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दुनिया के सबसे माहिर खोजी पत्रकार को कर लिया गया गिरफ़्तार


विकीलीक्स के संस्थापक जुलियान असांज की गिरफ्तारी संकेत दे रही है कि आधा विश्व इतिहास में पहली बार दक्षिणपंथी ताकतों के कब्ज़े में आ गया है। इक्वाडोर और लैटिन अमेरिका के इतिहास में सबसे बड़े गद्दार लेनिन मोरेनो ने ब्रिटिश पुलिस को असांज को गिरफ्तार करने के लिए लंदन में इक्वाडोर दूतावास में घुसने दिया। यूरोप सहित पूरे विश्व में असांज की गिरफ्तारी की तीखी प्रतिक्रिया हुई है। रूस में निर्वासन में रह रहे अमेरिकी व्हिस्लब्लोअर एडवर्ड स्नोडेन ने ट्वीट किया, “असांज के आलोचक खुश होंगे लेकिन ये प्रेस की स्वतंत्रता का काला क्षण है”।
इक्वाडोर दूतावास में असांज को शरण देने वाले इक्वाडोर के पूर्व नेता रफाएल कोरिया ने इसे मानवता पर हमला बताया है। असांज की दोस्त और बेवॉच सीरियल की अभिनेत्री पैमेला एंडरसन ने ट्विटर पर कहा कि वे सदमे में हैं. खोजी पत्रकारिता के द्वारा गोपनीय दस्तावेज लीक कर दुनिया में तहलका मचाने वाले असांज पर कथित बलात्कार का आरोप हथियार की तरह इस्तेमाल किया गया है। सारी दुनिया जानती है असांज निर्दोष है, बेगुनाह है। पूरे विश्व में दक्षिणपंथी ताकतें लोकतंत्र के हाथ आजादी का गला घोंट रहे हैं। कलम को बंदूक के बल पर खामोश करने की कोशिश हो रही है।
असांज तुम हीरो हो। तुम्हारी रिहाई के लिए पूरे विश्व में तीव्र विरोध होगा।
फेसबुक पर आशुतोष तिवारी लिखते हैं-
विकीलीक्स का फ़ाउंडर और एक आस्ट्रेलियाई एडिटर जूलियन असांज। दुनिया भर में अमेरिका की पोल खोलने वाले जूलियन को आज ब्रिटेन पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया है। 2012 में उन्होंने लातिन अमरीकी देश इक्वाडोर से शरण माँगी थी। सात साल से वह वहीं पर थे। अंकल सैम(America) के दबाव में इक्वाडोर ने उन्हें ब्रिटेन को सौंप दिया है। यह कहानी 2010 में शुरू होती है। 2006 में शुरू हुई एक वेबसाइट क्लासीफाइड फ़ाइलों को प्रकाशित कर दुनिया को अमेरिका का छुपा हुआ ख़तरनाक चेहरा दिखाती है। यह एक लीक सिरीज़ थी जिसे मैंने कम शब्दों में लिखने की कोशिश की है –
1- 12 जुलाई, 2007। ईराक़ युद्ध हो चुका था। युद्ध के बाद वहाँ विद्रोह का दौर था। इसी दौरान दो हेलीकॉप्टरों की टीम द्वारा इन विद्रोहियों पर बिना चेतावनी बम बरसाए गए। 5 अप्रैल 2010 को वेबसाइट विकीलीक्स ने 39 मिनट के विडियो से यह प्रूव कर दिया कि इन सिलसिलेवार स्ट्राइक्स को अमेरिका ने अंजाम दिया था। कलेट्रल मर्डर नाम के इस विडियो में दिख रहा था कि अमेरिकी सेना ख़त्म हो रहे लोगों पर हंस रही थी। सारी दुनिया सन्न रह गयी ।
2- 25 जुलाई 2010। पहले ख़ुलासे के 13 दिन बाद, अफ़ग़ानिस्तान वार से जुड़े हुए ख़ुफ़िया दस्तावेज़ इस वेबसाइट ने प्रकाशित किए। यह अमेरिकी सैन्य इतिहास का सबसे बड़ा फ़ेल्योर था। इसमें नागरिकों की हत्या की संख्या, तालिबान हमलों में इज़ाफ़े का वास्तविक डेटा था,जिसने अमेरिका सहित सारी दुनिया का ध्यान अमेरिका की छिप कर की जा रही क्रूरता पर खींच लिया।इसमें गठबंधन बलों के हाथों मारे गए उन नागरिकों के बारे में बताया गया, जिनके बारे में खबरें सामने नहीं आईं थीं।
3- 22 अकटूवर 2010। इस वेबसाइट ने इराक युद्ध के दस्तावेजों का ख़ुलासा किया। यह अमेरिकी सेना के फील्ड रिपोर्ट थी, जिसे 2004 से 2009 तक इराक युद्ध के दौरान तैयार किया गया था। फाइलों में ऑन रिकॉर्ड 109,000 मौतें दर्ज थी, जिसमें 66,081 नागरिक थे। अमरीका की क्रूरता एक बार फिर चर्चा में थी।
4-28 नवमबर 2010। एक और बड़ा ख़ुलासा विकिलिक्स ने किया। अमेरिका के पास दुनिया भर के नेताओं के राजनयिक विश्लेषण उनके अधिकारियों के राजनयिक मूल्यांकन से जुड़े दस्तावेज़ हैं। इन्हें वाणिज्य दूतावासों और राजनयिक मिशनों द्वारा 1966 और फरवरी 2010 के बीच जुटाया गया था। इस ख़ुलासे ने पूरी दुनिया को अमेरिका की नज़र से चौकन्ना कर दिया। एक ख़ुलासे में दुनिया भर की उन जगहों के बारे में जानकारी भी दी गई थी जिन्हें अमेरिका अपनी सुरक्षा के लिए सबसे खतरनाक समझता है।
इन ख़ुलासों से परेशान अमेरिका ने विकीलीक्स के ख़िलाफ़ एक आपराधिक जांच शुरू कर दी और सहायता के लिए दूसरे देशों से कहना शुरू किया। नवमबर 2010 में स्वीडन ने उनके ख़िलाफ़ इंटरनेशनल वारंट जारी कर दिया। उन पर यौन शोषण के आरोप लगे जिससे वह इंकार करते रहे। बाद में यह मामला खत्म हो गया।स्विस अधिकारी अंकल सैम के कहने पर जूलियन के बैंक खाते को सील कर चुके हैं, ताकि वह चंदा न जुटा पाएँ। 7 दिसम्बर 2010 को ही उन्होंने यूके पुलिस के सामने सरेंडर किया और दस दिन के बेल मिलने पर वह फ़रार हो गए। उन्हें पता था कि ख़तरा कितना बड़ा है ।
अब उन्हें जब ब्रिटेन ने गिरफ़्तार कर लिया है ,तब उनकी एक बात याद आ रही है। कौन सा देश है जो अपने सबसे ख़तरनाक विशलब्लोवर या भेदिए को मौत की सज़ा नहीं देगा। यह सच है कि अमेरिका उन्हें मार सकता है। इसलिए मुझे IIMC के मीडिया एथिक्स लेक्चर में की गयी एक बात याद आ रही है- एक पत्रकार की पहली निष्ठा किसके प्रति है? मनुष्यता के प्रति या स्टेट के प्रति?
Sabhar- Bhadas4media.com