सच बोलना देशद्रोह है तो मैं देशद्रोही हूं! #AseemTrivedi
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कुछ लोगों की अक्ल में किसी कृति का स्थूल अर्थ ही घुसता है। वो यह नहीं समझ सकते कि उसका कोई प्रतीकात्मक अर्थ भी संभव है! लेकिन स्थूल अर्थ ग्रहण करने वालों का यह कहना कि एतराज इसलिए है कि वह ‘संविधान’ पर मूत रहे हैं, हास्यास्पद है। गोया संविधान कोई नया कुरान-बाईबिल-गीता हो गया है, जिस पर हम कार्टून में भी नहीं ‘मूत’ सकते।
और सबसे बड़ी बात, संविधान पर असीम नहीं वो लोग ‘मूत’ रहे हैं जिन्होंने बिनायक सेन, सीमा आजाद जैसे सैकड़ों जनपक्षधर देशभक्तों को जेल में रखा था, रखा है। इन लोगों को ‘देशद्रोह’ का आरोपी बनाना वाजिब भी है, आखिरकार ये लोग देश के सबसे गरीब और वंचित तबके के लिए जमीनी काम करते हैं। लेकिन असीम की गिरफ़्तारी तो ‘बहुमूत्रता’ का लक्षण है। क्या इस देश के सत्ताधारियों को अब मध्य-वर्गीय प्रतिरोध भी बर्दाश्त नहीं है?
अगर इस निजाम की नजर से देखें तो ऐसा लगता है कि जनता किसी संवैधानिक कुक्कुटपालन केंद्र से निकली मुर्गी है, जिसका मूल उद्देश्य है ‘संविधान’ का पेट भरना।
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साथियो, मैं इस देश का एक सच्चा नागरिक हूं। कोई देशद्रोही नहीं हूं।
साथियो, अगर सच बोलना देशद्रोह है तो मैं देशद्रोही हूं। हां, मैं देशद्रोही हूं अगर देशप्रेम और देशद्रोह की परिभाषाएं बदल चुकी हैं। मैं भी देशद्रोही हूं अगर गांधी, भगत सिंह और आजाद देशद्रोही थे। दोस्तो, मेरा मकसद देश का एक छोटा बच्चा भी समझ सकता है। मैं अपने देश के नागरिकों और संविधान के अपमान का विरोध करता हूं और अपने कार्टूनों के माध्यम से मैं देश के प्रतीकों और संविधान के अपमान का विरोध करता आया हूं। दोस्तो, कला और साहित्य समाज का दर्पण है और मैंने अपने कार्टून्स में वही दिखाया है, जो अपने चारों ओर देखा है।
दोस्तो, भारत माता कोई और नहीं बल्कि हम और आप जैसे भारत के 125 करोड़ नागरिक ही हैं। और हमारा अपमान भारत मां का अपमान है।
मेरी पूर्ण आस्था भारतीय संविधान और संविधान निर्माता डॉ अंबेडकर के साथ है। इसलिए संविधान का अपमान होता देख मुझे कष्ट होता है। और मैं अपने कार्टून्स के जरिये इसे रोकना चाहता हूं।
मैं गांधी के रास्ते पर चल रहा हूं और स्वयं को कष्ट देकर देश की सेवा करना चाहता हूं। मेरे जेल में होने से परेशान न हों। अन्ना जी कहते हैं कि देश के लिए जेल जाना तो हमारा भूषण है। इसलिए मैं जमानत नहीं मांग रहा। क्योंकि मैंने जो किया, उस पर मुझे गर्व है और मैं बार-बार करूंगा। मैं कोई अपराधी नहीं हूं कि पैसे जमा कर के जमानत लूं। जब तक देशद्रोह जैसा तानाशाही और ब्रिटिश राज का ये कानून नहीं हटाया जाएगा, मैं जेल में रह कर ही 124 (A) और सेंसरशिप के खिलाफ लड़ाई लड़ता रहूंगा।
आपका,
असीम त्रिवेदी
बांद्रा पुलिस लॉक अप, 2:10 PM, 10.09.2012
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