इस मौलाना की सोच में दम है। हिंदुस्तान की तरक्की का एक नक्शा है इसकी आखों में। नफरत भेदभाव या तुष्टिकरण के खिलाफ मौलाना ने एक ऐसा फार्मूला दिया है कि जिस पर अमल करके मुल्क से साम्प्रदायिकता को जड़ से मिटाया जा सकता है। यही नहीं सभी कौम मिलकर देश कि तरक्की की नयी इबारत लिखें, इत्तेहाद-ए-मिल्लत के नेता तौकीर रज़ा खान का कहना है हिंदुस्तान के मुसलामानों को किसी से भीख नहीं चाहिए, उन्हें किसी और का हिस्सा भी नहीं चाहिये, अपना हक़ चाहिए। बराबरी का हक़। हमें न आरक्षण चाहिए, न खैरात, न मुआवजा। अब तक की सरकारों ने यही तो किया है और मुसलमानों को महज वोट के लिए इस्तेमाल किया। झगड़ों और दंगो के नाम पर बदनाम किया, पहले घर जलाये फिर मुआवजा देने आ गए, ऐसे लोगों को बेनकाब किया जाना चाहिए।
मौलाना तौक़ीर रज़ा ख़ान
तौकीर मियाँ कहते हैं आरक्षण का आधार आर्थिक होना चाहिए, जाति के आधार पर किसी को भी आरक्षण मुल्क को कमजोर और फिर से गुलाम बना देगा। उनका साफ़ कहना है कि मुसलामानों के हितैषी बनकर उन्हें ठगा जा रहा है। चाहे कोई हो, एक बार आरक्षण का लाभ के बाद उसकी तरक्की के रास्ते जब खुल गए तो फिर बार-बार क्यों आरक्षण? यही आरक्षण नफरत की वजह है और इससे सिर्फ मुल्क कमजोर होता है, अमन चैन को ख़तरा भी इसी से है, मगर इससे न तो मुसलामानों का भला है और न देश का, हाँ उन नेताओं को जरुर भला है जो मुसलमान को कमजोर बनाये रखकर अपनी सत्ता बचाए रखना चाहते हैं।
मौलाना इन दिनों सपा से नाता टूटने के बाद सुखियों में हैं। हँसते हुए कहते हैं कि आखिर मैंने सपा से नाता तोडा, न मुझे तकलीफ है न सपा को, बाकी लोग क्यूँ परेशान हैं यह समझ में नहीं आता। पहले जब मैं सपा सरकार में मंत्री बना तो भी इन्हे परेशानी हुई अब मैंने इस्तीफ़ा दिया तो फिर चीख रहे हैं? पूछते हैं कौन हैं ये लोग? मेरे विरोधी हैं? मुसलामानों के हितैषी हैं या किसी के हाथ का खिलौना? मुझे तो ऐसा लगता है कि कि किराए के लोग हैं ये, छोड़िये इनकी क्या बात करना।
मौलाना तौकीर रजा खान समाजवादी पार्टी से लाल बत्ती का रिश्ता ख़तम करके थोडा सुकून में हैं, कहते हैं ये बत्ती मेरी लड़ाई में बाधा थी। मेरी लड़ाई देश में मुसलामानों के उन नकली हितैषियों से है जो सिर्फ उनके वोटों पर राज करने के लिए मुसलामानों को मुख्य धारा से अलग किये हुए हैं। तौकीर मियाँ ने एक बड़ा सवाल उठाया है--हाल के मुजफ्फरनगर के दंगों में पीड़ितों को जो मुआवजा दिया गया, उसके लिए जो फार्म भरवाया गया वो वाकई हैरत में डालने वाला है, फ़ार्म में मुआवजे की यह शर्त साफ़ लिखी है कि, आवेदक को यह बात मंजूर है कि अब वह वापस अपने घर नहीं जायेगा, मुआवजा लेकर कहाँ जायेगा यह भी नहीं लिखा है। तौकीर मिया गुस्से में बोले--ये तो मुसलामानों को मुल्क से बेदखल कर देने की साजिश हुई, उनका कहना है कि पता लगाया जाना चाहिए कि यह कौन कर रहा है? आखिर कौन है इसके पीछे? पहले मुसलामानों को मुसीबात में डाल कर फिर उनका भला करके आखिर कौन उनका हितैषी बनना चाहता है।
ये तो मुल्क से बेदखल कर रहे थे!
