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उस रात को कभी भूल नही पाऊंगा


दीपक चौरसिया, नेशनल एडिटर, स्टार न्यूज़
दीपक चौरसिया देश के सबसे लोकप्रिय टेलीविजन पत्रकारों में से एक हैं। पिछले 15 साल के दौरान देश में जितने भी बड़े घटनाक्रम घटे हैं उन सबको इन्होंने बहुत करीब से देखा, समझा और उसे लोगों तक पहुंचाया है। हाल ही में मुंबई में हुए आतंकवादी घटनाओं को कवर करने के लिए भी वे खास तौर पर स्टार न्यूज़ की तरफ से मुंबई गए। इस पूरे घटनाक्रम के बारे में वे क्या सोचते हैं और टेलीविजन पत्रकारिता के लिए यह कितना महत्वपूर्ण लम्हा था। इन सब के बारे में इस लेख के माध्यम से वे खुद बता रहे हैं। (प्रस्तुति : पुष्कर पुष्प )

खौफनाक और रोंगटें खड़े कर देने वाला दृश्य
मुंबई में हुई आतंकवादी घटना टेलीविजन इंडस्ट्री ही नहीं पूरे देश के लिए एक नया अनुभव था. लगभग साठ घंटे तक देश की आर्थिक राजधानी में आतंकवादियों द्वारा एक खतरनाक खेल खेला जाता है जिसमें 183 बेगुनाह लोगों की जान चली जाती है. दस विकृत मानसिकता के लोग अपने बन्दूक से गोलिया बरसा रहे थे. यह अपने आप में खौफनाक और रोंगटें खड़े कर देने वाला दृश्य था.

कई रात सो नहीं पाया
यह पूरी तरह से एक अलग वाकया था. ऐसा पहली बार हुआ जब किसी घटना का टेलीविजन न्यूज़ चैनलों पर लगभग 60 घंटे तक लगातार प्रसारण होता रहा. इस घटना को कवर करने के लिए मैं मुंबई गया और जब इस घटना की रिपोर्टिंग कर रहा था तब इतना महसूस नहीं हुआ. लेकिन जब कवरेज़ के बाद वापस घर लौटा तो मैं कोई चार - पाँच रात ठीक से सो नहीं पाया. अजीब - अजीब से सपने और ख्याल आते थे और बार-बार वही सब चीजे मन में उमड़ते-घुमड़ते रहता था. हालाँकि मेरे लिए यह पहला मौका नहीं था. मैंने ऐसी बहुत सी घटनाये पहले भी कवर की है. लेकिन उसके बाद भी ये एक ऐसा वाकया था जो सीधे जाकर मेरे दिल व दिमाग को लगा. टीआरपी शब्द भूल कर भी दिमाग में नहीं आया.
यह एक ऐसी घटना थी जिसकी रिपोर्टिंग करते समय कभी टीआरपी शब्द भूल से भी दिमाग में नहीं आया होगा. देशहित को ध्यान में रखते हुए,हमने पूरी घटना की पल-पल की रिपोर्टिंग की. आतंकवादी गतिविधियों के शुरू होने के बाद से ही स्टार न्यूज़ का पूरा -का -पूरा दफ्तर और टॉप मैनेजमेंट लगातार साठ घंटे तक न्यूज़ रूम में मौजूद रहा और उस वक्त हममे से किसी के दिमाग में रेटिंग शब्द शायद ही कभी आया होगा.

पूरे न्यूजरूम में बच्चे से लेकर के हमारे चीफ एडिटर साहब किसी ने भी रेटिंग के बारे में नही सोचा. सब सिर्फ़ ये चाह रहे थे कि देश को पल पल की ख़बर मिले और हमारे जरिये दुनिया भी इस खौफनाक मंजर को देखे कि कुछ लोग मानवता के खिलाफ कितना गन्दे से गन्दा षड्यंत्र कर सकते है.

घटना के शुरू होने के बाद से ही न्यूज़ रूम में स्टार न्यूज़ के संपादक शाजी ज़मा और मैनेजिंग एडिटर मिलिंद खांडेलकर मौजूद थे और शुरूआती चार - पाँच घंटे में यह निर्णय ले लिया गया था कि हम घटना के प्रसारण के दौरान लाइव में कोई भी ऐसी पोजीशन को नही दिखायेंगे जिससे सिक्योरिटी फोर्सेस प्रभावित होते. सबसे पहले स्टार न्यूज़ ने ही यह स्टैंड लिया था, बाद में दूसरे चैनलों ने ऐसा किया होगा. हमलोगों को अपने सूत्रों के जरिए मिनट -टू -मिनट डिटेल्स का पता चल रहा था लेकिन ऐसे किसी भी एक्जेक्ट लोकेशन को हमलोगों ने नहीं दिखाया. मैंने ताज के सामने से लगातार इस घटना की रिपोर्टिंग की और आज मुझे इस बात कि खुशी है कि मैंने या मेरे चैनल ने जो कवरेज़ की उसपर कोई ऊँगली नहीं उठा सकता है और ना ही यह इल्जाम लगा सकता है कि घटना के प्रसारन के दौरान हमने कोई समझौता किया.

