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बराबर की झूठी दुनिया में मनीषा का मर्म समझिए



बराबर की झूठी दुनिया में मनीषा का मर्म समझिए

धर्म-भेद, जाती-भेद और वर्ग भेद से बड़ा है लिंग भेद जहाँ आप आधी आबादी बीच से दो फाड़ कर देते है. एक बार मैंने एक पोस्ट में कौमार्य शब्द का प्रयोग किया तो यशवंत (भड़ास वाले) ने पहली बार मुझे बुरी तरह कोसा ...उन्होंने कहा दीपक भाई आप भी सामंतवादी मानसिकता से पीड़ित हो...आप भी बेहद छोटी सोच के निकले ..आपने निराश किया .
मित्रों घर में तीन बड़ी बहने है, पत्नी है, दो भांजी है और एक बेटी भी...कभी आभास ही नही हुआ कि औरत की दुनिया अलग है...पर यशवंत की बात समझ आई. गलती भी मानी. गलती ठीक करने की भी सोची.
आजकल फेसबुक पर लिंग-भेद को लेकर जो अलख मनीषा पाण्डेय जगा रही हैं उसको सलाम. मनीषा ने लिखा है कि कालिज के दिनों की गुम सहेलियों को वो जब फेसबुक में उनके नाम से खोजती है तो वो मिलती नही....क्यूंकि अगर नाम नीता वर्मा है तो शादी के बाद वो वर्मा नही रही होगी लिहाजा खोजना मुश्किल हैं. अचानक मुझे लगा कि मेरी बड़ी बहिन भी तो रीता शर्मा से रीता गोसाईं हो गयी और छोटी बहिन शम्मी शर्मा से शम्मी झा हो गयी.मेरी पत्नी सोना अवस्थी से सोना शर्मा हो गयी और मेरी बड़ी भांजी दीक्षा गोसाईं से दीक्षा भाटिया हो गयी. यानी मेरे ही घर कि आधी शिनाख्त बदली हुई है और इसका मुझे अहसास नही. इनकी भी स्कूल की बिछड़ी सहेलियां इन्हें ढूंढ नही पा रही होंगी. इनके भी नाम रस्मो की बली चढ़ गए.
मित्रों ...कुछ लोग मनीषा कि भाषा और अभिव्यक्ति पर इतराज़ करते हैं..कुछ उनकी किस्सागोई पर बिफर पडते है ..तो कुछ उनके खुले ख्यालों से खफा है ...लेकिन दुनिया के दूसरे छोर पर बैठे ये लोग नही जानते कि मनीषा जिस भेद और भ्रम को आज मिटाना चाहती है वो आने वाले कल में इंसानी रिश्तों को बीच से चीरने जा रहे हैं...लिंग भेद के ये संघर्ष कल हमारे छद्म समाज के सबसे बड़े द्वंद होने जा रहे हैं.
मित्रों, नारी को सम्मान ही नही समानता चाहिए पर बकौल यशवंत हम अपनी सोच नही बदल पा रहे हैं.

धर्म-भेद, जाती-भेद और वर्ग भेद से बड़ा है लिंग भेद जहाँ आप आधी आबादी बीच से दो फाड़ कर देते है. एक बार मैंने एक पोस्ट में कौमार्य शब्द का प्रयोग किया तो यशवंत (भड़ास वाले) ने पहली बार मुझे बुरी तरह कोसा ...उन्होंने कहा दीपक भाई आप भी सामंतवादी मानसिकता से पीड़ित हो...आप भी बेहद छोटी सोच के निकले ..आपने निराश किया .
मित्रों घर में तीन बड़ी बहने है, पत्नी है, दो भांजी है और एक बेटी भी...कभी आभास ही नही हुआ कि औरत की दुनिया अलग है...पर यशवंत की बात समझ आई. गलती भी मानी. गलती ठीक करने की भी सोची.
आजकल फेसबुक पर लिंग-भेद को लेकर जो अलख मनीषा पाण्डेय जगा रही हैं उसको सलाम. मनीषा ने लिखा है कि कालिज के दिनों की गुम सहेलियों को वो जब फेसबुक में उनके नाम से खोजती है तो वो मिलती नही....क्यूंकि अगर नाम नीता वर्मा है तो शादी के बाद वो वर्मा नही रही होगी लिहाजा खोजना मुश्किल हैं. अचानक मुझे लगा कि मेरी बड़ी बहिन भी तो रीता शर्मा से रीता गोसाईं हो गयी और छोटी बहिन शम्मी शर्मा से शम्मी झा हो गयी.मेरी पत्नी सोना अवस्थी से सोना शर्मा हो गयी और मेरी बड़ी भांजी दीक्षा गोसाईं से दीक्षा भाटिया हो गयी. यानी मेरे ही घर कि आधी शिनाख्त बदली हुई है और इसका मुझे अहसास नही. इनकी भी स्कूल की बिछड़ी सहेलियां इन्हें ढूंढ नही पा रही होंगी. इनके भी नाम रस्मो की बली चढ़ गए.
मित्रों ...कुछ लोग मनीषा कि भाषा और अभिव्यक्ति पर इतराज़ करते हैं..कुछ उनकी किस्सागोई पर बिफर पडते है ..तो कुछ उनके खुले ख्यालों से खफा है ...लेकिन दुनिया के दूसरे छोर पर बैठे ये लोग नही जानते कि मनीषा जिस भेद और भ्रम को आज मिटाना चाहती है वो आने वाले कल में इंसानी रिश्तों को बीच से चीरने जा रहे हैं...लिंग भेद के ये संघर्ष कल हमारे छद्म समाज के सबसे बड़े द्वंद होने जा रहे हैं.
मित्रों, नारी को सम्मान ही नही समानता चाहिए पर बकौल यशवंत हम अपनी सोच नही बदल पा रहे हैं.
Deepak Sharma ki facebook wall se sabhar lekar ..