एक छोटी सी मुलकात के दौरान अपनों के बीच हजरत कहे जाने वाले तौकीर मियाँ ने तमाम मुद्दों पर अपना नज़रिया साफ़ किया। उनका आज भी यही कहना है कि भारत के मुसलामानों के हक़ की लड़ाई अभी इस देश में शुरू ही नहीं हुई है, सिर्फ उनको लड़ाने की राजनीति की जा रही है, मगर मैंने उनके हक़ की लड़ाई शुरू की तो मेरा विरोध किया जाने लगा। यहाँ तक कि दंगाई तक कह दिया दिया झूठे मुक़दमे लगा दिए गए। इस के साथ ही तौकीर मियाँ वह फ़ार्म दिखाते हैं, जो हाल में मुजफ्फरनगर में भरवाया गया। इसमें पांचवें नंबर पर साफ़ लिखा है कि "यह कि मैं तथा मेरे परिवार के सदस्य अपने ग्राम ____________में हुई हिंसात्मक घटनाओं से भयाक्रांत होकर गाँव व घर छोड़कर आये हैं तथा हम किन्ही परिस्थितियों में अब अपने मूल गाँव एवं घर नहीं लौटेंगे।"
क्या मज़ाक है ये? यह फार्म दिखाते हुए मौलाना गुस्से से आग बबूला हो जाते हैं। कहते हैं कि किसने बनवाया यह फ़ार्म? इसकी जाँच होनी चाहिए। आखिर वो कौन लोग हैं जिन्हे मैं आरएसएस का नज़र आता हूँ और यह फार्म मुसलामानों के हक़ में, और वो दंगा पीड़ितों को महज पांच लाख मुआवजा देकर मुल्क से ही बेदखल करने का षड्यंत्र कर रहे हैं। मैंने जब यह सवाल उठाया तो मैं जाहिर है उनके मंसूबों पर पानी फेर रहा था। आखिर यह लोग कौम के हितैषी बनकर कौम से ग़द्दारी पर अमादा हैं और एक लाल बत्ती की गाड़ी लेकर मैं इनकी हाँ में हाँ मिलता रहूँ? नहीं चाहिए, मुझे लाल बत्ती, मुझे अल्लाह ने बहुत दिया है, मेरे लिए लाल बत्ती का कोई मतलब नहीं है। आखिर कौन है मुजाफ्फरनगर का प्रभारी मंत्री? उसकी भी कोई जवाबदेही सरकार, कौम और इस प्रदेश के प्रति है या नहीं? मेरे ही एतराज़ करने पर बाद में फार्म में बदलाव किया गया, ऐसा पता चला है। सोचने वाली बात है कि दंगे में डर कर भागे आदमी से आप उसकी जीवन भर की कमाई और पैतृक संपत्ति छीन लेंगे? यह फार्म तो यही कहता है --आगे इसमें लिखा है कि इस मुआवजे की रकम से वो सिर्फ अपने लिए मकान बनाएगा, बन जाएगा पांच लाख में मकान? सवाल करते हुए उनका गुस्सा आजम खान पर था, मुजफ्फनगर के प्रभारी मंत्री आजम खान ही हैं!
आपकी सोच और नाइत्तेफाकी का सच क्या है?
तौकीर मियाँ कहते हैं कि मैं तो शुरू से ही बराबरी की बात करता हूँ मेरी पार्टी में हिन्दू मुसलमान का कोई भेद नहीं है। मैं दोनों के भले की बात करता हूँ। इसमें कोई हिन्दू हो या मुसलमान सिख या ईसाई। सबको बराबरी का हक़ है। किसी का हक़ काट कर किसी को ना दिया जाए, क्योंकि मुल्क पर सबका हक़ है। सबकी मेहनत से ही तरक्की हुई है और होगी। आखिर कोई भी तबका जात बिरादरी से कैसे कमजोर हो सकता है? हाँ, पैसे में या तालीम में कमजोर हो सकता है तो उसके लिए सरकार को इंतजाम करना चाहिए। इसीलिए मैं आज भी आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात करता हूँ। और जब मैंने यह बात उठायी तो सबके कान खड़े हो गए, यही कि यह कौन आ गया जो उनकी राजनीति चौपट करने की बात करा रहा है। तौकीर मियाँ कहते हैं सोचने वाली बात है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण के मुद्दे का किसी मुसलमान ने विरोध नहीं किया और बस इन नेताओं को लगा कि अब दाल कैसे गलेगी? तो मुझे घेरने पे लग गए।
तो फिर पहले लाल बत्ती और मंत्री पद क्यूँ लिया?
