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सत्य ‘‘ मेवा’’ जयते


सत्य ‘‘ मेवा’’ जयते


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पंकज चतुर्वेदी, वरिष्ठ पत्रकार
 
एक एपीसोड की एंकरिंग करने का मेहनताना तीन करोड़-- तिस पर तुर्रा कि समाज की चिंता। कुछ आंसू, कुछ भावनाएं, कुछ तथ्य और कुछ ‘‘मीडिया-हाईप’ - कुल मिला कर इसी का घालमेल है- सत्यमेव जयते। असल में हम तय कर लें कि हम टीवी के कार्यक्रम क्यों देखते हैं ? एक तरफ खबरिया चैनल मनोरंजन की सामग्री पेश करने में लगे हैं तो दूसरी ओर मनोरंजन के लिए बना चैनल ‘खबरिया चैनल’ की मानिंद कार्यक्रम पेश कर रहा है।  गोया तो इसके पहले एपीसोड का विषय कोई नया नहीं रहा- बच्चियों की घटती संख्या, उस पर समाज का नजरिया, बीते तीन दषकों से विमर्ष का विषय रहा है, विशेषतौर पर जब अस्सी के दषक में अल्ट्रा साउंड मशीनें आई थीं, तब से भ्रूण-हत्या  चिंता का विषय रहा है।
 
समस्या अनपढ़ या ग्रामीण समाज को ले कर नहीं, बल्कि पढ़े-लिखे मध्यमवर्गीय समाज में ज्यादा रही है। आमिर खान का ‘‘सत्यमेव जयते ’’ सवाल या समस्या उठाता तो है, जैसी कि एक मंजे हुए कलाकार की खासियत होती है, वह दर्शको से सीधे संवाद भी स्थापित करता है। आमिर खान लीक से हट कर अपने उत्पादों की मार्केटिंग करते हैं सो इस बार भी दूरस्थ गावों में जा कर शो की स्क्रीनिंग कर उन्होंने नये प्रयोग किए।
 
नोट कमाने की जुगत में आमिर खान यह भी भूल गए कि उन्होंने संगीत समूह ‘‘ यूफोरिया ’’ के पलाश सेन द्वारा बनाई गई ‘सत्य मेव जयते’ की धुन की ही कॉपी मार दी है। अब यह मसला भी विवाद का विशय बनने जा रहा है। बच्चियों की संख्या कम होने के पीछे भ्रूण हत्या के अलावा कुपोशण, प्रयाप्त स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, लैंगिक- भेदभाव जैसे कई मसले भी जिम्मेदार है, लेकिन इन पर कार्यक्रम मौन रहा है। आखिर में देखें तो ‘‘हासिले-मेहफिल’ कया है ? क्या समस्या के निराकरण के कोई ठोस सुझाव हैं या नहीं ! क्या समस्या के बारे में अधिक संवेदनशीलता या जागरूकता ??? कतई नहीं !! फिर क्या ??? आमिर खान को मिले तीन करोड़, उनकी कंपनी की झोली में नोट ही नोट और दर्शकों की भावुकता का दोहन।
 
असल में यह कार्यक्रम बताता है कि कार्यक्रम के प्रसारण से पैदा ‘मेवा’ ही सत्य है और उसकी जय है।
Sabhar- samachar4media.com