एक सवाल जो बार - बार सुनने में आ रहा है कि चैनलों ने दिल्ली से कमांडोज के चलने और उसके मुम्बई पहुँचने की ख़बर को क्यों चलाया तो उसके बारे में यह स्पष्टीकरण देना चाहूँगा कि एन.एस.जी. के कमांडो वाली ख़बर बाकायदा हमें गृह मंत्रालय ने दी थी और यह कहा था कि आप ये ख़बर चला सकते है. गृह मंत्रालय की तरफ से यह फ़ोन रात में 1 बजे आया था और उसमें यह बताया गया था कि गृहमंत्री शिवराज पाटिल ख़ुद उनको लेकर जा रहे है. मेरे ही मोबाईल पर यह फोन आया था और इस बात की विधिवत सूचना हमें दी गई थी. तब हमने इस ख़बर को चलाया था. इसलिए इस संबंध में कोई भी इल्जाम लगाना बेमानी होगा.

यह कोई ड्रामा नहीं था
होटल ताज के सामने से कवर करते हुए हमलोग जो भी दिखा या कह रहे थे वह यथार्थ था उसमें कोई ड्रामा नहीं था. लेट जाओ - लेट जाओ , झुक जाओं इस तरह के जो भी विजुअल्स टेलीविजन स्क्रीन पर आ रहे थे वह वास्तविक स्थिति थी. ऐसा बिल्कुल नहीं था कि हम इसके जरिए घटना को ड्रामाटाइज करना चाह रहे थे. हमलोग सिक्योरिटी द्वारा बताये गए जगह से खड़े होकर बातचीत कर रहे थे. कैमरे को हमलोगों ने एक स्टेटिक फ्रेम देकर छोड़ रखा था और कुछ भी गोपनीय बात नहीं बता रहे थे. यदि कहीं आग लग जाती थी तो उसपर कभी - कभार कैमरे को पैन (घुमा देना) कर देते थे. लेकिन 27 की शाम से वह करना भी हमलोगों ने बंद कर दिया था. हमलोग बस खड़े रहकर बातचीत के द्वारा विश्लेषणात्मक विवेचना कर रहे थे. उसी क्रम में हमारे बिल्कुल करीब दो - तीन हथगोले और कुछ गोलियां आकर फूटी जिससे दो विदेशी पत्रकारों को चोट भी लगी. इसी से ऐसी स्थिति पैदा हो गई थी. उसके बाद पुलिस के तरफ से भी यह निर्देश आ गया था कि आप लोग लेट जाइये और हम सबलोग लेट गए थे.

पत्रकारों के लिए ट्रेनिंग की व्यवस्था जरूरी
यह एक खतरनाक स्थिति थी और तमाम पत्रकार अपनी जान को जोखिम में डालकर घटना की रिपोर्टिंग कर रहे थे. मुझे लगता है कि ऐसी स्थिति के लिए पत्रकारों को खास ट्रेनिंग देने की जरूरत है और इस संबंध में संस्थानों के अलावा सरकार को भी ध्यान देना चाहिए. मैंने ख़ुद ऐसी ट्रेनिंग की है और जिसका फायदा भी मुझे इराक वार और ऐसी ही कई घटनाओं के रिपोर्टिंग में मिली है. आतंकवाद रोज नई - नई शक्लें अख्तियार कर रहा है. कभी वो ट्रांजिस्टर बम बन जाता है, कभी वो साईकिल बम तो कभी वो स्कूटर बम बन जाता है, और कभी उसका घिनौना चेहरा मुबई में हुई आतंकवादी घटनाओ के रूप में सामने आता है. ऐसे बदलते हालात में कौन सी परिस्थिति से एक पत्रकार को दो - चार होना पड़ जाए यह कहना मुश्किल है. इसलिए यह जरूरी है कि ऐसे आपातकाल के लिए पत्रकारों को खास तरह से प्रशिक्षत किया जाए. सरकार को इस दिशा में पहल करनी चाहिए. मीडिया संस्थानों के साथ मिलकर सरकार को पत्रकारों के लिए ऐसे प्रशिक्षण की व्यवस्था करनी चाहिए. मुझे लगता है मीडिया संस्थान और तमाम पत्रकार भी इसमें सरकार का साथ देंगे. क्योंकि देशहित सबसे बड़ा होता है और इससे कोई भी समझौता नहीं करना चाहेगा क्योंकि पत्रकार से पहले हम सब एक भारतीय हैं.

ऐसी घटना फिर कभी न हो. क्या कभी हम इतने सक्षम हो पाएंगे?
ताज के खुलने पर दुबारा जब मैं वहां गया और कमरा नंबर 1705 में रुका हुआ था तो लगातार उस दिन के घटना के बारे में सोच रहा था. बार - बार यह विचार आता था कि कैसे आतंकवादी होटल में घुसे होंगे. उस वक्त यहाँ का कैसा मंजर होगा? अपनी कमरे में बार - बार टहलता था और कई बार यह मालूम पड़ता था कि अभी भी कुछ लोग अन्दर छुपे हुए हैं. इस दौरान बार - बार यह सवाल दिमाग में आता था कि क्या इनको बचाया नहीं जा सकता था. ऐसी गलतियाँ और ऐसी घटनाएँ फिर कभी न हो, क्या कभी हम इतने सक्षम हो पाएंगे? यह एक ऐसा दिन और एक ऐसी घटना है जिसके लिए शायद ही मेरे पास कोई शब्द हो.


(यह लेख बातचीत के आधार पर तैयार किया गया है. यह बातचीत मीडिया खबर.कॉम के संपादक पुष्कर पुष्प ने की)
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