कहते हैं मुझसे वादा किया गया था कि मेरी बात सुनी और मानी जायेगी। सरकार मुसलामानों के हक में काम करेगी। मगर कौम के उन फ़र्ज़ी ठेकेदारों को लगा कि उनकी तो दूकान ही बंद हो जायेगी! तो भीतर ही भीतर मेरा विरोध शुरू होने लगा। मैंने परवाह नहीं की मगर हाँ मुसलामानों के हित में आवाज़ लगातार उठायी। आखिर बताइये सूबे में ऐसे करीब 17 विभाग हैं जहाँ मुस्लिम समाज के लोगों की नियक्ति होनी है और जब ये सारे पद भर दिए जाते तो मुसलमाओं से जुड़े मसलों पर काम होता। मगर सब ठप है। आखिर कहाँ जा रहा है बजट? क्यों नहीं हो रहा काम? कौन नहीं करना चाहता? किसके पास है मुस्लिम मामलों का सरकारी विभाग? कौन मंत्री है? ये सवाल मैं नहीं उठाउंगा तो अब कौन उठाएगा? आखिर इन नेताओं के भरोसे मुसलामानों ने आधी सदी काट दी और अभी तक भिखारी और खैरात-जकात पर ज़िंदा हैं।
अब सपा से नाता खतम ?
उनका कहना है कि मेरे दरवाजे सबके लिए खुले हैं। अभी बसपा के मुनकाद अली आये थे, मैंने साफ़ कह दिया मेरे बात का समर्थन करने का वादा करें समर्थन करुंगा और मेरी पार्टी के लोग चुनाव भी लड़ेंगे। मैंने पांच सीटें मांगी हैं। बहिन जी से बात करने का वादा करके वो गए हैं देखते हैं क्या करते हैं। सपा के लिए भी दरवाज़े खुले हैं। तौकीर मियाँ कहते हैं कि मेरा किसी से झगड़ा नहीं है, नाइत्तेफाकी है। मेरी बात नहीं सुनी गयी और उलटे मुसलामानों के खिलाफ काम हुआ तो मैंने घुटन महसूस की और अलग हो गया। तो क्या सपा से अभी नाता टूटा नहीं है? न। कोई लड़ाई नहीं है। मेरी शर्तें मान लें। हमें हमारा हक़ दें। लड़ाने-भिड़ाने की राजनीति बंद करें। दंगा जांच आयोग बनाया जाए। मुजफ्फरनगर दंगे की जांच रिपोर्ट सामने लायी जाए। दोषियों का कड़ा दण्ड दिया जाये। और आगे दंगे न हों इसके मुकम्मल इंतजामात किये जाएँ।
आज़म खान आपसे क्यूँ खफा रहते हैं?
उनका क्या है, उन्हें अपना वजूद खतरे में नज़र आता है शायद इसीलिए मेरा विरोध करते हैं। जहां तक आरएसएस का एजेंट और नकार की बात है वो तो उन्होंने मुलायम सिंह के लिए भी कही थी, जब वो उनसे अलग हुए थे, ये लोग ही तो हैं जो मुसलामानों का खैरख्वाह बनकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं और लड़ाई-झगडे करके मरहम लगाते हैं और खुद राज करते हैं।
अब किसका समर्थन करेंगे? या खुद अपने बूते पर चुनाव लड़ेंगे?
