन नहीं हुआ। आप जानते हैं कि स्वनियमन के तहत मीडिया वालों ने अपने ही लोगों के माफीनामा चलाने के आदेश को भी नहीं माना है। अदालती आदेश नहीं मानने का भी उदाहरण है। नियम है कि कायदों का उल्लंघन करने पर प्रसारण रोक दिया जाएगा पर रोका नहीं गया। और उल्लंघन के इतने मामले हो चुके हैं कि लाइसेंस रद्द हो जाना चाहिए। पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। आरटीआई के तहत लाइसेंस के बारे में जानकारी मांगी गई तो जवाब आया कि यह सूचना नहीं दी जा सकती है। हां, उल्लंघन के मामले और लाइसेंस की इस शर्त की जानकारी वेबसाइट से जरूर हटा ली गई है।
कल्पना कीजिए कि मीडिया ने आपके खिलाफ खबर चलाई आपने शिकायत की। कुछ नहीं हुआ। अंततः आपके पक्ष में आदेश हुआ पर न आदेश का पालन हुआ और न राहत मिली। और राहत क्या? कोई दो-चार करोड़ रुपए देने का आदेश नहीं। सिर्फ माफीनामा चलाने का आदेश। शिकायतकर्ता भी यही चाहता है। पर पालन नहीं हो रहा है। समझौते की कोशिशें हो रही हैं। पैसे देने की पेशकश रही है पर माफीनामा नहीं चल पाया। उसमें अदालत और सूचना व प्रसारण मंत्रालय सब की भूमिका संदिग्ध, दिलचस्प और जानने लायक है। डॉक्टर अग्रवाल ने कहा कि वर्षों पहले जब फर्जी स्टिंग के जरिए उन्हें जानबूझकर बदनाम किया गया तो उनके पास तीन विकल्प थे – आत्महत्या कर लेना, बदनाम करने वालों की हत्या कर देना और उपयुक्त कानूनी कार्रवाई करना। मैंने एक अच्छे नागरिक की तरह तीसरा विकल्प चुना और मुझे अभी तक न्याय नहीं मिला है।
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डॉक्टर अग्रवाल का पूरा मामला देश में मीडिया की हालत पर किताब लिखने लायक है। मीडिया और मीडिया में काम करने वालों की हालत पर राम बहादुर राय ने मीडिया कमीशन बनाने की जरूरत बताई। इसमें कोई दो राय नहीं है कि जल्दी ही इस मामले में कुछ ठोस नहीं किया गया तो कब मामला कहां फंसेगा कोई ठिकाना नहीं है। कमर वहीद नकवी ने इसरो के वैज्ञानिक को झूठे मामले में फंसाए जाने के मामले की चर्चा की और कहा कि मीडिया को इतने समय तक यह पता ही नहीं चला कि मामला झूठा है। कहने की जरूरत नहीं है कि मीडिया पुलिस के ‘लीक’ पर खबर बनाता है और इस बहाने मीडिया ट्रायल भी होता है। पर पीड़ितों के पास राहत का कोई उपाय नहीं है।
अभी तक लगता था कि लोग मीडिया की शिकायत नहीं करते हैं। पर अब (सोशल या वैकल्पिक मीडिया की बदौलत) यह पता चल पाया है कि राहत पाना आसान नहीं है। या कहिए कि संभव ही नहीं है। मीडिया को सरकारी नियंत्रण मंजूर नहीं है, स्वनियमन वह मानेगा नहीं और अदालती आदेश पर भी कार्रवाई न हो तो स्थिति वाकई चिन्ताजनक है। डॉक्टर अजेय अग्रवाल के मामले को इस मामले में मानक मानकर और उनकी सलाह, सुझाव व सूचना पर इस मामले में शीघ्र कुछ किए जाने की जरूरत है वरना चौथा स्तंभ वैसे ही ढह रहा है मरम्मत या दोबारा खड़ा करने लायक भी नहीं रहेगा। और मीडिया के बिना लोकतंत्र आधा-अधूरा ही हो सकता है। जिसमें लिंचिंग से लेकर टीवी स्टूडियो में पिटाई आम हो। जब कानून का शासन नहीं रहेगा तो अराजकता ही रहेगी।
यहां उल्लेखनीय है कि मशहूर गायक दलेर मेहंदी की भी शिकायत थी कि उन्हें कबूतरबाजी में जान बूझकर फंसाया गया था और तब वे काफी परेशान हुए थे। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि उनसे पैसे मांगे गए थे देने से मना करने का नतीजा यह रहा। वे अपने अच्छे दिनों में जनसेवा के बहुत सारे काम करते थे पर पुलिस द्वारा फंसाए जाने और इस कारण मीडिया द्वारा एकतरफा रिपोर्टिंग से वे बहुत निराश हुए और अब जनसेवा के कार्य नहीं करते हैं। आज भड़ास के कार्यक्रम में बस्तर में हर्बल फार्मिंग करने वाले राजा राम त्रिपाठी ने भी पैसे मांगने और नहीं देने पर आयकर अधिकारियों द्वारा परेशान किए जाने की शिकायत की और कहा कि मीडिया से उन्हें अपेक्षित सहायता नहीं मिली।
वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह की एफबी वॉल से. संजय को भड़ास की तरफ से भड़ास सोशल मीडिया एक्टिविज्म एवार्ड से सम्मानित किया गया. देखें इस मौके की कुछ तस्वीरें…