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एस.पी. और एस.पी.के.बाद का टेलीविज़न

सूचना और तकनीक से आगे थी एसपी की पत्रकारिता

आज तक सबसे तेज़ ! इसके निर्माता-एस.पी. ! वो एस.पी. , जिन्हें बड़ी शिद्दत के साथ आज भी याद किया जाता है ! सैटेलाईट के ज़रिये , ख़बरों की दुनिया को बदलने का श्रेय उन्हें दिया जाता है ! आज के कई, "नामचीन" नामों को भी गुरू एस.पी. के शागिर्द के रूप में जाना जाता है ! गुरू एस.पी.ने ख़ासे अंदाज़ में, शानदार आगाज़ किया ! तब, छोटे-छोटे शहरों में केबल टी.वी. प्रभावी था और सैटेलाईट ख़बरों का बाज़ार नया नवेला, मगर मज़बूत था और गलाकाट प्रतिस्पर्धा कम थी , लिहाज़ा नायक से महानायक बनना, एस.पी. के लिए बेहद आसान था (ये बात दावे के साथ इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि उसी दौर में टी.वी. पत्रकारिता की तरफ मेरा भी रूख हुआ था )!

एस.पी. ने एक नयी और अपेक्षाकृत युवा टीम के साथ प्रयोग किया, सफल हुए ! तब के कई नौसिखिये वास्तव में आज पत्रकारिता के स्टार हैं और कुछ स्वयंभू स्टार ! स्वयंभू इसलिए लिखा हूँ, कि- कुछ ने एस.पी. को अपनी कामयाबी की नींव मानने से इनकार कर दिया ! एस.पी.ने नाम की बजाय काम को आमंत्रित किया ! उन लोगों को ज़बान दी , जो क़ाबिल तो थे पर अवसर के अभाव में बे-जुबां थे ! पत्रकारिता तल्ख़ थी और सत्ता के निरकुंश पैतरों से दो-दो हाथ करने को तैयार थी ! अंजाम की परवाह कम थी ( IBN7 के आशुतोष जी को कांशीराम का थप्पड़ याद होगा ) ! एस.पी. ने उन पत्रकारों की टीम तैयार की, जो सीधा आसमाँ में उड़ने की बजाय-ज़मीन पर रहकर गली की ख़ाक छानने को बेकरार थे ! जोश और होश (अनुभवी और नए) का बेहतरीन गढ़जोड़ तैयार किया ! ख़बरों की दुनिया का ये दौर बे-मिसाल था ! ये एक ऐसा दौर था , जहां रिपोर्टर, एंकर या प्रोड्यूसर नाम के बल पर नहीं-काम के बल पर मौक़ा पाते थे ! एस.पी. में जाबांजी थे- वो, नए और बिना नाम वाले वाले अनुभवी लोगों को मौक़ा देते थे ! एस.पी.ने नामचीन लोगों के कंधे पर सवार होकर, महानायक का खिताब हासिल नहीं किया, बल्कि दिलेर युवकों और ईमानदार तजुर्बे को नुकीला हथियार बनाया ! एक ऐसा हथियार , जो ख़बरों की दुनिया में पत्थर में भी सुराख कर देने का माद्दा रखता था और बाज़ार को झुकाना जानता था ! ये कुछ बानगी थी एस.पी. के दौर में ! अब नज़र डालते हैं - एस.पी.के बाद ----