तौकीर मियाँ कहते हैं कि मैं खुद चुनाव नहीं लडूंगा। हाँ, उन लोगों कि मुखालफत करूँगा जो मुसलमानों को केवल बदनाम और पिछड़ा हुआ देखना चाहते हैं और उनका झूठा हितैषी बनकर सिर्फ वोट लेकर राज करना चाहते हैं। मैं हुन्दू मुसलमान की राजनीति नहीं करना चाहता। न करने दूँगा। मेरा मकसद है हिंदुस्तान के मुसलमान हों या हिन्दू जो भी कमजोर हैं। उनको बराबरी के साथ ऊपर उठने दिया जाए। जो जिस लायक है उसे उसका हक़ मिले। मदद नहीं चाहिए भाई, अधिकार चाहिए। देश में केवल मुसलमान ही नहीं तमाम कौमें है जिनको उनका हक़ नहीं मिला। मुसलमानों को वोट के नाम पर ठगा जा रहा है, मगर अब यह नहीं चलने वाला।
शर्ते क्या हैं?
कहते हैं कि मैं शुरू से कह रहां हूँ देश और प्रदेश में एक दंगा जांच आयोग बने। ये तो सामने आये कि आखिर दंगा कौन करवाता है? गरीब चाहे किसी भी बिरादरी का हो, वही इसमें पिसता है और ये लोग मुआवजे की राजनीति करके उनके हितैषी बन जाते हैं। उनका कहना है कि प्रदेश में अब तक सपा की सरकार में 102 दंगे हुए है, आखिर क्या मजाक है ये? मुसलमान खामख्वाह बदनाम होता है। दिलों में दूरिया बढ़तीं हैं, मगर असली गुनाहगार सामने नहीं आता। दूसरी बात मुसलामानों को उनका हक़ दिया जाये। उन पर एहसान नहीं किया जाए। किसी का ह्क काट कर नहीं दिया जाए। ये लोग हमेशा यही करते हैं और बेवजह की दूरी पैदा करने की कोशिश करते हैं। आखिर हम इत्तेहाद की बात करते हैं तो ये कैसे बर्दाश्त करेंगे कि किसी हिन्दू या किसी और का हक़ काटकर बेवजह नफरत का माहौल बनते हुए देखा जाए। मैं अब इस मुद्दे पर समझौता नहीं करने वाला। चाहे कितना ही जुलम करें, मुझे आरएसएस का या किसी और का भी एजेंट बताते रहे, मुझे फर्क नहीं पड़ता। मुझे धन दौलत की दरकार तो है नहीं जो मैं किसी की हाँ में हाँ मिलता रहूँ और कौम से गद्दारी करूँ? मेरी लड़ाई मुसलमानों के हक़ के लिए है, जो मेरी बात समझेगा और अमल का वादा करेगा मैं उसके साथ हूँ। मुस्लिम मालों के सारे सरकारी विभागों में खाली पड़े पद भरे जाएँ जिससे काम हो।
केजरीवाल ने समर्थन लिया और जीते
केजरीवाल से संपर्क के मुद्दे पर मौलाना कहते हैं कि मेरे किसी से मिलने-जुलने पर पाबंदी है क्या? मैं किससे मिलूँ और किससे, नहीं ये कोई और तय करेगा? आखिर उन्हें क्यों दिक्कत हुई? केजरीवाल मुझसे मिलने आये मैंने उनको समर्थन दिया और उसका नतीज़ा है दिल्ली में उनकी सरकार बनी। देख लो। मैं किसी से मिलूं तो पहले इनसे परमीशन लूँ?
