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विनोद कापड़ी की ‘पीहू’ देख कर लौटे यशवंत ने रिव्यू में क्या लिखा, पढ़ें

Yashwant Singh : रिलीज के फर्स्ट डे ही ‘पीहू’ देख आया था पर सरवाइकल के अंतहीन दर्द के कारण लिख न सका। एक लाइन में अगर आंखों देखी का निष्कर्ष बताऊं तो ये कि यह फ़िल्म हमें मेच्योर बनाती है, सिखाती है, कि पति पत्नी अपने छोटे छोटे झगड़े और अहंकार के चलते अपने जिगर के टुकड़े का जीवन अनायास ही दांव पर लगा देते हैं।
जो लोग शादी करने वाले हैं या पिछले दो चार साल में कर चुके हैं, वे ज़रूर देख लें ये सिनेमा, शादी बाद वाले जीवन की पैरेंटल दुनियादारी व बाल मनोविज्ञान समझने के वास्ते!
बाकी ये सच लगा कि इस फ़िल्म को Vinod Kapri ने नहीं बनाया है, इसे खुद 2 साल की हीरोइन पीहू ने जिया और तैयार कराया है। फ़िल्म मेकिंग की सारी टीम और क्रू ने केवल सीन क्रिएट कर कैमरा आन रखा। इससे तैयार कच्चे माल यानि 68 घण्टे की रिकार्डिंग / फुटेज को बेहतरीन ढंग से एडिट कराया।
हां, विनोद कापड़ी ने 2 साल की बच्ची पर फ़िल्म बनाने का निर्णय लेने का ज़रूर दुस्साहसिक काम किया और उन्हें पीहू ने निराश नहीं किया। पीहू बिटिया के पापा Rohit Vishwakarma और मम्मी के सक्रिय इन्वॉल्वमेंट के बगैर पीहू इतना जीवंत, सहज और मर्मस्पर्शी अभिनय नहीं कर पाती, ये भी सच है।
ये फ़िल्म थ्रिलर नहीं, डरावनी नहीं, सांस रोकने वाली नहीं बल्कि विपरीत हालात में भी अपने सहज बाल मन के जरिए हर पल को जी कर मनुष्यता / जिजीविषा ज़िंदाबाद बनाए रखने की कहानी है। ऐसी फिल्में हिंदी में नहीं बना करतीं। ये विश्व सिनेमा की धरोहर है। जाइए देख आइए, क्योंकि ये कहीं विदेश में नहीं बल्कि आपके पड़ोस के सिनेमा हॉल में लगी है।
जै जै
यशवंत
भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह की एफबी वॉल से