एस.पी.बहुत जल्दी चले गए, विरासत भी शानदार छोड़ गए ! पर इस विरासत को संभालने वालों में से कई , उलटे सर बाज़ार के सुर-ताल पर नाचने लगे ! बिना ज़मी सूंघे, हवा में उड़ने का शौक रखने वालों को लाइसेंस बांटने लगे ! राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल के एंकर ऐसे -ऐसे नवे-नवेले लोग बन गए जो दिल्ली- मुंबई के बाहर का हिन्दुस्तान , बतौर पत्रकार ६ महीने के लिए भी, देखे ही नहीं ! "जुगाड़" वाले बड़े पत्रकार बन गए ! जो ज़मीन सूंघ कर दावेदारी पेश किये - दरकिनार कर दिए गए ! जो भी किसी चैनल में गया, "अपनी" टीम लेकर गया ! इस टीम में कूबत की बजाय, चाटुकारिता पैमाना बन गयी ! एस.पी. ने जिन्हें जूझना सिखाया, लड़ना सिखाया- वो लोग बिना जूझे और ज़मीन पर ना रहने वाले लोगों के (आज) मुखिया बन बैठे हैं ! जिस तरह ज़मीन सूंघे बिना, राज्यसभा से घुसकर लोग बड़े नेता बन रहे हैं , कमोबेश उसी तर्ज़ पर आज टी.वी. पत्रकारिता में बड़े पत्रकार बन रहे हैं ! टी.वी. पत्रकारिता , स्टूडियो-इन्टरनेट-यु टुयब-दिल्ली-मुंबई के बीच तक ही सिमट चली है! एस.पी. ने. बड़े चैनल या नाम को दरकिनार कर अंजाम की परवाह की , पर उन्हीं के बहुतेरे चेले आज अंजाम से उलट नाम और बड़े चैनल के टैग पर फ़िदा हैं ! एस.पी. ने पत्रकारिता का जूनून रखने वालों की खोज की ! एस.पी. के कई नुमाइंदे , आज , पत्रकारिता की बजाय "जुगाड़" रखने वालों को खोजतेअहमियत देते हैं ! एस.पी. ने बायोडाटा के बजाय, काम को परखा , एस.पी. के चेले आज-कल बायोडाटा की चाशनी में घुले जा रहे हैं ! (कुछ अपवादों को छोड़ दें तो ) आशुतोष, पुण्य-प्रसून जैसे कुछ नाम आज भी हैं ,जो बाज़ार के तानाशाही रवैये को गाली नहीं बक सकते पर , यकीनन, बाज़ार को उलटे सर सलामी भी नहीं ठोंकते ! जिन से मिल कर आप कह सकते हैं कि इनके तेवर एस.पी. से अलग नहीं हैं ! इन्हें देख कर आप कह सकते हैं कि , आज भी, बायोडाटा के लुभावने हेर-फेर में ना पड़ने वाले बेहद कम लोगों में ये भी शुमार हैं ! इन्हें देखकर , आप को संतोष मिल सकता है कि काम को तवज़्ज़ो देने वाले कुछ लोग आज भी टी.वी. पत्रकारिता में मौजूद हैं ! ये लोग पत्रकारिता के जूनून को इज्ज़त बख्शते हैं ! काम की बजाय, बड़े चैनल के टैग से प्रभावित नहीं होते ! किसी मीडिया-मालिक के यहाँ नौकरी कर रहे, एस.पी. के ये नाम भी एक नौकर ही हैं , पर तलवे चाटने वाले गुलाम नहीं ! एस.पी. की आत्मा इस बात से सूकून पा सकती है, कि उनके कुछ शागिर्द, उनकी इज्ज़त की बखिया नहीं उधेड़े ! एस.पी. के बाद बाज़ार का गुना-गणित बड़ी तेज़ी से बदला ! पत्रकारिता का मिजाज़ भी बदला ! जुगाड़, तजुर्बे के सामने भारी पड़ने लगा ! बड़े चैनल का टैग झांसा देकर कम कूबत वाले , ज़्यादा सैलरी पाने में सफल है ! एंकर-प्रोड्यूसर-रिपोर्टर बनने के लिए "जुगाड़" , बुनियादी ज़रुरत है ! ये बानगी है , एस.पी. के बाद की !

अंत में इतना ही कहना उचित होगा -कि- एस.पी. टी.वी.पत्रकारिता का एक नाम-भर नहीं , बल्कि एक फॉर्मूला है ! इसी फॉर्मूला से पनपी और जवान हुई टी.वी. पत्रकारिता ! कहते हैं जवानी, होश का लिहाज़ नहीं करती और अक्सर बेलगाम हो जाती है.....बाज़ार में उतरने के बाद बदनामी का दाग भी छोड़ जाती है ! जवान हो रही टी.वी. पत्रकारिता और एस.पी. के क्षत्रपों को आज ये याद रखना होगा , कि एस.पी. ने जिस टी.वी.पत्रकारिता को पैदा कर विरासत में उन्हें दिया , उसकी नथ उतारने से बाज आना होगा ! पत्रकारिता और बाज़ार ! शायद यही दो पहलू रहे - एस.पी. और एस.पी. के बाद !

( लेखक टेलीविजन पत्रकार हैं.)

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