दंगे में तो झूठा फंसाया
सब जानते हैं कि आरोप कैसे लगे, मुझे फंसाया गया, झूठे आरोप लगे। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता इन बातों से। दरअसल उस समय के अफसर किसी ख़ास इशारे पर मेरे खिलाफ षड्यंत्र में शामिल हो गए, सिर्फ मुझे बदनाम करने का एक प्रयास था। मुझसे किसी को खतरा नहीं है और न मुझे किसी से। अभी-अभी किसी ने बताया है कि मेरी जेड श्रेणी की सुरक्षा वापस ली जा रही है। ले लो भाई। मगर इसका जवाब कौन देगा कि जब मुझे मंत्री बनाया गया तब मुझे सुरक्षा दे दी। और जब मैंने मंत्री का दर्जा वापस कर दिया तो सुरक्षा भी वापस लेनी है, ले लो। मगर आप ही बताइये कि मैं जनता के बीच में सुरक्षित हूँ या सरकार में? मैं तो कहता हूँ कि दंगा जांच आयोग बने, पता तो लगे कौन दंगे करवाता है? आखिर गोपनीयता के नाम पर जांच रिपोट दबा लो ,फिर जो इसके खिलाफ बोले उसके संघ और भाजपा का बता दो, आखिर इससे क्या होगा? बात ये है कि मुसलमानों के विरोधी, हितैषी और दुश्मन सामने आने चाहिये, कौम की तरक्की की बात होनी चाहिये।
तौकीर मियाँ कहते हैं आरक्षण का आधार आर्थिक होना चाहिए, जाति के आधार पर किसी को भी आरक्षण मुल्क को कमजोर और फिर से गुलाम बना देगा। उनका साफ़ कहना है कि मुसलामानों के हितैषी बनकर उन्हें ठगा जा रहा है। चाहे कोई हो, एक बार आरक्षण का लाभ के बाद उसकी तरक्की के रास्ते जब खुल गए तो फिर बार-बार क्यों आरक्षण? यही आरक्षण नफरत की वजह है और इससे सिर्फ मुल्क कमजोर होता है, अमन चैन को ख़तरा भी इसी से है, मगर इससे न तो मुसलामानों का भला है और न देश का, हाँ उन नेताओं को जरुर भला है जो मुसलमान को कमजोर बनाये रखकर अपनी सत्ता बचाए रखना चाहते हैं।
मौलाना इन दिनों सपा से नाता टूटने के बाद सुखियों में हैं। हँसते हुए कहते हैं कि आखिर मैंने सपा से नाता तोडा, न मुझे तकलीफ है न सपा को, बाकी लोग क्यूँ परेशान हैं यह समझ में नहीं आता। पहले जब मैं सपा सरकार में मंत्री बना तो भी इन्हे परेशानी हुई अब मैंने इस्तीफ़ा दिया तो फिर चीख रहे हैं? पूछते हैं कौन हैं ये लोग? मेरे विरोधी हैं? मुसलामानों के हितैषी हैं या किसी के हाथ का खिलौना? मुझे तो ऐसा लगता है कि कि किराए के लोग हैं ये, छोड़िये इनकी क्या बात करना।
मौलाना तौकीर रजा खान समाजवादी पार्टी से लाल बत्ती का रिश्ता ख़तम करके थोडा सुकून में हैं, कहते हैं ये बत्ती मेरी लड़ाई में बाधा थी। मेरी लड़ाई देश में मुसलामानों के उन नकली हितैषियों से है जो सिर्फ उनके वोटों पर राज करने के लिए मुसलामानों को मुख्य धारा से अलग किये हुए हैं। तौकीर मियाँ ने एक बड़ा सवाल उठाया है--हाल के मुजफ्फरनगर के दंगों में पीड़ितों को जो मुआवजा दिया गया, उसके लिए जो फार्म भरवाया गया वो वाकई हैरत में डालने वाला है, फ़ार्म में मुआवजे की यह शर्त साफ़ लिखी है कि, आवेदक को यह बात मंजूर है कि अब वह वापस अपने घर नहीं जायेगा, मुआवजा लेकर कहाँ जायेगा यह भी नहीं लिखा है। तौकीर मिया गुस्से में बोले--ये तो मुसलामानों को मुल्क से बेदखल कर देने की साजिश हुई, उनका कहना है कि पता लगाया जाना चाहिए कि यह कौन कर रहा है? आखिर कौन है इसके पीछे? पहले मुसलामानों को मुसीबात में डाल कर फिर उनका भला करके आखिर कौन उनका हितैषी बनना चाहता है।
ये तो मुल्क से बेदखल कर रहे थे!
