हिन्दी न्यूज चैनल ‘आज तक’ के जाने-माने चेहरे शम्स ताहिर खान की पत्नी और पत्रकार सावित्री बलूनी आज न सिर्फ समाज के निम्न व गरीब तबके के लोगों के लिए सहारा बनी हैं, बल्कि वह अपने कामों से समाज को नई दिशा दिखाने का काम भी कर रही हैं।
यह उनके प्रयासों का ही नतीजा है कि आज तमाम ग्रामीण जनसुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं और समाज की मुख्य धारा में शामिल होने का प्रयास कर रहे हैं।
हिन्दी अखबार ‘जनसत्ता’ और ‘अमर उजाला’ में लंबे समय तक पत्रकारिता कर चुकीं सावित्री एक शिक्षाविद भी रही हैं। सावित्री बलूनी ने बताया कि वह पिछले साल तक ग्रेटर नोएडा की शारदा यूनिवर्सिटी में बतौर फैकल्टी काम कर रही थीं। लेकिन उनके मन में समाज के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा था। वह गरीब व निम्न तबके के लोगों के लिए कुछ करना चाहती थीं, ताकि ऐसे लोग भी समाज की मुख्य धारा में शामिल हो सकें और बुनियादी सुविधाओं का लाभ उठा सकें।
सावित्री ने बताया कि नौकरी छोड़ने की वजह यही थी कि इसमें रहकर वह पूरी तरह से इन गांवों के लिए काम नहीं कर पा रही थीं। नौकरी में रहकर आए दिन छुट्टी लेना संभव नहीं था और इसके अलावा भी तमाम अन्य बाध्यताएं थीं, इसलिए उन्होंने नौकरी छोड़ना ही बेहतर समझा। सावित्री ने यह भी बताया कि हालांकि वह पत्रकारिता को बहुत मिस करती हैं लेकिन अब पत्रकारिता और शिक्षण के क्षेत्र में वापसी करने का उनका कोई इरादा नहीं है।
जैसा कि एक पुरानी कहावत है कि चैरिटी की शुरुआत आपके घर से होती है और इसी पर अमल करते हुए उन्होंने उत्तराखंड के अपने गांव भैंसोड़ा से इसकी शुरुआत भी कर दी। बलूनी ने बताया, ‘सरकार और राजनीतिज्ञों की उपेक्षा के कारण मेरा गांव काफी पिछड़ा हुआ है लेकिन अब मैंने कुछ ग्रामीणों और जागरूक लोगों के साथ मिलकर यहां साफ-सफाई, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य बुनियादी सुविधाओं की दिशा में काम करना शुरू किया है। अभी तक यहां के किसानों को बिचौलियों और कुछ चुनिंदा कारोबारियों के गठजोड़ के कारण अपनी फसल को बेचने में काफी कठिनाई होती थी और कुछ लोग औने-पौने दामों में उनका माल खरीद लेते थे। इससे किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य नहीं मिल पाता था और उनकी आर्थिक दशा में इजाफा नहीं होता था। लेकिन मैंने यहां पर अब एक ऐसा सिस्टम बना दिया है, जिससे वे अपने कृषि उत्पादों को शहर के बाजार में सीधे ले जाकर बेच सकते हैं।’ मैं उत्तराखंड के सुदूर इलाके माला भैंसोड़ा से तालुलुक रखती हूं। हमारी ग्राम सभा में पांच गांव हैं, जिनमें शौचालय जैसे बुनियादी जरूरत भी नहीं थी। सावित्री बताती हैं, ‘अपने मित्रों और सुलभ शौचालय की सहायता से यहां पर 12 शौचालयों का निर्माण कराया है और 50 से ज्यादा शौचालयों का निर्माण कराने में जुटे हैं। एक बार इन शौचालयों का निर्माण होने के बाद ग्रामीणों को खुले में शौच के लिए जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसके अलावा स्कूली बच्चों के लिए फर्नीचर व किताब-कॉपियों की व्यवस्था भी की जा रही है और जर्जर स्कूल के निर्माण की दिशा में भी प्रयास जारी है।’
सावित्री बलूनी ने यह भी बताया कि ये सब काम करने के लिए न तो उन्होंने कोई एनजीओ बनाया है और न ही किसी संगठन से जुड़ी हैं, बल्कि वे यह सब काम अपनी व्यक्तिगत क्षमता के आधार पर कर रही हैं। हालांकि इसमें उनके पति और बेटी का पूरा सहयोग मिलता है। सावित्री का कहना है कि बिना परिवार के सपोर्ट के यह सब काम करना बहुत मुश्किल था।
Sabhar- Samachar4media.com