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बीजेपी वाले पाकिस्तान से दोस्ती करने के लिये इतने उतावले क्यों रहते हैं?


पुष्य मित्र
यह दिलचस्प तथ्य है कि भारत के किसी कांग्रेसी पीएम ने कभी पाकिस्तान के साथ दोस्ती कायम करने का उतावलापन नहीं दिखाया। मगर बीजेपी वालों ने हर बार दोस्ती की ऐसी मुहिम चलाई कि जैसे भारत और पाक कुम्भ में बिछड़े भाई हों। अटल बिहारी बाजपेयी बस लेकर लाहौर चले गये तो मोदी ने अपना हवाई जहाज ही नवाज शरीफ के दरवाजे पर उतार दिया। किसी कांग्रेसी पीएम ने कभी ऐसी कोई मिसाल पेश की हो यह मुझे याद नहीं।
नेहरू एक ही दफा चीन से ठगे गये और उसके बाद उनके खानदान के तमाम लोगों ने सीख लिया कि दुश्मन दुश्मन ही होता है। एक दिन में अचानक उसके दोस्त बन जाने की कोई गुंजाइश नहीं होती। उससे कुछ समझौते जरूर किये जा सकते हैं ताकि शांति कायम रहे। मगर उतावलापन दिखाना ठीक नहीं। मगर बीजेपी वाले इस बात को नहीं समझते मुहब्बत लेकर जाते हैं और लौटते हैं तो उनके पूँछ में isi वाले पटाखा बांध देते हैं। फिर जंग होती है।
यह सिर्फ इतनी सी बात नहीं कि पाकिस्तान का कट्टरपंथी सेक्टर भारत से दोस्ती नहीं करना चाहता। सच यही है कि पाकिस्तान अपने जन्म से ही एक ही सपना देखता आया है कि उसे भारत को तबाह करना है। पहले कश्मीर फिर बांग्लादेश गंवाकर वह ऐसे इंफेरिओरिटी काम्प्लेक्स का शिकार हो गया है जिसका कोई इलाज नहीं है। एक राष्ट्र के रूप में भारत के सामने कई सपने हैं। जैसे विकसित देशों की सूची में शामिल होना और सुरक्षा परिषद की सदस्यता हासिल करना। मगर पाकिस्तान का सपना क्या है? सिर्फ भारत को तबाह करना और कश्मीर और बांग्लादेश का बदला लेना।
हम भी चीन से हारे हैं। मगर हमने कभी चीन को मजा चखाने के लिए अपने अस्तित्व को दांव पर लगाने का जुनून नहीं पाला। हमने अलग रास्ता चुना। इस दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाने की तरफ कदम बढ़ाया। हालाँकि इसके बावजूद हम कई कमियों के शिकार हैं मगर ईश्वर की कृपा है कि हम पाकिस्तान नहीं हुए।
यह हमारी बदकिस्मती है कि हमें एक ऐसा कुंठित पड़ोसी मिला है जो भूखे रहकर फिदाईनो को बम बनाने के लिए पैसा देता है। अब उसे हमें झेलना है। मगर इस झेलना का मतलब यह कतई नहीं है कि हम उसके साथ दोस्ती कर लें। क्योंकि दोस्ती की भी एक तासीर होती है। आप हर किसी के दोस्त नहीं हो सकते। आप दुश्मनी की धार को कम कर सकते हैं। सम्बन्ध सामान्य बना सकते हैं और लम्बे वक़्त में अगर सम्बन्ध सामान्य रहे और वक़्त की कसौटी पर खड़े उतरे तभी दोस्ती का हाथ बढ़ाया जा सकता है।
मगर अफ़सोस बीजेपी वालों ने हर बार इंस्टेंट नूडल की तरह दुश्मनी को दोस्ती में बदलने की कोशिश की और नतीजा यह हुआ कि जंग जैसे हालात बन गये। यह सच है कि बाद के हालात को मोदी और उसकी टीम ने अच्छी तरह से हैंडल किया है और हमने पाकिस्तान को अलग थलग करने में काफी हद तक सफलता हासिल की है। मगर मोदी जी के दो साल तक चले अन्तर्राष्ट्रीय अभियानों का हासिल यही होना चाहिये? यह अभियान तो सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट के लिये था और पूँजी निवेश के लिए था। क्या हम दो साल की उस मेहनत के बदले पाकिस्तान को झुका कर खुश हो सकते हैं?
ध्यान रखिये, हम पाकिस्तान नहीं हैं। पाकिस्तान की तबाही हमारा मकसद नहीं हो सकता। हाँ उसकी शैतानियों की सजा हम देंगे और उसी तरह देंगे जैसे कोई वर्ल्ड पॉवर देता है। मगर हम उसके पीछे उलझे नहीं रहेंगे। न दोस्ती के लिये न दुश्मनी के लिए। क्योंकि हमारा मकसद पाकिस्तान नहीं है। हमारा मकसद उससे कहीं अधिक है।
(लेखक प्रभात खबर से जुड़े हैं. आलेख उनके एफबी वॉल से साभार)