एक छोटी सी मुलकात के दौरान अपनों के बीच हजरत कहे जाने वाले तौकीर मियाँ ने तमाम मुद्दों पर अपना नज़रिया साफ़ किया। उनका आज भी यही कहना है कि भारत के मुसलामानों के हक़ की लड़ाई अभी इस देश में शुरू ही नहीं हुई है, सिर्फ उनको लड़ाने की राजनीति की जा रही है, मगर मैंने उनके हक़ की लड़ाई शुरू की तो मेरा विरोध किया जाने लगा। यहाँ तक कि दंगाई तक कह दिया दिया झूठे मुक़दमे लगा दिए गए। इस के साथ ही तौकीर मियाँ वह फ़ार्म दिखाते हैं, जो हाल में मुजफ्फरनगर में भरवाया गया। इसमें पांचवें नंबर पर साफ़ लिखा है कि "यह कि मैं तथा मेरे परिवार के सदस्य अपने ग्राम ____________में हुई हिंसात्मक घटनाओं से भयाक्रांत होकर गाँव व घर छोड़कर आये हैं तथा हम किन्ही परिस्थितियों में अब अपने मूल गाँव एवं घर नहीं लौटेंगे।"
क्या मज़ाक है ये? यह फार्म दिखाते हुए मौलाना गुस्से से आग बबूला हो जाते हैं। कहते हैं कि किसने बनवाया यह फ़ार्म? इसकी जाँच होनी चाहिए। आखिर वो कौन लोग हैं जिन्हे मैं आरएसएस का नज़र आता हूँ और यह फार्म मुसलामानों के हक़ में, और वो दंगा पीड़ितों को महज पांच लाख मुआवजा देकर मुल्क से ही बेदखल करने का षड्यंत्र कर रहे हैं। मैंने जब यह सवाल उठाया तो मैं जाहिर है उनके मंसूबों पर पानी फेर रहा था। आखिर यह लोग कौम के हितैषी बनकर कौम से ग़द्दारी पर अमादा हैं और एक लाल बत्ती की गाड़ी लेकर मैं इनकी हाँ में हाँ मिलता रहूँ? नहीं चाहिए, मुझे लाल बत्ती, मुझे अल्लाह ने बहुत दिया है, मेरे लिए लाल बत्ती का कोई मतलब नहीं है। आखिर कौन है मुजाफ्फरनगर का प्रभारी मंत्री? उसकी भी कोई जवाबदेही सरकार, कौम और इस प्रदेश के प्रति है या नहीं? मेरे ही एतराज़ करने पर बाद में फार्म में बदलाव किया गया, ऐसा पता चला है। सोचने वाली बात है कि दंगे में डर कर भागे आदमी से आप उसकी जीवन भर की कमाई और पैतृक संपत्ति छीन लेंगे? यह फार्म तो यही कहता है --आगे इसमें लिखा है कि इस मुआवजे की रकम से वो सिर्फ अपने लिए मकान बनाएगा, बन जाएगा पांच लाख में मकान? सवाल करते हुए उनका गुस्सा आजम खान पर था, मुजफ्फनगर के प्रभारी मंत्री आजम खान ही हैं!
आपकी सोच और नाइत्तेफाकी का सच क्या है?
तौकीर मियाँ कहते हैं कि मैं तो शुरू से ही बराबरी की बात करता हूँ मेरी पार्टी में हिन्दू मुसलमान का कोई भेद नहीं है। मैं दोनों के भले की बात करता हूँ। इसमें कोई हिन्दू हो या मुसलमान सिख या ईसाई। सबको बराबरी का हक़ है। किसी का हक़ काट कर किसी को ना दिया जाए, क्योंकि मुल्क पर सबका हक़ है। सबकी मेहनत से ही तरक्की हुई है और होगी। आखिर कोई भी तबका जात बिरादरी से कैसे कमजोर हो सकता है? हाँ, पैसे में या तालीम में कमजोर हो सकता है तो उसके लिए सरकार को इंतजाम करना चाहिए। इसीलिए मैं आज भी आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात करता हूँ। और जब मैंने यह बात उठायी तो सबके कान खड़े हो गए, यही कि यह कौन आ गया जो उनकी राजनीति चौपट करने की बात करा रहा है। तौकीर मियाँ कहते हैं सोचने वाली बात है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण के मुद्दे का किसी मुसलमान ने विरोध नहीं किया और बस इन नेताओं को लगा कि अब दाल कैसे गलेगी? तो मुझे घेरने पे लग गए।
तो फिर पहले लाल बत्ती और मंत्री पद क्यूँ लिया?
कहते हैं मुझसे वादा किया गया था कि मेरी बात सुनी और मानी जायेगी। सरकार मुसलामानों के हक में काम करेगी। मगर कौम के उन फ़र्ज़ी ठेकेदारों को लगा कि उनकी तो दूकान ही बंद हो जायेगी! तो भीतर ही भीतर मेरा विरोध शुरू होने लगा। मैंने परवाह नहीं की मगर हाँ मुसलामानों के हित में आवाज़ लगातार उठायी। आखिर बताइये सूबे में ऐसे करीब 17 विभाग हैं जहाँ मुस्लिम समाज के लोगों की नियक्ति होनी है और जब ये सारे पद भर दिए जाते तो मुसलमाओं से जुड़े मसलों पर काम होता। मगर सब ठप है। आखिर कहाँ जा रहा है बजट? क्यों नहीं हो रहा काम? कौन नहीं करना चाहता? किसके पास है मुस्लिम मामलों का सरकारी विभाग? कौन मंत्री है? ये सवाल मैं नहीं उठाउंगा तो अब कौन उठाएगा? आखिर इन नेताओं के भरोसे मुसलामानों ने आधी सदी काट दी और अभी तक भिखारी और खैरात-जकात पर ज़िंदा हैं।
अब सपा से नाता खतम ?
उनका कहना है कि मेरे दरवाजे सबके लिए खुले हैं। अभी बसपा के मुनकाद अली आये थे, मैंने साफ़ कह दिया मेरे बात का समर्थन करने का वादा करें समर्थन करुंगा और मेरी पार्टी के लोग चुनाव भी लड़ेंगे। मैंने पांच सीटें मांगी हैं। बहिन जी से बात करने का वादा करके वो गए हैं देखते हैं क्या करते हैं। सपा के लिए भी दरवाज़े खुले हैं। तौकीर मियाँ कहते हैं कि मेरा किसी से झगड़ा नहीं है, नाइत्तेफाकी है। मेरी बात नहीं सुनी गयी और उलटे मुसलामानों के खिलाफ काम हुआ तो मैंने घुटन महसूस की और अलग हो गया। तो क्या सपा से अभी नाता टूटा नहीं है? न। कोई लड़ाई नहीं है। मेरी शर्तें मान लें। हमें हमारा हक़ दें। लड़ाने-भिड़ाने की राजनीति बंद करें। दंगा जांच आयोग बनाया जाए। मुजफ्फरनगर दंगे की जांच रिपोर्ट सामने लायी जाए। दोषियों का कड़ा दण्ड दिया जाये। और आगे दंगे न हों इसके मुकम्मल इंतजामात किये जाएँ।
आज़म खान आपसे क्यूँ खफा रहते हैं?
उनका क्या है, उन्हें अपना वजूद खतरे में नज़र आता है शायद इसीलिए मेरा विरोध करते हैं। जहां तक आरएसएस का एजेंट और नकार की बात है वो तो उन्होंने मुलायम सिंह के लिए भी कही थी, जब वो उनसे अलग हुए थे, ये लोग ही तो हैं जो मुसलामानों का खैरख्वाह बनकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं और लड़ाई-झगडे करके मरहम लगाते हैं और खुद राज करते हैं।
अब किसका समर्थन करेंगे? या खुद अपने बूते पर चुनाव लड़ेंगे?
तौकीर मियाँ कहते हैं कि मैं खुद चुनाव नहीं लडूंगा। हाँ, उन लोगों कि मुखालफत करूँगा जो मुसलमानों को केवल बदनाम और पिछड़ा हुआ देखना चाहते हैं और उनका झूठा हितैषी बनकर सिर्फ वोट लेकर राज करना चाहते हैं। मैं हुन्दू मुसलमान की राजनीति नहीं करना चाहता। न करने दूँगा। मेरा मकसद है हिंदुस्तान के मुसलमान हों या हिन्दू जो भी कमजोर हैं। उनको बराबरी के साथ ऊपर उठने दिया जाए। जो जिस लायक है उसे उसका हक़ मिले। मदद नहीं चाहिए भाई, अधिकार चाहिए। देश में केवल मुसलमान ही नहीं तमाम कौमें है जिनको उनका हक़ नहीं मिला। मुसलमानों को वोट के नाम पर ठगा जा रहा है, मगर अब यह नहीं चलने वाला।
शर्ते क्या हैं?
कहते हैं कि मैं शुरू से कह रहां हूँ देश और प्रदेश में एक दंगा जांच आयोग बने। ये तो सामने आये कि आखिर दंगा कौन करवाता है? गरीब चाहे किसी भी बिरादरी का हो, वही इसमें पिसता है और ये लोग मुआवजे की राजनीति करके उनके हितैषी बन जाते हैं। उनका कहना है कि प्रदेश में अब तक सपा की सरकार में 102 दंगे हुए है, आखिर क्या मजाक है ये? मुसलमान खामख्वाह बदनाम होता है। दिलों में दूरिया बढ़तीं हैं, मगर असली गुनाहगार सामने नहीं आता। दूसरी बात मुसलामानों को उनका हक़ दिया जाये। उन पर एहसान नहीं किया जाए। किसी का ह्क काट कर नहीं दिया जाए। ये लोग हमेशा यही करते हैं और बेवजह की दूरी पैदा करने की कोशिश करते हैं। आखिर हम इत्तेहाद की बात करते हैं तो ये कैसे बर्दाश्त करेंगे कि किसी हिन्दू या किसी और का हक़ काटकर बेवजह नफरत का माहौल बनते हुए देखा जाए। मैं अब इस मुद्दे पर समझौता नहीं करने वाला। चाहे कितना ही जुलम करें, मुझे आरएसएस का या किसी और का भी एजेंट बताते रहे, मुझे फर्क नहीं पड़ता। मुझे धन दौलत की दरकार तो है नहीं जो मैं किसी की हाँ में हाँ मिलता रहूँ और कौम से गद्दारी करूँ? मेरी लड़ाई मुसलमानों के हक़ के लिए है, जो मेरी बात समझेगा और अमल का वादा करेगा मैं उसके साथ हूँ। मुस्लिम मालों के सारे सरकारी विभागों में खाली पड़े पद भरे जाएँ जिससे काम हो।
केजरीवाल ने समर्थन लिया और जीते
केजरीवाल से संपर्क के मुद्दे पर मौलाना कहते हैं कि मेरे किसी से मिलने-जुलने पर पाबंदी है क्या? मैं किससे मिलूँ और किससे, नहीं ये कोई और तय करेगा? आखिर उन्हें क्यों दिक्कत हुई? केजरीवाल मुझसे मिलने आये मैंने उनको समर्थन दिया और उसका नतीज़ा है दिल्ली में उनकी सरकार बनी। देख लो। मैं किसी से मिलूं तो पहले इनसे परमीशन लूँ?
दंगे में तो झूठा फंसाया
सब जानते हैं कि आरोप कैसे लगे, मुझे फंसाया गया, झूठे आरोप लगे। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता इन बातों से। दरअसल उस समय के अफसर किसी ख़ास इशारे पर मेरे खिलाफ षड्यंत्र में शामिल हो गए, सिर्फ मुझे बदनाम करने का एक प्रयास था। मुझसे किसी को खतरा नहीं है और न मुझे किसी से। अभी-अभी किसी ने बताया है कि मेरी जेड श्रेणी की सुरक्षा वापस ली जा रही है। ले लो भाई। मगर इसका जवाब कौन देगा कि जब मुझे मंत्री बनाया गया तब मुझे सुरक्षा दे दी। और जब मैंने मंत्री का दर्जा वापस कर दिया तो सुरक्षा भी वापस लेनी है, ले लो। मगर आप ही बताइये कि मैं जनता के बीच में सुरक्षित हूँ या सरकार में? मैं तो कहता हूँ कि दंगा जांच आयोग बने, पता तो लगे कौन दंगे करवाता है? आखिर गोपनीयता के नाम पर जांच रिपोट दबा लो ,फिर जो इसके खिलाफ बोले उसके संघ और भाजपा का बता दो, आखिर इससे क्या होगा? बात ये है कि मुसलमानों के विरोधी, हितैषी और दुश्मन सामने आने चाहिये, कौम की तरक्की की बात होनी चाहिये।
इसे लेखक के ब्लॉग
http://jhumkabareillyka.blogspot.com/2014/01/blog-post_17.html पर भी पढ़ा जा सकता है।
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